ओडिशा के जनजातीय क्षेत्र में मिली पौष्टिक रागी की नई किस्में

nutritious ragi
Creative Commons licenses

अधिक उपज देने वाली और बेहतर पोषण से युक्त रागी की जिन किस्मों पहचान इस अध्ययन में की गई है, उनमें भालू, लाडू, तेलुगु और बाड़ा शामिल हैं। ओडिशा के जनजातीय क्षेत्र में उगायी जाने वाली रागी की ये किस्में उन्नत हाइब्रिड किस्मों से भी बेहतर बतायी जा रही हैं।

भविष्य के प्रजनन कार्यक्रमों को केंद्र में रखकर वैज्ञानिक फसलों के देशज जर्मप्लाज्म में आनुवंशिक परिवर्तनों का पता लगाने में जुटे रहते हैं। इसी तरह के एक प्रयास के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने ओडिशा के जनजातीय क्षेत्र कोरापुट में उगायी जाने वाली अधिक पौष्टिक और ज्यादा उपज देने वाली रागी (फिंगर मिलेट) की किस्मों का पता लगाया है। 

अधिक उपज देने वाली और बेहतर पोषण से युक्त रागी की जिन किस्मों पहचान इस अध्ययन में की गई है, उनमें भालू, लाडू, तेलुगु और बाड़ा शामिल हैं। ओडिशा के जनजातीय क्षेत्र में उगायी जाने वाली रागी की ये किस्में उन्नत हाइब्रिड किस्मों से भी बेहतर बतायी जा रही हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि रागी की ये बहुमूल्य किस्में स्थानीय समुदाय की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती हैं, और इनके उच्च उपज गुणों का उपयोग नई किस्मों के विकास में हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने कोरापुट के जनजातीय इलाकों से 33 से अधिक रागी की मूल किस्मों को एकत्रित किया है। जलवायु के प्रति इन किस्मों के लचीलेपन एवं पोषण से संबंधित उनके लक्षणों और डीएनए प्रोफाइलिंग के आधार पर रागी किस्मों को अध्ययन में शामिल किया गया है।

इसे भी पढ़ें: “गगनयान कार्यक्रम के तहत इस साल दो मिशन लॉन्च करेगा इसरो”

यह अध्ययन, ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट और क्षेत्रीय केंद्र, एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन, जयपुर, ओडिशा के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय और एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की प्रयोगशालाओं में किये गए अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं को रागी की इन किस्मों के विशिष्ट गुणों का पता चला है।

ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण विभाग के शोधकर्ता देबब्रत पांडा कहते हैं– “तेलुगु, बाड़ा एवं दसहेरा समेत रागी की तीन किस्मों में बेहतर पोषण संरचना (उच्च प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, ऐश और ऊर्जा सामग्री) पायी गई है, और ये किस्में असाधारण रूप से फ्लेवोनोइड्स तथा एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर हैं। ये श्रीअन्न फसलें भोजन तथा पोषण सुरक्षा का एक विश्वसनीय आधार बन सकती हैं।” 

देबब्रत पांडा कहते हैं– आनुवंशिक विश्लेषण के आधार पर, इन किस्मों को श्रेष्ठ श्रीअन्न के विकास के लिए प्रजनन कार्यक्रमों में आनुवंशिक संसाधनों के रूप में उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इन किस्मों के बेहतर पोषण और जलवायु के प्रति उनके लचीले गुणों का उपयोग नई किस्मों के विकास में भी किया जा सकता है। वह कहते हैं कि सरकार के ‘मिलेट्स मिशन’ के अंतर्गत रागी की इन किस्मों को लोकप्रिय बनाने की पहल की जा सकती है, और बड़े पैमाने पर रागी की किस्मों की खेती और खपत को बढ़ावा दिया जा सकता है। 

पिछले कुछ वर्षों के दौरान आधुनिक कृषि पद्धतियों के कारण मूल्यवान आनुवंशिक संपत्ति के लगातार क्षरण को लेकर विशेषज्ञ चिंता जताते रहे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि मूल्यवान आनुवंशिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो किसानों द्वारा उगायी जाने वाली इन पारंपरिक किस्मों के शीघ्र ही नष्ट हो जाने की आशंका है। 

श्रीअन्न फसलों के बारे में जागरूकता के प्रसार और इन खाद्यान्नों के उत्पादन एवं खपत को बढ़ाने के उद्देश्य से, भारत सरकार की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष’ घोषित किया। इस पहल के बाद, कभी भारतीय रसोई का एक अहम घटक रहने वाले ज्वार,बाजरा, कोदो, सावां और रागी जैसे श्रीअन्न धीमी गति से वापसी कर रहे हैं। 

बढ़ते वैश्विक तापमान और बदलते मानसून से उत्पन्न खाद्य आपूर्ति की चुनौतियों के समाधान के रूप में श्रीअन्न (मिलेट्स) के उत्पादन एवं उपभोग को एक प्रभावी विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। पूर्व अध्ययनों में पाया गया है कि चावल और गेहूँ की तुलना में श्रीअन्न; जैसे- रागी, ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी इत्यादि जलवायु परिवर्तन के प्रति कम संवेदनशील होते हैं। श्रीअन्न, जिसे मोटा अनाज भी कहा जाता है, बारिश पर निर्भर खाद्यान्न फसलें हैं, जो खरीफ मौसम के दौरान उगायी जाती हैं। चरम जलवायवीय परिस्थितियों में भी श्रीअन्न के उत्पादन में मामूली कमी होती है। कम लागत में अधिक पैदावार देने में सक्षम श्रीअन्न पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ-साथ किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी सहायक हो सकते हैं। 

शोधकर्ताओं का कहना है कि श्रीअन्न के मूल्यवान आनुवंशिक संसाधनों को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करने का यह सबसे अनुकूल समय है। वह कहते हैं कि खाद्य सुरक्षा, पोषण, स्थानीय अर्थव्यवस्था की मजबूती और अधिक उपभोक्ताओं तक पहुँचने के लिए रागी की इन किस्मों के व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा देने की प्रभावी रणनीति की आवश्यकता है।

शोध-टीम में, देबब्रत पांडा के अलावा, अलौकिक पांडा, हर्षिता प्रजापति, प्रफुल्ल के. बेहेरा, जयंत के. नायक, कार्तिक सी. लेंका और प्रशांत के. परीदा शामिल हैं। उनका यह अध्ययन शोध पत्रिका सीरीअल रिसर्च कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित किया गया है। 

(इंडिया साइंस वायर)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़