National Anti Terrorism Day 2025: आतंक को हर हाल में करना होगा परास्त

National Anti Terrorism Day
Prabhasakshi

बैसरन घाटी में हुए इस हमले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद की जड़ें अभी भी पाकिस्तान में मौजूद हैं और वहां से संचालित आतंकी संगठन भारत की शांति व्यवस्था को चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर दशकों से आतंक के खौफनाक साये में जी रहा है। बीते कुछ दशकों में आतंकियों ने देश के अन्य हिस्सों में भी कभी किसी भरे बाजार में तो कभी किसी बस या ट्रेन में आतंकियों ने निर्दोषों के लहू से होली खेली है। यह एक ऐसी विकराल समस्या है, जिसने न केवल हजारों लोगों की जान ली है बल्कि अनगिनत परिवारों को तबाह किया है। बच्चे अनाथ हुए, माताएं-बेटियां विधवा हुईं और बुजुर्गों की जीवन-संध्या से सहारा छीन गया। आतंकवादी ऐसे नृशंस कृत्यों के जरिए लोगों के मन में भय भरते हैं, उनका उद्देश्य हिंसा, अस्थिरता और अव्यवस्था फैलाकर समाज को तोड़ना होता है। इन विभीषिकाओं के खिलाफ देश ने जो संघर्ष किया है, उसी के सम्मान में हर साल 21 मई को ‘राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में शहीद हुए जवानों और नागरिकों को श्रद्धांजलि देने का अवसर है। इस दिन देशभर में लोगों को यह शपथ दिलाई जाती है कि वे हर प्रकार की हिंसा और आतंकवाद का विरोध करेंगे, शांति, अहिंसा और सहिष्णुता के सिद्धांतों में विश्वास रखेंगे और देश की एकता, अखंडता व सामाजिक सद्भाव की रक्षा करेंगे।

यह दिन इसलिए भी स्मरणीय है क्योंकि 21 मई 1991 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक महिला आत्मघाती हमलावर द्वारा हत्या कर दी गई थी। यह हमला लिट्टे जैसे आतंकी संगठन की सोची-समझी साजिश का परिणाम था, जिसने केवल एक नेता की जान ही नहीं ली बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को हिला कर रख दिया था। उसी दिन की स्मृति में राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस की शुरुआत हुई ताकि देशवासियों को यह अहसास कराया जा सके कि आतंकवाद किसी व्यक्ति, धर्म या समुदाय का दुश्मन नहीं बल्कि समूची मानवता का शत्रु है। हाल के वर्षों में भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध जो नीति अपनाई है, वह पहले से कहीं अधिक कठोर, रणनीतिक और सशक्त हो चुकी है। विशेषकर जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने जिस बहादुरी से अभियान चलाए हैं, उन्होंने आतंकी नेटवर्क को बड़ा झटका दिया है। धारा 370 हटाए जाने के बाद घाटी में हालात में धीरे-धीरे सुधार आने लगा है। सैकड़ों आतंकी मुठभेड़ों में मारे गए हैं और सुरक्षाबलों ने सीमाओं पर घुसपैठ की अनेक कोशिशें विफल की हैं।

इसे भी पढ़ें: World Hypertension Day 2025: हर साल 17 मई को मनाया जाता है विश्व हाइपरटेंशन डे, जानिए इतिहास और थीम

हालांकि पूरी तरह से आतंक का खात्मा अब भी शेष है। इसकी ताजा मिसाल 22 अप्रैल को अनंतनाग जिले के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले में देखी जा सकती है। बैसरन घाटी में हुए इस हमले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद की जड़ें अभी भी पाकिस्तान में मौजूद हैं और वहां से संचालित आतंकी संगठन भारत की शांति व्यवस्था को चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इस हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई थी। यह हमला ऐसे समय में हुआ, जब घाटी में आतंकी घटनाओं में गिरावट दर्ज की जा रही थी, जो भारत की कूटनीतिक और सुरक्षा नीति की सफलता का संकेत थी। इस नृशंस कृत्य के बाद भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक सैन्य अभियान चलाकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की। रिपोर्टों के अनुसार, इसमें लगभग 100 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया और उनके अनेक अड्डों को नष्ट किया गया। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अब भारत केवल रक्षात्मक रवैया नहीं अपनाएगा बल्कि आतंक के स्रोत पर आक्रमण करेगा।

पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव बनाना शुरू किया और साथ ही सिंधु जल संधि को रद्द करने का भी बेहद निर्णायक फैसला लिया गया। यह समझौता 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था, जिसके अंतर्गत भारत ने पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का जल उपयोग करने का अधिकार दिया था। अब यह विचार प्रबल हो गया है कि जब पाकिस्तान बार-बार आतंकियों को शरण देता है और भारत की नागरिक आबादी को निशाना बनाता है तो ऐसे में इस ऐतिहासिक संधि को बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। भारत के सैन्य अभियानों ने न केवल प्रत्यक्ष रूप से आतंकियों को नुकसान पहुंचाया है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफलता प्राप्त की है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने उसे ग्रे लिस्ट में डालकर उसकी अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त दबाव बनाया है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थानों के सामने भारत ने बार-बार पाकिस्तान के दोहरे रवैये को उजागर किया है, जहां एक ओर वह शांति की बातें करता है, वहीं दूसरी ओर अपनी धरती पर आतंकियों को संरक्षण देता है।

घाटी में हो रहे सकारात्मक बदलावों की जड़ में सुरक्षा बलों की बहादुरी के साथ-साथ स्थानीय जनता की बदली मानसिकता भी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब घाटी में स्थानीय युवाओं की आतंकी संगठनों में भर्ती में काफी गिरावट आई है। पहले जहां एक साल में दर्जनों युवाओं के लापता होने की खबरें आती थी, अब वह संख्या इक्का-दुक्का रह गई है। भारत की वर्तमान नीति ‘आतंक के प्रति शून्य सहनशीलता’ की है और इस नीति के हर पहलू में क्रियान्वयन दिख भी रहा है। अब आतंकी हमलों का जवाब केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहता बल्कि पाकिस्तान की सीमा में घुसकर उनके ठिकानों को नेस्तनाबूद किया जाता है। यह बदलाव केवल सैन्य शक्ति के उपयोग का नहीं बल्कि जन-मन के दृढ़ संकल्प का परिचायक है।

बहरहाल, बेशक आतंकवाद की कमर तोड़ी जा रही है लेकिन अब भी इसकी ‘अंतिम परछाई’ को मिटाना बाकी है। जब तक देश का कोई भी कोना आतंक से मुक्त नहीं होता, तब तक यह संघर्ष जारी रहना चाहिए। आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई केवल हथियारों से नहीं बल्कि समाज की एकजुटता, सूझबूझ और जागरूकता से ही जीती जा सकती है। हर नागरिक को यह समझना होगा कि आतंकवाद केवल सीमाओं की समस्या नहीं बल्कि मानवता का साझा दुश्मन है। आज यह आवश्यक है कि हम राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस के मौके पर न केवल शपथ लें बल्कि उसे व्यवहार में भी उतारें। हममें से हर व्यक्ति आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में सैनिक बने, चाहे वह सूचनाएं देकर सुरक्षा एजेंसियों की मदद करने की बात हो या बच्चों को कट्टरपंथ से दूर रखने की दिशा में पहल करने की। तभी हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर सकेंगे, जहां शांति, सद्भाव, एकता और विकास के मूल्यों की बुनियाद पर भविष्य की इमारत खड़ी होगी।

- योगेश कुमार गोयल

(लेखक 35 वर्षों से पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़