तीन रंगों की धरती लद्दाख में देखने के लिए बहुत कुछ है

There is a lot to see in the three colors land Ladakh

तीनों रंगों की धरती लद्दाख अपने आप में अनेकों रहस्यों को समेटे हुए है। आकाश से इस पर अगर एक नजर दौड़ाई जाए तो मिट्टी रंग की जमीन में सफेद चादर बर्फ की देख आनंदित हुए बिना नहीं रहा जा सकता।

तीनों रंगों की धरती लद्दाख अपने आप में अनेकों रहस्यों को समेटे हुए है। आकाश से इस पर अगर एक नजर दौड़ाई जाए तो मिट्टी रंग की जमीन में सफेद चादर बर्फ की देख आनंदित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। जबकि घाटी में सफेद बर्फ से ढंके इन पहाड़ों की परछाईयां भी भयानक और खूबसूरत काली जमीन को प्रस्तुत करती हैं। और ज्यों ज्यों आदमी धरती की ओर लौटता है तो उसे यह धरती और भी खूबसूरत नजर आने लगती है जहां फूलों की घाटियों के साथ-साथ लामाओं की कतारें देख लगता है जैसे आदमी किसी परिलोक में आ गया हो।

लद्दाख आरंभ से ही इतिहास के पृष्ठों में रहस्यों से भरी भूमि के रूप में जाना जाता रहा है। कहा जाता है कि एक चीनी यात्री फा-हेयन द्वारा 399 एडी में इस प्रदेश की यात्रा करने से पहले तक यह धरती रहस्यों की धरती थी और इसे दर्रों की भूमि के रूप में भी जाना जाता है तभी इसका नाम ‘ला’ और ‘द्दागस’ के मिश्रण से लद्दाख पड़ा है जो समुद्रतल से 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित और करीब 97000 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला होने के कारण राज्य का सबसे बड़ा प्रदेश है।

जम्मू कश्मीर का सबसे बड़ा प्रदेश होने के साथ साथ लद्दाख विशिष्टताओं के कारण देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। अनेक जातियों, संस्कृतियों व भाषाओं का संगम बना यह प्रदेश एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है। जो एक ओर पाकिस्तान तो दूसरी ओर चीन से घिरा हुआ है। लद्दाख के पर्वत पर्वतारोहण करने वालों के मध्य काफी लोकप्रिय हैं। 

कब जाएं: हमेशा बर्फ से ढके रहने के कारण लद्दाख के अधिकतर भाग कई कई महीने समस्त विश्व से कटे रहते हैं लेकिन फिर भी मई से लेकर नवम्बर तक का मौसम इस क्षेत्र में जाने का सबसे अच्छा समय है। 

कैसे जाएं: वायुमार्ग- जम्मू, चंडीगढ़, दिल्ली, श्रीनगर से लेह के लिए इंडियन एयरलाइंस की सीधी उड़ानें हैं।

लेह शहर में आपको टैक्सी, जीपें तथा जोंगा को किराए पर लेना पड़ता है। यह स्थानीय ट्रांसपोर्ट तथा बाहरी क्षेत्रों में जाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।

रेल मार्गः सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू है जो 690 किमी दूर है। और जम्मू रेलवे स्टेशन देश के प्रत्येक भाग से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। 

सड़क मार्गः लेह तक पहुंचने के लिए जम्मू-श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग है जिसमें सबसे ऊंचा दर्रा 13479 फुट की ऊंचाई पर फोतुला है। लेह से श्रीनगर 434 किमी, करगिल 230 किमी तथा जम्मू 690 किमी दूर है। 

क्या देखें: लेह अपने बौद्ध मंदिरों तथा मठों के लिए प्रसिद्ध है। जो पूरे लेह में स्थान स्थान पर कुकुरमुतों की तरह दिखते हैं। असल में यह बौद्ध मंदिर पुराने धार्मिक दस्तावेजों तथा चित्रों को सुरक्षित रखने के स्थान हैं। जो आज भी अपनी ओर सबको आकर्षित करते हैं।

लेह महल: इस महल का निर्माण सिगें नामग्यान ने 16वीं शताब्दी में करवाया था। यह महल शहर के बीचों बीच खड़ा हर आने जाने वाले को अपनी ओर आकर्षित करता तो है ही साथ ही में अपनी कला और भगवान बुद्ध के जीवन को जीवंत रूप से चित्रित करती पेंटिग्स इसकी खासियत हैं।

नामग्याल तेस्मो: लेह शहर जो एक घाटी में स्थित है इसके कारण और खूबसूरत नजर आता है जो कस्बे तथा लेह महल पर अपना प्रभाव छोड़ता है। यह पवित्र राजा का प्रभाव भी दिखाता है। इस मठ में भगवान बुद्ध की एकमूर्ति, दीवार की पेंटिंग्स, पुराने दस्तावेज तथा अन्य एतिहासिक और धार्मिक वस्तुएं रखी गई हैं।

लेह मस्जिद: इसका निर्माण 17वीं सदी में देलदन नामग्याल ने किया था जो अपनी मुस्लिम मां के प्रति एक श्रद्धांजलि थी। तुर्क और इरानी कलाकृति को अपने आप में समेटने वाली यह मस्जिद आज भी मुख्य बाजार में यथावत अपने स्थान पर है।

स्टाक पैलेस म्यूजियम: लेह कस्बे से 17 किमी दूर स्टाक में स्थित इस संग्रहालय में कीमती पत्थर, थंका (लद्दाखी चित्र), पुराने सिक्के, शाही मुकुट तथा अन्य शाही वस्तुएं रखी गई हैं। यह संग्रहालय सुबह सात बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है।

गोम्पा तेस्मो: लेह महल के पास ही स्थित यह गोम्पा भगवान बुद्ध की डबल स्टोरी मूर्ति के लिए जाना जाता है जिसमें भगवान बुद्ध को बैठी हुई मुद्रा में दिखाया गया है। यह भी शाही मठ है। 

इसके अतिरिक्त लेह के आसपास आलचरी गोम्पा, चोगमलसार, हेमिस गोम्पा, लामायारू, लीकिर गोम्पा, फियांग गोम्पा, शंकर गोम्पा, शे मठ तथा महल, स्पीतुक मठ, स्तकना बौद्ध मंदिर, थिकसे मठ तथा हेमिस नेशनल पार्क भी देखने योग्य हैं जिनको देखने के लिए ही लोग इस कस्बे में आते हैं जो लेह कस्बे से 2 किमी से 60 किमी की दूरी तक हैं।

उत्सव: 

हेमिस उत्सव: यह जून में मनाया जाता है। यह प्रत्येक वर्ष गुरु पद्यसंभवा, जिनके प्रति लोगों का मानना है कि उन्होंने स्थानीय लोगों को बचाने के लिए दुष्टों से युद्ध किया था, की याद में मनाया जाता है। इस उत्सव की सबसे खास बात मुखौटा नृत्य है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से कई लाख लोग आते हैं।

लोसर: यह प्रति वर्ष बौद्ध वर्ष के ग्यारहवें महीने में मनाया जाता है। यह 15वीं सदी से मनाया जाता है। इसको मनाने के पीछे यही सोच होती है कि युद्ध से पूर्व इसे इसलिए मनाया जाता था क्योंकि न जाने कोई युद्ध में जीवित बचेगा भी या नहीं।

लद्दाख उत्सव: यह प्रत्येक वर्ष अगस्त में मनाया जाता है और इसका आयोजन पर्यटन विभाग की ओर से किया जाता है। इसके दौरान विभिन्न बौद्ध मठों में होने वाले धार्मिक उत्सवों का आनंद पर्यटक उठाते हैं।

करगिल: लद्दाख क्षेत्र का सबसे बड़ा और दूसरा कस्बा करगिल है जो श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग के बीच आता है जहां पर दरास, सुरू घाटी, रंगदुम, मुलबेक, जंस्कार, करशा, बुरदान, फुगताल, जोंगखुल आदि स्थान देखने योग्य हैं जो अपनी खूबसूती के लिए प्रसिद्ध हैं।

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