खामोश हो गई मुशायरों में गूंजने वाली दमदार आवाज, बेबाक और बेखौफ शायर थे राहत इन्दौरी

Rahat Indori

उर्दू की समकालीन दुनिया में मशहूर शायरों की कोई कमी नहीं है लेकिन राहत इन्दौरी की खासियत यह थी कि वे एक गंभीर शायर होने के साथ-साथ युवा पीढ़ी की नब्ज को भी थाम लेते थे और बड़ी सहजता से शायरी के माध्यम से ऐसी तीखी बात कह जाते थे।

कोरोना संक्रमित होने के अगले ही दिन देश के प्रख्यात शायर राहत इन्दौरी 70 साल की आयु में दुनिया छोड़कर चले गए और मुशायरों में गूंजने वाली दमदार आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई। तबीयत बिगड़ने पर वे 10 अगस्त को इन्दौर के एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए थे, जहां कोविड टेस्ट में पॉजिटिव आने के बाद उन्हें इन्दौर के कोविड अस्पताल अरबिंदो हॉस्पीटल में शिफ्ट किया गया था। 11 अगस्त की सुबह उन्होंने स्वयं ट्वीट कर बताया था कि कोविड के शुरूआती लक्षण दिखने पर कल उनका कोरोना टेस्ट किया गया, जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। दुआ कीजिये कि जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं। साथ ही उन्होंने ट्वीट के जरिये अपने फैंस से यह गुहार भी लगाई थी कि उन्हें या घर के लोगों को फोन ना करें, उनकी खैरियत ट्विटर और फेसबुक पर आपको मिलती रहेगी। कौन जानता था कि यही राहत इन्दौरी साहब का आखिरी ट्वीट होगा। डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें 60 फीसदी निमोनिया था और पहले से ही किडनी, हाइपरटेंशन, डायबिटीज, दिल तथा फेफड़ों में संक्रमण सहित कई बीमारियां थी। अस्पताल में भर्ती कराने के बाद उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा और 11 अगस्त की शाम उन्होंने अंतिम सांस ली।

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इन्दौर में एक कपड़ा मिल कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी तथा मकबूल उन निशा बेगम के यहां 1 जनवरी 1950 को जन्मे राहत इन्दौरी हिन्दी फिल्मों के गीतकार के अलावा ऐसे भारतीय उर्दू शायर थे, जो बड़े बेबाक और बेखौफ अंदाज में अपनी बात कहने के लिए जाने जाते थे। शायरी के जरिये सत्ता पक्ष के लोगों पर तीखा प्रहार करने के कारण ही वे सदा सत्ता पक्ष के लोगों की आंखों में खटकते रहे। उन्होंने वर्ष 1975 में भोपाल के बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में एमए और 1985 में भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की थी। वे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इन्दौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रहे। 19 साल की उम्र में उन्होंने कॉलेज के दिनों में अपनी पहली शायरी सुनाई थी। कॉलेज में अध्यापन के दौरान एक अच्छे व्याख्याता के रूप में छात्रों की लगातार प्रशंसा पाने के बाद वे मुशायरों में काफी व्यस्त रहने लगे। अपने उन मुशायरों से वे जनता के बीच इतने लोकप्रिय होते गए कि उन्हें देश-विदेश से मुशायरों के निमंत्रण मिलने लगे। चार दशक से भी ज्यादा समय से वे मुशायरों और कवि सम्मेलनों में अपनी शायरी पढ़ रहे थे।

उन्होंने बॉलीवुड की फिल्मों के लिए भी कुछ गीत लिखे, जिनमें फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ का ‘एम बोले तो मुन्ना भाई एमबीबीएस’, ‘घातक’ का ‘कोई जाए तो ले आए’, ‘इश्क’ का ‘नींद चुराई मेरी, तुमने वो सनम’, ‘खुद्दार’ का ‘तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है’, ‘करीब’ का ‘चोरी चोरी जब नजरें मिली’, ‘मर्डर’ का ‘दिल को हजार बार रोका’, ‘सर’ का ‘आज हमने दिल का हर किस्सा’, ‘मिशन कश्मीर’ का ‘बुमरो-बुमरो, श्याम रंग बुमरो’ जैसे गीत काफी लोकप्रिय हुए लेकिन उनकी पहचान कभी भी निदा फाजली या कैफी आजमी जैसे फिल्मी गीतकार जैसी नहीं रही बल्कि उनका नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में एक मशहूर शायर का ही ख्याल आता था। उन्हें महफिल के हिसाब से शायरी पढ़ने में महारत हासिल थी। रोमांटिक शायरी को लेकर एक टीवी शो के दौरान उन्होंने कहा था कि आदमी दिमाग से बूढ़ा होता है, दिल से नहीं।

वैसे तो उर्दू की समकालीन दुनिया में मशहूर शायरों की कोई कमी नहीं है लेकिन राहत इन्दौरी की खासियत यह थी कि वे एक गंभीर शायर होने के साथ-साथ युवा पीढ़ी की नब्ज को भी थाम लेते थे और बड़ी सहजता से शायरी के माध्यम से ऐसी तीखी बात कह जाते थे, जो राजनीति के साथ-साथ समाज को भी चीरती प्रतीत होती थी। उनके शेरों के जरिए अपने हकों को आवाज देने का जो शोर सुनाई देता था, वो उनके समकालीन किसी शायर की आवाज में शायद ही सुनने को मिला हो। अपने शेरों के माध्यम से वे राजतंत्र की खामियों को उजागर करते हुए देश-समाज की व्यवस्थाओं पर चोट करते थे। उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए शायरी की और सदैव आम आदमी की आवाज बने। मुशायरों में जब वे शायरी कर रहे होते थे तो ऐसा प्रतीत होता था, जैसे वे महफिल में मौजूद हर व्यक्ति से सीधे बात कर रहे हैं। सीएए को लेकर देशभर में चले प्रदर्शनों के दौर में उन्होंने काफी तीखे अंदाज में कहा था, ‘‘लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है। जो आज साहिबे मसनद हैं, कल नहीं होंगे। किरायेदार हैं, जाती मकान थोड़ी है, सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है।’’

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ऐसी ही तीखी और बेबाक शायरी के कारण राहत इन्दौरी कुछ लोगों की आंखों में लगातार खटकते रहे और उन्हें लेकर बेवजह विवाद खड़ा करने की कोशिशें भी हुई। कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर उन्हीं के नाम से एक फर्जी शेर भी खूब वायरल किया गया और जब विवाद बढ़ने लगा, तब उन्हें स्वयं सफाई देनी पड़ी थी कि वह उनका शेर नहीं है। हालांकि उन्होंने कई बार अपनी शायरी के माध्यम से अपनी देशभक्ति और हिन्दुस्तानी पहचान साबित भी की। उन्होंने कहा था कि मैं मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना। लॉकडाउन के दौर में जब इन्दौर में डॉक्टरों की टीम पर हमले हो रहे थे, तब उन्होंने हमला करने वालों को एक वीडियो जारी कर कहा था, ‘‘हमारे शहर में जो वाकया पेश आया, उससे पूरे मुल्क के लोगों के सामने शर्मिंदगी से गर्दन झुक गई, शर्मसारी हुई। ये लोग तबीयत देखने आए थे, उनके साथ जो आपने सलूक किया, उससे पूरा हिन्दुस्तान हैरत में है।’’

- योगेश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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