मुस्लिम समुदाय भी मनाते हैं Basant Panchami का त्यौहार, पीले रंग से सजाई जाती है दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह, जानें कैसे शुरू हुई ये प्रथा

बसंत पंचमी वैसे तो हिन्दुओं का त्यौहार है, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस त्यौहार को विशेष तौर मनाते हैं। इस दिन दिल्ली की हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह को पीले रंग से सजाया जाता है और लोग दूर-दूर से यहाँ आते हैं और फूलों की होली खेलते हैं।
आज बसंत पंचमी है। इस दिन हिन्दू समुदाय के लोग ज्ञान, संगीत, विद्या और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती का अवतरण इसी दिन हुआ था। इसलिए इस दिन मां सरस्वती की विशेष तौर पर पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अलावा बसंत पंचमी का त्यौहार बसंत ऋतू की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है।
बसंत पंचमी वैसे तो हिन्दुओं का त्यौहार है, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस त्यौहार को विशेष तौर मनाते हैं। इस दिन दिल्ली की हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह को पीले रंग से सजाया जाता है और लोग दूर-दूर से यहाँ आते हैं और फूलों की होली खेलते हैं। चलिए आपको बताते हैं हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह पर बसंत पंचमी मनाने का चलन कब और कैसे शुरू हुआ।
निज़ामुद्दीन दरगाह बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है?
सूफी संत हजरत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर मनाया जाने वाला बसंत पंचमी का त्यौहार प्रेम और दुख से जुड़ा हुआ है। उनके वंशज और दरगाह समिति के संयुक्त सचिव पीरज़ादा अल्तमश निज़ामी ने दरगाह पर बसंत पंचमी मनाने की कहानी साझा की। निज़ामुद्दीन औलिया, चिश्तिया सिलसिले के संत थे, जो भारत में चार प्रमुख सूफी संप्रदायों में से एक था। इस सिलसिले को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने शुरू किया था। निज़ामुद्दीन औलिया ने कभी शादी नहीं की, इसलिए उन्हें कोई संतान नहीं थी। इसलिए वह अपनी बहन के बेटे ख्वाजा तकीउद्दीन नूह से अपने बच्चों जैसा प्रेम करते थे। ख्वाजा तकीउद्दीन नूह की बीमारी से मृत्यु हो गयी ही, जिसने निज़ामुद्दीन औलिया को काफी दुख पहुंचाया।
निज़ामुद्दीन औलिया के भतीजे अमीर खुसरो, जो प्रसिद्ध कवि और संगीतकार थे, ने उनके दुख को बेहद करीब से देखा था। एक दिन खुसरो की नजर हिंदू महिलाओं के एक समूह पर पड़ी, जो बसंत पंचमी का जश्न मना रही थी। बसंत पंचमी, वसंत के आगमन और सरसों की फसल का प्रतीक त्योहार था। इसलिए महिलाओं ने सरसों के फूलों की टोकरियाँ हाथ में ली हुई थी और पीले कपड़े पहनें हुए थे। खुसरो ने महिलाओं से ऐसा करने की वजह पूछी तो महिलाओं ने उन्हें जवाब दिया कि वे अपने भगवान को प्रसाद चढ़ाने के लिए कालका जी मंदिर जा रहे हैं।
महिलाओं को खुश देखकर अमीर खुसरो ने भी पीले कपड़े पहने और फूलों की एक टोकरी ली और सीधा निज़ामुद्दीन औलिया के पास चले गए। निज़ामुद्दीन औलिया अपने भतीजे खुसरो को खुश देखकर मुस्कुरा दिए। वह काफी समय बाद मुस्कुराये थे, इसलिए इस दिन एक नयी परंपरा का जन्म हुआ। तब से लेकर अब तक हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह पर बसंत पंचमी का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
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निज़ामुद्दीन दरगाह में कैसे मनाई जाती है बसंत पंचमी?
बसंत पंचमी के दिन हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह को पीले रंग से सजाया जाता है। दरगाह में कव्वाली का आयोजन किया जाता है। भक्त दरगाह पर सरसों के फूल चढ़ाते हैं। इसी तरह बसंत पंचमी का त्यौहार गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक बन गया।
Basant programme will be celebrated in Dargah Sharif on Wednesday, 14th February 2024 at 03:30 Pm onwards. For any information regarding Dargah Sharif please contact Syed Anis Nizami or call on +919999804670 pic.twitter.com/Wmz64VUda2
— Hazrat Nizamuddin Aulia Dargah (@DargahShareef) February 11, 2024
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