जो डायनासोर चीन में था, अब उसके जैसे ही अन्य के कंकाल Scotland में भी मिले
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वैज्ञानिकों को स्कॉटलैंड के आइल ऑफ स्काई डायनासोर की एक नई प्रजाति मिली है जो कि टेरोसोर से ताल्लुक रखती है। डायनोसोर की ये प्रजाति सिओप्टेरा इवांसे नाम की है, जो कि मूल रूप से पंख वाला डायनासोर माना जाता है।
डायनासोर एक ऐसी प्रजाति है जो कि वर्षों पहले पृथ्वी पर हुआ करती थी मगर अब ये प्रजाति विलुप्त हो चुकी है। इस प्रजाति को आज के लोगों ने सिर्फ टीवी और फिल्मों के माध्यम से ही देखा और जाना है। डायनासोर का ऐसा रूप उसके कंकालों और अवशेषों के आधार पर दिया गया है। ऐसा ही एक और अवशेष वैज्ञानिकों को स्कॉटलैंड में देखने को मिला है।
वैज्ञानिकों को स्कॉटलैंड के आइल ऑफ स्काई डायनासोर की एक नई प्रजाति मिली है जो कि टेरोसोर से ताल्लुक रखती है। डायनोसोर की ये प्रजाति सिओप्टेरा इवांसे नाम की है, जो कि मूल रूप से पंख वाला डायनासोर माना जाता है। आंकड़ों के अनुसार ये डायनासोर 168 से 16 करोड़ वर्ष पहले मध्य भारत के जुरासिक काल के दौरान धरती पर रहता था। डायनासोर को लेकर स्कॉटलैंड में वैज्ञानिकों को हैरान करने वाली जानकारी मिली है।
वर्ष 2006 में जीवाश्म वैज्ञानिकों को दक्षिण पश्चिमी तट पर एल्गोल की क्षेत्रीय यात्रा के दौरान डायनासोर की टेरोसोर प्रजाति के जीवाश्म मिले थे। इसमें सबसे महत्वपूर्ण और हैरान करने वाली बात है कि जिस प्रजाति के जीवाश्म स्कॉटलैंड में मिले हैं वो आमतौर पर कई किलोमीटर दूर चीन में पाए जाते है। ये प्रजाति डार्विनोप्टेरा के जीव है, जो मूल रूप से चीन में पाए जाते थे। इसके जीवाश्म ही पहले यहां खोजे गए थे।
बता दें कि स्कॉटलैंड में जो कंकाल मिला है, उसमें कंधे, पंख, पैर और रीढ़ की हड्डी के हिस्से मिले है। वैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि हड्डियों को देखकर लगता है कि ये टेरोसोर की है। टेरोसोर डायनासोर और मगरमच्छ दोनों से ही जुड़ा हुआ था। आमतौर पर लंबी पूंछ और उड़ने वाला ये रेप्टाइल कई तरह की नस्लों में विकसित था। हालांकि अभी जो कंकाल मिला है उसके जरिए इस रेप्टाइल की पूरी तस्वीर बनाने में काफी मुश्किल आ रही है।
ये जीवाश्म दुर्लभ होने के साथ ही अधूरे भी हैं जिस कारण ये समझना मुश्किल हो गया है कि ये जीव विकसित कैसे हुए थे। वहीं कई वैज्ञानिक स्कॉटलैंड में मिले इस जीवाश्म को देखकर काफी हैरान हैं क्योंकि जो जीवाश्म उससे मिलते जुलते जीवाश्म अधिकतर चीन में पाए जाते है। हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि इसने अपने पंखों को फैलाया होगा जिससे ये दुनिया के अलग अलग जगहों पर पहुंच सका।
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