Delhi Riots– A tale of Burn & Blame: दिल्ली दंगों की इनसाइड स्टोरी और एजेंडा को दर्शाती है यह फिल्म

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अंकित सिंह । Feb 23 2022 12:45PM

इस फिल्म में दिल्ली दंगों को गहराई से जानने की कोशिश की गई है और जिन लोगों को इन दंगो ने प्रभावित किया उनके दर्द को भी बयां किया गया है। गौरतलब है कि उत्तरी पूर्वी दिल्ली में 23 फरवरी 2020 को यह दंगे भड़के थे।

दिल्ली दंगों के 2 साल पूरे हो चुके हैं। 23 फरवरी 2020 को दिल्ली में हुए दंगों ने राष्ट्रीय राजधानी को कलंकित किया था। दिल्ली दंगों को लेकर तमाम जांच चल रही हैं। इसके साथ ही सभी पक्षों के अपने अलग-अलग दावे हैं। दिल्ली दंगों पर ही अब एक फिल्म भी सामने आई है। इस फिल्म को निर्देशित किया है कमलेश के मिश्रा। कमलेश के मिश्रा 66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता भी हैं। फिल्म को प्रोड्यूस किया है नवीन बंसल ने। फिल्म का नाम है Delhi Riots – A tale of Burn & Blame। इस फिल्म में दिल्ली दंगों के पीछे असल कहानी को बताने की कोशिश की गई है। फिल्म में दंगों की असली तस्वीर को दिखाने की कोशिश की गई। साथ ही साथ उन प्रत्यक्षदर्शियों के अनुभव को भी बताने की कोशिश की गई है जो एक प्रोपेगेंडा या एजेंडा के तहत प्रताड़ित किए गए। आपको बता दें कि दिल्ली दंगे में 53 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।

इस फिल्म में दिल्ली दंगों को गहराई से जानने की कोशिश की गई है और जिन लोगों को इन दंगो ने प्रभावित किया उनके दर्द को भी बयां किया गया है। गौरतलब है कि उत्तरी पूर्वी दिल्ली में 23 फरवरी 2020 को यह दंगे भड़के थे। हालांकि इन दंगों का असर काफी लंबा रहा। दंगे में दिल्ली पुलिस के जवान और एक आईबी अधिकारी की भी मौत हुई थी। इसके अलावा 200 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे जबकि 400 से अधिक के पुलिस के जवान भी इस दंगे में घायल हुए थे। कई घरों और दुकानों में आग लगा दी गई थी जबकि 500 से ज्यादा वाहनों को जलाया गया था। इन दंगों को लेकर 700 सौ से ज्यादा एफआईआर दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा फॉरेंसिक जांच और इंटेलिजेंस के आधार पर मामले की पूरी जांच की जा रही है। 

इस फिल्म को शशांक फिल्म्स इंडिया पीवीटी एलटीडी की ओर से प्रस्तुत किया गया है। यह फिल्म 23 फरवरी 2022 को यूट्यूब पर रिलीज की गई है। फिल्म निर्माता मिश्रा ने बताया कि उनकी लगभग 80 मिनट कि यह डॉक्यूमेंट्री दंगों में अपने परिजनों को खोने वाले उन लोगों के दर्द और पीड़ा को बयां किया गया है। उन्होंने बताया कि इन दंगों को सीएए से जोड़कर देखा गया और इसी के इर्द-गिर्द मुद्दे को उछाला गया। लेकिन कहीं ना कहीं इस शोर में दंगों में अपनों को खोने वाले लोगों के दर्द पीड़ा और नुकसान को नजरअंदाज किया गया। यह फिल्म उसी पीड़ा और दर्द को दिखाने की एक छोटी सी कोशिश है। 

यह रही फिल्म

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