ट्यूलिप गार्डन के लिए भी जाना जाने लगा है कश्मीर

एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन कश्मीर में है जिसे देख आने वाले पर्यटकों के मुंह से ये शब्द निकल ही पड़ते हैंः ‘वाकई धरती पर अगर कहीं कोई स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।’

अगली बार जब आप कश्मीर में आएं तो डल झील, शिकारे, हाऊसबोटों, पहाड़, बर्फ के अतिरिक्त ट्यूलिप गार्डन को देखना न भूलें। अगर यह कहा जाए कि अगर पहले कश्मीर की पहचान डल झील के कारण हुआ करती थी तो अब ट्यूलिप के बगीचों के कारण ऐेसा है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आखिर यह बात सच हो भी क्यों न। एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन तो कश्मीर में ही है जिसे देख आने वाले पर्यटकों के मुंह से ये शब्द निकल ही पड़ते हैंः ‘वाकई धरती पर अगर कहीं कोई स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।’

अगली बार जब आप किसी बॉलीवुड फिल्म में ट्यूलिप यानी नलिनी के फूलों के विशाल मैदानों को देखें तो हालैंड के बारे में आपको सोचने की जरूरत नहीं है। अपने राज्य जम्मू कश्मीर में भी इन दिनों ट्यूलिप रंग-बिरंगे अवतार में दिखाई दे रहे हैं और अब यह एशिया के सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन माना जाने लगा है। कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर की डल झील के किनारे जब्रवान की पहाड़ियों पर स्थित सिराजबाग में इन दिनों रंग-बिरंगे ट्यूलिप खिले हैं। इस पहाड़ी पर दूर-दूर तक फैले इस उर्वर मैदान पर ट्यूलिप खिले हुए हैं।

पीले, सफेद, गुलाबी, बैंगनी, लाल, नीले रंगों के ट्यूलिप यहां के माहौल में रुमानियत घोल रहे हैं। कश्मीर घाटी के इस पहले ट्यूलिप गार्डन की दिलकश छटा लोगों को मोहित कर रही है। इन खूबसूरत ट्यूलिप मैदानों से यहां का माहौल रूमानी हो गया है। कश्मीर के अधिकारी इन फूलों की बहार से बेहद उत्साहित हैं। उन्हें इस सम्भावना से संतोष हुआ है कि यह एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप का ठिकाना बन गया है। हालैंड से 60 प्रजातियों के ट्यूलिप यहां लाए गए हैं। अधिकारियों को खुशी इस बात की है कि बदले हुए माहौल में भी ट्यूलिप के फूल यहां पूरे यौवन के साथ खिल गए।

ट्यूलिप को ट्यूलिपा भी कहा जाता है। लिलियासा फूल परिवार की करीब 100 किस्मों में ट्यूलिप भी एक किस्म मानी जाती है। यह अधिकतर दक्षिणी यूरोप, नार्थ अफ्रीका और इरान में पैदा होता है। इसकी पैदावार बीज की बजाय केसर की ही तरह होती है।

डल झील का इतिहास सदियों पुराना है। पर ट्यूलिप गार्डन का मात्र दो साल पुराना। मात्र दो साल में ही यह उद्यान अपनी पहचान को कश्मीर के साथ यूं जोड़ लेगा कोई सोच भी नहीं सकता था। डल झील के सामने के इलाके में सिराजबाग में बने ट्यूलिप गार्डन में ट्यूलिप की 60 से अधिक किस्में आने-जाने वालों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहतीं। यह आकर्षण ही तो है कि लोग बाग की सैर को रखी गई 80 से 100 रुपए की फीस देने में भी आनाकानी नहीं करते। दिल्ली से आई सुनिता कहती हैं कि किसी बाग को देखने का यह चार्ज ज्यादा है पर भीतर एक बार घूमने के बाद लगता है यह तो कुछ भी नहीं है।

सिराजबाग हरवान-शालीमार और निशात चश्माशाही के बीच की जमीन पर करीब 700 कनाल एरिया में फैला हुआ है। यह तीन चरणों का प्रोजेक्ट है जिसके तहत अगले चरण में 1360 और 460 कनाल भूमि और साथ में जोड़ी जानी है। शुरू-शुरू में इसे शिराजी बाग के नाम से पुकारा जाता था। असल में महाराजा के समय उद्यान विभाग के मुखिया के नाम पर ही इसका नामकरण कर दिया गया था। पर अब यह शिराज बाग के स्थान पर ट्यूलिप गार्डन के नाम से अधिक जाना जाने लगा है।

कहा जाता है कि 1947 से पहले सिराजद्दीन नामक एक व्यक्ति घाटी का मशहूर फल उत्पादक था। उसके पास 650 कनाल से ज्यादा जमीन पर फैला फलों का एक बाग था, जिसमें वह सेब, अखरोट, खुबानी और बादाम का उत्पादन किया करता था। ये बाग जब्रवान पहाड़ियों के दामन में स्थित था (जहां आजकल बाटोनिकल गार्डन और ट्यूलिप गार्डन है)। इस बाग का नाम उसके नाम से ही मशहूर था।

पास ही रहने वाले एक 70 वर्षीय बुजुर्ग अहमद गनेई ने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि हम इस बाग को सिराज बाग के नाम से जानते थे। जहां पर हर तरफ सेब, अखरोट, बादाम और खुबानी के पेड़ फैले हुए थे। इस बाग की देखरेख खुद मलिक सिराजद्दीन को बरसे में मिली थी। कहा जाता है कि 1947 में भारत-पाक विभाजन के दौरान मलिक सिराजद्दीन अपनी सारी संपत्ति को छोड़ परिवार सहित पाकिस्तान चला गया। उसके चले जाने के बाद स्थानीय लोगों ने इस बाग पर कब्जा कर लिया और तकरीबन 13 वर्षों तक उनके कब्जे में रहने के बाद 1960 में कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम मुहम्मद सादिक ने इस बाग को अपने कब्जे में ले लिया। तब से ये जमीन सरकार के कब्जे में ही रही।

2007 में 32 कनाल जमीन पर पहला ट्यूलिप गार्डन बनाया गया। उस वक्त सिराज बाग का नाम तबदील करके गुल-ए-लाला या ट्यूलिप गार्डन रखा गया। वर्ष 2008 में इस बाग को 100 कनाल तक बढ़ाया गया, जबकि तीसरे चरण में इस बाग को और बढ़ाने की योजना है। जब-जब इस बाग को बढ़ाया गया तब-तब इसके नाम भी तबदील होते रहे। लेकिन स्थानीय लोग आज भी इसे सिराज बाग कहते हैं।

पिछली बार की ही तरह इस बार भी 4 लाख से अधिक ट्यूलिप बाग में किसी फसल की तरह लहरा रहे हैं। ट्यूलिप के तीन लाख बल्ब पिछले साल हालैंड से खरीदे गए थे। इस साल डेढ़ लाख और की जरूरत इसलिए पड़ गई क्योंकि सिराज बाग को एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन जो बनाना था। ट्यूलिप पर फूल खिलने का समय मार्च से मई महीने के बीच का है और इन दो महीनों में ही यह अपना रिकार्ड तोड़ देता है। पिछले साल कश्मीर आए 15 लाख टूरिस्टों में से शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस बाग के दर्शनों को नहीं गया हो।

जब्रवान पहाड़ियों की तलहटी में स्थित ट्यूलिप गार्डन में खिलने वाले सफेद, पीले, नीले, लाल और गुलाबी रंग के ट्यूलिप के फूल आज नीदरलैंड में खिलने वाले फूलों का मुकाबला कर रहे हैं। फूल प्रेमियों के लिए ये नीदरलैंड का ही माहौल कश्मीर में इसलिए पैदा करते हैं क्योंकि भारत भर में सिर्फ कश्मीर ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर मार्च से लेकर मई के अंत तक तीन महीनों के दौरान ये अपनी छटा बिखेरते हैं। रोचक बात यह है कि पिछले साल ट्यूलिप गार्डन के आकर्षण में बंध कर आने वालों की भीड़ से चकित होकर कश्मीर के किसानों ने भी अब ट्यूलिप के फूलों की खेती में हाथ डाल लिया है। वे इस कोशिश में कामयाब भी हो रहे हैं कि जिन केसर क्यारियों में बारूद की गंध 26 सालों से महक रही हो वहां अब ट्यूलिप की खुशबू भी हो चाहे वह कम अवधि के लिए ही क्यों न हो।

यह सच है कि अभी तक कश्मीर में डल झील और मुगल गार्डन- शालीमार बाग, निशात और चश्माशाही ही आने वालों के आकर्षण का केंद्र थे और कश्मीर को दुनिया भर के लोग इसलिए भी जानते थे। लेकिन अब वक्त ने करवट ली तो ट्यूलिप गार्डन के कारण कश्मीर की पहचान बनती जा रही है। चाहे इसके लिए डल झील पर मंडराते खतरे से उत्पन्न परिस्थिति कह लिजिए या फिर मुगल उद्यानों की देखभाल न कर पाने के लिए पैदा हुए हालत की कश्मीर अब ट्यूलिप गार्डन के लिए जाना जाने लगा है।

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