ओडिशा के मनाये जाने वाले प्रमुख उत्सवों में से एक है 'बालि यात्रा'

Bali Yatra
Creative Commons licenses

ओडिशा के समृद्ध समुद्री इतिहास को याद करने वाला त्योहार, बाली यात्रा, पूरे राज्य में मनाया जाता है। ऐतिहासिक शहर कटक में, कार्तिक पूर्णिमा के दिन (कार्तिक महीने, अर्थात अक्टूबर-नवंबर, की पूर्णिमा) से शुरू होकर एक सप्ताह तक चलने वाला कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

बालियात्रा ओडिशा में मनाया जाने वाला एक प्रमुख उत्सव है। यह उत्सव कटक नगर में महानदी के किनारे गडगडिया घाट पर मनाया जाता है। यह उत्सव उस दिन की स्मृति में मनाया जाता है जब प्राचीन काल में ओडिशा के नाविक बाली, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो और श्री लंका आदि सुदूर प्रदेशों की यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। 'बालियात्रा' का शाब्दिक अर्थ है 'बालि की यात्रा'। इन यात्राओं का उद्देश्य व्यापार तथा सांस्कृतिक प्रसार होता था। जिन नावों से वे यात्रा करते थे वे आकार में विशाल होतीं थी और उन्हें 'बोइत' कहते थे।

ओडिशा के समृद्ध समुद्री इतिहास को याद करने वाला त्योहार, बाली यात्रा, पूरे राज्य में मनाया जाता है। ऐतिहासिक शहर कटक में, कार्तिक पूर्णिमा के दिन (कार्तिक महीने, अर्थात अक्टूबर-नवंबर, की पूर्णिमा) से शुरू होकर एक सप्ताह तक चलने वाला कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

इसे भी पढ़ें: गंगा महोत्सव के दौरान लाखों की संख्या में वाराणसी पहुंचते हैं श्रद्धालु, गंगा में डुबकी लगाने का है विशेष महत्व

कलिंग साम्राज्य (वर्तमान ओडिशा) अपने शानदार समुद्री इतिहास के लिए जाना जाता है। कलिंग की भौगोलिक स्थिति के कारण, इस क्षेत्र में चौथी और पाँचवी शताब्दी ईसा पूर्व से ही बंदरगाहों का निर्माण होने लगा था। ताम्रलिप्ति, माणिकपटना, चेलिटालो, पलूर, और पिथुंड जैसे कुछ प्रसिद्ध बंदरगाहों द्वारा भारत समुद्र के रास्ते अन्य देशों से जुड़ सका। जल्द ही, कलिंग वासियों ने श्रीलंका, जावा, बोर्नियो, सुमात्रा, बाली और बर्मा के साथ व्यापारिक संबंध बना लिए। बाली उन चार द्वीपों का हिस्सा था जिसे सामूहिक रूप से सुवर्णद्वीप कहा जाता था, जिसे आज इंडोनेशिया के रूप में जाना जाता है।

कलिंग वासियों ने ‘बोइता’ नाम की बड़ी नावों का निर्माण किया और इनकी मदद से उन्होंने इंडोनेशियाई द्वीपों के साथ व्यापार किया। इन जहाजों के ढाँचे तांबे के होते थे और इनमें एक बार में सात सौ आदमी और जानवर सवार किए जा सकते थे। दिलचस्प बात यह है कि कभी बंगाल की खाड़ी को कलिंग सागर के रूप में जाना जाता था क्योंकि यह कलिंग के इन जहाजों से भरी होती थी। समुद्री मार्गों पर कलिंग वासियों के प्रभुत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि कालिदास ने अपनी ‘रघुवंश’ नामक रचना में कलिंग के राजा को ‘समुद्र का देवता’ कहा है।

(यह लेख के कुछ अंश भारतीय संस्कृति की आधिकारिक वेबसाइट से लिये गये हैं।)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़