कोरोना के चलते क्रिसमस के मौके पर बंद रहेगा एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च

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क्रिसमस को लेकर लोग यहां खास तौर पर पहुंचे। लेकिन इस वर्ष एशिया के दूसरे सबसे बड़े चर्च में रौशनी और क्रिसमस ट्री की खूबसूरत सजावट इस बार देखने को नहीं मिलेगी? कोरोना महामारी ने इस साल सभी त्योहारों का रंग फीका कर दिया है। इससे क्रिसमस का त्योहार भी अछूता नहीं रहा है।

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जशपुर जिले में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी चर्च है। कुनकुरी स्थित इस चर्च में एक साथ करीब 10 हजार लोग प्रार्थना कर सकते हैं। रोजरी की महारानी नाम से मशहूर यह महागिरजाघर ईसाई धर्मावलंबियों की आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के कुनकुरी क्षेत्र में स्थित इस चर्च को एशिया के दूसरे सबसे बड़े गिरजाघर होने का गौरव प्राप्त है। एशिया का सबसे बड़ा चर्च सुमी बैप्टिस्ट चर्च नूहेबोटो, नगालैंड में है। वहीं, दुनिया का सबसे बड़ा चर्च सेंट बेसिलिका चर्च वेटिकन सिटी में है।

रोजरी की महारानी चर्च में 10 हजार व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है, जो यहां एकसाथ प्रार्थना कर सकते हैं। जर्मन वास्तुकला पर आधारित इस चर्च का निर्माण एक ही बीम पर किया गया है, जिसके सहारे सात छतें टिकी हैं। सफेद संगमरमर से बना इस चर्च के निर्माण में सफेद संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है।

छत्तीसगढ़ के जशपुर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर कुनकुरी में बसा ये चर्च वास्तुकला का अदभुत नमूना है। क्रिसमस आते ही चर्च की रौनक कई गुना बढ़ जाती है। चर्च की कई विशेषताएं हैं जिसमें सबसे खास बात ये है कि यह विशालकाय भवन केवल एक पिलर पर टिका हुआ है।

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क्रिसमस को लेकर लोग यहां खास तौर पर पहुंचे। लेकिन इस वर्ष एशिया के दूसरे सबसे बड़े चर्च में रौशनी और क्रिसमस ट्री की खूबसूरत सजावट इस बार देखने को नहीं मिलेगी? कोरोना महामारी ने इस साल सभी त्योहारों का रंग फीका कर दिया है। इससे क्रिसमस का त्योहार भी अछूता नहीं रहा है। हम बात कर रहे हैं एशिया के दूसरे सबसे बड़े क्रिश्चियन समुदाय के आस्था के केंद्र रोजरी की महारानी गिरजाघर की जो छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के कुनकुरी क्षेत्र में स्थित है। यहां करीब 10 हजार से ज्यादा लोग खड़े होकर प्रार्थना कर सकते हैं। लेकिन कोरोना के चलते इस बार क्रिसमस के खास मौके पर भी यह चर्च बंद रहेगा।

चर्च के फादर श्री तरसीसीयूस केरकेट्टा से जब हमने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हुए इस बार चर्च में होने वाली पूजा-अर्चना को रोक दिया गया है। उन्होंने सद्भावना का परिचय देते हुए कहा कि जिस तरह हिन्दू धर्म मे होने वाली दीपावली दशहरा को हिन्दू भाइयों ने काफी कोविड के नियमों के आधार पर मनाया, उसी तरह हम भी ईसाई समुदाय के आस्था के सबसे बड़े पर्व क्रिसमस को अपने-अपने घरों पर सादगी से मनाएंगे। उन्होंने कहा कि बड़ा चर्च होने के कारण यहां हर राज्यों से हजारों-लाखों की संख्या में यीशु के अनुयायी पहुंचते हैं। ऐसे में कोरोना के खतरे को देखते हुए चर्च को बंद रखने का फैसला लिया गया है। 

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एशिया का सबसे बड़ा चर्च

बता दें कि एशिया के दूसरे सबसे बड़े चर्च छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के कुनकुरी में स्थित है। जहां एक साथ 10, 000 लोग प्रार्थना करते हैं। इस चर्च की कई विशेषताएं हैं। चर्च की सारी दीवाल और सीलिंग एक बीम पर टिकी हुई है और इसे बनाने के लिए बेल्जियम से इंजीनियर बुलाया गया था। जिसको गूगल पर भी स्थान दिया गया है।

7 छतों में ईश्वर का संदेश

कैथलीक समुदाय में 7 नंबर को महत्वपूर्ण माना गया है, हफ्ते में दिन भी 7 होते हैं। 7वां दिन भगवान का दिन होता है। चर्च में 7 छतें हैं। यह सभी एक ही बिम पर टिकी हैं। चर्च प्रबंधन के अनुसार यह दिखाता है सभी मानवों को ईश्वर ने ही संभाल रखा है। चर्च का आकार अर्धगोलाकार है। यह भगवान की फैली हुई बाहों की तरह है, जो सभी मानवों को अपने पास बुलाती है। इस चर्च को देखने हर साल करीब 5 लाख लोग आते हैं।

3 हजार 400 वर्गफुट एरिया में फैली यह चर्च देश की सबसे बड़ी और एशिया में दूसरी सबसे बड़ी चर्च है। एशिया की सबसे बड़ी चर्च नागालैंड में है। वर्तमान में कुनकुरी, जशपुर जिला का तहसील मुख्यालय है। क्रिसमस में न केवल देश से ही बल्कि विदेशों से भी लोग यहां पंहुच कर प्रभु की प्रार्थना करते हैं। कुनकुरी चर्च की आधारशिला 1962 में रखी गई थी। इसकी नींव तैयार होने में ही दो साल लग गए, जो 1964 मे पूर्ण किया गया। इस महागिरजाघर का निर्माण 1979 में पूरा हुआ और इसका लोकार्पण 1982 में हुआ। 

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इस भवन में 7 अंक का विशेष महत्व है। इसमें 7 छत और 7 दरवाजे मौजूद है. एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च कहलाने वाले इस चर्च में एक साथ 10 हजार श्रद्धालु प्रार्थना कर सकते हैं। क्रिसमस में न केवल देश से ही बल्कि विदेशों से भी लोग यहां पहुंच कर प्रभु इसा मसीह की प्रार्थना करते हैं। ये चर्च धार्मिक सौहार्द का प्रतीक है।

17 साल में बन कर तैयार हुआ था महागिरजाघर

इस चर्च की आधारशिला 1962 में रखी गई थी। जिसका एक हिस्सा 1964 में और दूसरा हिस्सा 1979 में पूरा हुआ। जिसका लोकार्पण 1982 में हुआ. 17 साल में बन कर तैयार हुए इस महागिरजाघर को आदिवासी मजदूरों ने बनाया है। इस चर्च की अनूठी वास्तुकला और बनावट बाइबिल में लिखे तथ्यों के आधार पर बनाई गई है। जिले में इस चर्च के लगभग 2 लाख से ज्यादा अनुयायी हैं।

दूर-दूर से आते हैं सैलानी

जशपुर के इस चर्च को देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं। जिले के कई चर्चों में महीने भर से कैरोल गीत की धुन गूंजा करती है, लेकिन कुनकुरी के चर्च में कैरोल गीत की विशेष धुन मन मोह लेने वाली होती है। यह इस क्षेत्र के इसाई धर्मावलंबियों का मक्का माना जाता है। जहां लाखों की संख्या में लोग चर्च में आते रहते हैं। बेजोड़ वास्तुकला, सुंदरता,भव्यता, प्रार्थना और अपनी आकृति के लिए पूरे देश में विख्यात हैं।

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