National level के एथलीट के बुरे हाल, सिर्फ 500 रुपये के लिए ठिठुरती ठंड में रात भर करनी पड़ती है ड्यूटी

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राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीत चुके एक एथलीट की हालत ऐसी है कि दिल्ली की ठिठुरती ठंड में उसे कोल्ड स्टोर में काम करने को मजबूर होना पड़ रहा है। राहुल, नाम तो सुना ही होगा मगर हालत ऐसी जिसे शायद ही किसी ने देखा हो।

राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीत चुके एक एथलीट की हालत ऐसी है कि दिल्ली की ठिठुरती ठंड में उसे कोल्ड स्टोर में काम करने को मजबूर होना पड़ रहा है। राहुल, नाम तो सुना ही होगा मगर हालत ऐसी जिसे शायद ही किसी ने देखा हो। नेशनल लेवल पर कई मेडल जीतने वाले एथलीट राहुल जीवन गुजर बसर करने के लिए कोल्ड स्टोर मं दूध के पैकेट ट्रक में लोड करने का काम करते है।

दिल्ली की सर्दी बेहद कठोर होती है मगर 25 वर्षीय राहुल के लिए थोड़ी अधिक कठोर है। लंबी और मध्यम दूरी के एथलीट राहुल के लिए दिल्ली की सर्दी कुछ ज्यादा पीड़ादायक है। दिल्ली और देश को कई मेडल दिलवाने वाले और नाम रौशन करने वाले राहुल 14 वर्ष की उम्र से यानीबीते 11 वर्षों से वो पश्चिमी दिल्ली की एक डेरी के कोल्ड स्टोर में दूध के पैकेट ट्रक में लोड करने का काम नाइट शिफ्ट में करते है। उनकी शिफ्ट रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक होती है। इस शिफ्ट में लगातार वो काम करते रहते है। पूरी रात ठंड में कोल्ड स्टोर में काम करने के बाद वो सुबह अपनी ट्रेनिंग के लिए जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम जाते है। हालांकि राहुल का कहना है कि उन्हें दिन में नौकरी करने की जरुरत है ताकि वो अपनी ट्रेनिंग पर फोकस कर सकें।

उनके पास अभी रहने को सिर्फ एक कमरा है जहां उनके पास कोई अलमारी नहीं है जिस पर वो अपने मेडल और ट्रॉफी रख सके। उनकी ट्रॉफी एक जंग लगे ट्रंक में रखी है। राहुल का कहना है कि वर्तमान में उनकी सारी जमा पूंजी सिर्फ मेडल ही है।

बेहद कठिन होती है परिस्थितियां

इस कोल्ड स्टोर में काम करने की परिस्थितियां काफी कठिन और कठोर होती है। यहां काम करने एक खुले फ्रीजर में चलने जैसा होता है। यहां काम करते करते मेरे हाथ और पैर सुन्न पड़ जाते हैं मगर मेरे पास यहां काम करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। बता दें कि राहुल ने वर्ष 2017 में क्रॉस-कंट्री नेशनल में U-20 कांस्य पदक जीता था। लगभग पांच फुट लंबे राहुल दूध के कैरेट को कार्ट में ढकेलते है। उन्होंने बताया कि इस कोल्ड स्टोर में लोडिंग का काम करना बेहद कठिन है। अगर एक पल के लिए भी ध्यान भटक जाए तो मेटल कार्ट से चोट लगने की पूरी संभावना रहती है। 

बता दें कि राहुल मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के शिखरपुर से ताल्लुक रखते है। उन्होंने बताया कि शुरु में कुछ समय उत्तर प्रदेश में वो अपने भाई के साथ रहे मगर भाई उन्हें पालने में सक्षम नहीं था। इसके बाद 13 वर्ष की आयु में वो किसी तरह से बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंचे। यहां उन्होंने लगभग आठ महीने रहने और लंगर में खाना खाकर अपना जीवन व्यतीत किया। उन्होंने बताया कि लंगर में वो कई बार लोगों के लिए खाना भी बनाते थे। गुरुद्वारा में रहते हुए राहुल ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। पढ़ाई के साथ ही दूध डेरी में काम करने का मौका मिल गया।

मात्र 500 रुपये में करते हैं काम

बता दें कि रात भर ठंड में कोल्ड स्टोर में रिस्क से भरपूर काम करने के लिए राहुल को प्रत्येक दिन के लिए महज 500 रुपये का भुगतान किया जाता है। सिर्फ यही नहीं उन्हें सिर्फ उस दिन के लिए पैसे दिए जाते हैं जिस दिन वो काम करते है। काम ना मिलने पर भुगतान भी नहीं किया जाता है।

वर्ष 2016 में जीता पहला मेडल

कठिन परिस्थितियों के बीच मकान मालिक के बेटे के साथ ही राहुल ने ट्रेनिंग की शुरुआत की। इस ट्रेनिंग की बदौलत ही राहुल ने वर्ष 2016 में पहली बार 10 किलोमीटर की अंडर 20 रेस में ब्रॉन्ज मेडल जीता। वो लगातार खेल में काफी अच्छा काम करते गए। स्पोर्ट्स कोटा के तहत ही राहुल को दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में काम करने का मौका मिला। हालांकि वो फीस जमा नहीं कर सके और उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा।

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