उच्चतम न्यायालय के आदेश की समीक्षा चाहता है बीसीसीआई
भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके उसके 18 जुलाई के फैसले की समीक्षा करने की अपील की जिसमें इस क्रिकेट संस्था में सुधारों के संबंध में लोढ़ा समिति की अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया था।
नयी दिल्ली। भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके उसके 18 जुलाई के फैसले की समीक्षा करने की अपील की जिसमें इस क्रिकेट संस्था में सुधारों के संबंध में आरएम लोढ़ा समिति की अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया था। बीसीसीआई ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली पीठ का उनके खिलाफ 'रवैया पूर्वाग्रह से प्रभावित’ रहा है और उन्हें इस मामले की सुनवाई से हट जाना चाहिए। बीसीसीआई ने इसके साथ ही दलील दी कि फैसला ‘तर्कहीन’ था और इसमें निजी स्वायत्त संस्था के लिये कानून बनाना चाहता है जबकि उसके लिये पहले से ही कानून हैं।
बोर्ड ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एफएमआई कलिफुल (अब सेवानिवृत) के फैसले में ‘दलीलों और तथ्यों का सही तरह से उल्लेख नहीं किया गया और ना ही उनसे सही तरह से निबटा गया।’’ उसने कहा, ‘‘फैसला असंवैधानिक और इस अदालत के पूर्व के कई फैसलों के विपरीत है और यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने और उन्हें अमान्य ठहराने वाला है। फैसले से सेवानिवृत न्यायधीशों की समिति को न्यायिक अधिकार आउटसोर्स किये गये जो कानून में अस्वीकार्य हैं।’’ समीक्षा याचिका में खुली सुनवाई की भी मांग की गयी है। इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू वह है जिसमें प्रधान न्यायधीश को सुनवाई से बाहर रखने का आग्रह किया गया है। उन पर बीसीसीआई के खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया गया है। याचिका में कहा गया है, ‘‘प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर का लगता है कि बीसीसीआई के प्रति रवैया पूर्वाग्रहों से प्रभावित है और यह उनके बयानों से साबित होता है।''
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