भारत में रणनीतिक कारणों से संभव नहीं हैं 2 टाइम जोन

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ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े शोधकर्ता वर्ष 1980 के दशक के उत्तरार्ध से ही भारत में दो टाइम जोन बनाने की व्यवहारिकता पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए अधिकतर प्रस्ताव अकादमिक पत्रिकाओं तक सीमित रहे हैं और इस पर अब तक अमल नहीं किया जा सका है।

नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): पिछले वर्ष एक अध्ययन में यह बात उभरकर आई थी कि देश को दो टाइम जोन में बांट दिया जाए तो पूर्वोत्तर भारत में कामकाज की उत्पादकता में सुधार के साथ-साथ बिजली की खपत कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि अब कहा जा रहा है कि रणनीतिक कारणों से देश को दो हिस्सों में बांटा जाना संभव नहीं है। यह जानकारी विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने संसद में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में प्रदान की है। 

डॉ हर्ष वर्धन बताया है कि “वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की राष्ट्रीय भौतिक वैज्ञानिक प्रयोगशाला (एनपीएल) के वैज्ञानिकों द्वारा बिजली की बचत और व्यावहारिक कारणों का हवाला देते हुए दो टाइम जोन से संबंधित जानकारियां विभिन्न विज्ञान शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित की गई हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव, सीएसआईआर-एनपीएल के निदेशक और त्रिपुरा सरकार के मुख्य सचिव वाली उच्च स्तरीय समिति द्वारा इस विषय पर विचार करने के बाद समिति ने रणनीतिक कारणों की दृष्टि से भारत के लिए दो टाइम जोन न होने की सिफारिश की है।”

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भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूरज जल्दी उगता है और शाम को जल्दी अस्त हो जाता है। सर्दियों के मौसम में सूरज के जल्दी छिपने से पूर्वोत्तर राज्यों में काम के घंटे कम हो जाते हैं। इसका सीधा असर कामकाज के घंटों पर पड़ता है, जिससे उत्पादकता कम होने के साथ-साथ बिजली की खपत भी अधिक होती है। यही वजह है कि पूर्वोत्तर भारत के लिए एक अलग टाइम जोन की मांग लंबे समय से की जा रही है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि देश को दो अलग-अलग टाइम जोन में बांट देने से इस स्थिति में सुधार हो सकता है।

ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े शोधकर्ता वर्ष 1980 के दशक के उत्तरार्ध से ही भारत में दो टाइम जोन बनाने की व्यवहारिकता पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए अधिकतर प्रस्ताव अकादमिक पत्रिकाओं तक सीमित रहे हैं और इस पर अब तक अमल नहीं किया जा सका है। 

भारतीय मानक समय (आईएसटी) का निर्धारण करने वाली नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर-एनपीएल के एक विश्लेषण के आधार पर पिछले वर्ष जून में असम, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लिए अलग समय क्षेत्र (टाइम जोन) निर्धारित करने का सुझाव दिया गया था। 

पूर्वोत्तर राज्यों के सांसद और अन्य समूह काफी समय से एक अलग समय क्षेत्र की मांग कर रहे हैं। सीएसआईआर-एनपीएल के वैज्ञानिकों ने बंगाल के अलीपुर द्वार में 89 डिग्री 52 मिनट पूर्व देशांतर पर दो अलग समय क्षेत्रों को अलग करने वाली सीमा का पहचान की थी। वैज्ञानिकों ने उस समय कहा था कि देश के विस्तृत हिस्से के लिए आईएसटी-I और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए आईएसटी-II को एक घंटे के अंतर पर अलग-अलग किया जा सकता है। 

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एनपीएल के वैज्ञानिकों के अनुसार, देश में दो भारतीय मानक समय प्रदान करने की क्षमता है और दो समय क्षेत्रों के होने पर भी दिन के समय के साथ मानक समय को संयोजित किया जा सकता है। हालांकि, अब रणनीतिक कारणों से इस पर अमल करना फिलहाल संभव नहीं लग रहा है।

भारतीय मानक समय की उत्पत्ति और प्रसार के लिए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत कार्यरत एनपीएल की भूमिका अहम है। दूसरे समय क्षेत्रों के लिए एनपीएल को पूर्वोत्तर में एक और प्रयोगशाला स्थापित करने और इसे यूटीसी के साथ सिंक करने का सुझाव दिया गया था। 

(इंडिया साइंस वायर)

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