लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने आपने अदम्य साहस से पाक के बंकरों को तबाह कर मैदान से खदेड़ा था...

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रेनू तिवारी । Jul 24 2019 7:49PM

दुश्मन ऊपर से लगातार फायरिंग कर रहे थे ऐेसे में लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे की टीम 1/11 गोरखा राइफल्स को होशियारी के साथ अपनी जान बचाते हुए चढ़ाई करके दुश्मनों को खत्म करना था।

25 जून 1975 में उत्तर प्रदेश के सीतापुर में जन्मे लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे भारतीय सेना के अधिकारी थे जिन्हें सन 1999 के कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के वीर सपूतों ने अदम्य साहस दिखाते हुए दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये। इन्हीं वीरों में से एक थे लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे जिसकी बहादुरी से दुश्मन धराशायी हो गये थे। भारतीय थल सेना अध्यक्ष (भूतपूर्व) जनरल वीपी मलिक ने अपनी पुस्तक 'कारगिल: एक अभूतपूर्व विजय' में लिखा है कि कारगिल युद्ध के दौरान लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे और उनकी टीम 1/11 गोरखा राइफल्स को खालूबार क्षेत्र से पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे खदेड़कर कर उनके ठिकानों को नष्ट करने की जिम्मेदारी दी गई थी।

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खालूबार क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना ने पूरी तरह से कब्जा करके चार बंकर बना रखे थे। ये बंकर ऊंची चोटी पर बने थे। दुश्मन ऊपर से लगातार फायरिंग कर रहे थे ऐेसे में लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे की टीम 1/11 गोरखा राइफल्स को होशियारी के साथ अपनी जान बचाते हुए चढ़ाई करके दुश्मनों को खत्म करना था। दिन में दुश्मनों की आंखों के सामने ये चढ़ाई करना मुश्किल था इसलिए लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने रात के समय नेस्तनाबूद करने की योजना बनाई। 

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रात में चढ़ाई की योजना की जानकारी पाकिस्तानी सेना को लग गई थी इस लिए जब मनोज की टीम चढ़ाई कर रही थी तभी पाकिस्तानी सेना ने गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। ऐसे में लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने अपनी सूझबूझ से टीम को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और योजना में बदलाव करके टीम को दो भागों में बांटा। पहली टीम को दाहिनी ओर से चढ़ाई करने को कहा और दूसरी टीम का खुद नेतृत्व किया और बाईं ओर से चढ़ाई शुरू कर दी। अपनी योजना के अनुसार टीमें पाकिस्तानी बंकरों के पास पहुंच गई और लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने बंकर के पास आने पर पाकिस्तानी सैनिकों पर गोलियां बरसाईं और पहला बंकर तबाह कर दिया तभी पाकिस्तानी सेना चौकन्नी हो गई और गोलियों के साथ बमबारी शुरू कर दी। लेफ्टिनेंट की टीम आगे बढ़ी और दूसरे बंकर को भी तबाह कर दिया अब बस दो बंरप ही बचे थे। तीसरे बंकर को नष्ट करने के लिए मनोज की टीम आगे बढ़ी तभी दुश्मन की एक गोली उन्हें लग गई। दो बंकर अभी बाकि थे और मनोज के पैर और कंधे पूरी तरह जख्मी हो गये थे। लेकिन फौलादी वीर ने हार नहीं मानी और तीसरे बंकर की तरफ बढ़े और वहां तैनात दुश्मन सेनिक को मौत के घाट उतार कर तीसरे बंकर को नष्ट कर दिया। इस समय मनोज पूरी तरह से घायल हो चुके थे लेकिन फिर भी वह आगे बढ़ते रहे मनोज चौथे बंकर की तरफ बढ़े और जैसे ही चौथे बंकर को तबाह करने के लिए गोला फेंका तभी पाकिस्तानी मशीन गन का गोला उनके सिर के पास आकर गिरा और इस धमाके में मनोज शहीद हो गये लेकिन चौथा बंकर भी तबाह हो गया। मनोज ने अपनी टीम के साथ मिलकर खालूबार क्षेत्र के सारे बंकरों को तबाह किया और खुद हमेशा के लिए अमर हो गये।

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