International Youth Day 2023: नयी विश्व संरचना में युवकों की भागीदारी हो

International Youth Day 2023
Prabhasakshi
ललित गर्ग । Aug 12 2023 12:05PM

स्वामी विवेकानन्द ने भारत के नवनिर्माण के लिये मात्र सौ युवकों की अपेक्षा की थी। क्योंकि वे जानते थे कि युवा ‘विजनरी’ होते हैं और उनका विजन दूरगामी एवं बुनियादी होता है। उनमें नव निर्माण करने की क्षमता होती है।

युवा किसी भी देश का वर्तमान और भविष्य हैं। वो देश की नींव हैं, जिस पर देश की प्रगति और विकास निर्भर करता है। लेकिन आज भी बहुत से ऐसे विकसित और विकासशील राष्ट्र हैं, जहाँ नौजवान ऊर्जा व्यर्थ हो रही है। दुनिया में युवा शक्ति को रचनात्मक एवं सृजनात्मक दिशाओं में नियोजित करके ही नयी विश्व-संरचना बना सकते हैं, क्योंकि युवा क्रांति का प्रतीक है, ऊर्जा का स्रोत है, इस क्रांति एवं ऊर्जा का समुचित उपयोग हो, इसी ध्येय से सारी दुनिया प्रतिवर्ष 12 अगस्त को अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस मनाती है। सन् 2000 में अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन आरम्भ किया गया था। यह दिवस मनाने का मतलब है कि युवाशक्ति का उपयोग विध्वंस में न होकर निर्माण में हो। पूरी दुनिया की सरकारें युवा के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे। न केवल सरकारें बल्कि आम-जनजीवन में भी युवकों की स्थिति, उनके सपने, उनका जीवन लक्ष्य आदि पर चर्चाएं हो। युवाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इन्हीं मूलभूत बातों को लेकर यह दिवस मनाया जाता है। 

युवा दिवस मनाने का मतलब है-एक दिन युवकों के नाम। इस दिन पूरे विश्व में युवापीढ़ी के संदर्भ में चर्चा होगी, उसके हृास और विकास पर चिंतन होगा, उसकी समस्याओं पर विचार होगा और ऐसे रास्ते खोजे जायेंगे, जो इस पीढ़ी को एक सुंदर भविष्य दे सकें। इसका सबसे पहला लाभ तो यही है कि संसार भर में एक वातावरण बन रहा है युवापीढ़ी को अधिक सक्षम और तेजस्वी बनाने के लिए। युवकों से संबंधित संस्थाओं को सचेत और सावधान करना होगा और कोई ऐसा सकारात्मक कार्यक्रम हाथ में लेना होगा, जिसमें निर्माण की प्रक्रिया अपनी गति से चलती रहे। विशेषतः राजनीति में युवकों की सकारात्मक एवं सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा। 

इसे भी पढ़ें: International Day of the World Indigenous Peoples: आदिवासी के अस्तित्व एवं अस्मिता की रक्षा हो

स्वामी विवेकानन्द ने भारत के नवनिर्माण के लिये मात्र सौ युवकों की अपेक्षा की थी। क्योंकि वे जानते थे कि युवा ‘विजनरी’ होते हैं और उनका विजन दूरगामी एवं बुनियादी होता है। उनमें नव निर्माण करने की क्षमता होती है। नया भारत निर्मित करते हुए नरेन्द्र मोदी को भी युवाशक्ति को आगे लाना होगा। वर्तमान में कई देशों में शिक्षा के लिए जरूरी आधारभूत संरचना की कमी है तो कहीं प्रछन्न बेरोजगारी जैसे हालात हैं। इन स्थितियों के बावजूद युवाओें को एक उन्नत एवं आदर्श जीवन की ओर अग्रसर करना वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है। युवा सपनों को आकार देने का अर्थ है सम्पूर्ण मानव जाति के उन्नत भविष्य का निर्माण। यह सच है कि हर दिन के साथ जीवन का एक नया लिफाफा खुलता है, नए अस्तित्व के साथ, नए अर्थ की शुरूआत के साथ, नयी जीवन दिशाओं के साथ। हर नई आंख देखती है इस संसार को अपनी ताजगी भरी नजरों से। इनमें जो सपने उगते हैं इन्हीं में नये समाज की, नयी आदमी की नींव रखी जाती है।

गांधीजी से एक बार पूछा गया कि उनके मन की आश्वस्ति और निराशा का आधार क्या है? गांधीजी बोले- ’इस देश की मिट्टी में अध्यात्म के कण हैं, यह मेरे लिये सबसे बड़ा आश्वासन है। पर इस देश की युवापीढ़ी के मन में करुणा का स्रोत सूख रहा है, यह सबसे बड़ी चिन्ता का विषय है।’ गांधीजी की यह चिन्ता सार्थक थी। क्योंकि किसी भी देश का भविष्य उसकी युवापीढ़ी होती है। यह जितनी जागरूक, तेजस्वी, प्रकाशवान, चरित्रनिष्ठ और सक्षम होगी, भविष्य उतना ही समुज्ज्वल और गतिशील होगा। युवापीढ़ी के सामने दो रास्ते हैं- एक रास्ता है निर्माण का दूसरा रास्ता है ध्वंस का। जहां तक ध्वंस का प्रश्न है, उसे सिखाने की जरूरत नहीं है। अनपढ़, अशिक्षित और अक्षम युवा भी ध्वंस कर सकता है। वास्तव में देखा जाए तो ध्वंस क्रिया नहीं, प्रतिक्रिया है। उपेक्षित, आहत, प्रताड़ित और महत्वाकांक्षी व्यक्ति खुले रूप में ध्वंस के मैदान में उतर जाता है। उसके लिए न योजना बनाने की जरूरत है और न सामग्री जुटाने की। योजनाबद्ध रूप में भी ध्वंस किया जाता है, पर वह ध्वंस के लिए अपरिहार्यता नहीं है। युवापीढ़ी से समाज और देश को बहुत अपेक्षाएं हैं। शरीर पर जितने रोम होते हैं, उनसे भी अधिक उम्मीदें इस पीढ़ी से की जा सकती हैं। उन्हें पूरा करने के लिए युवकों की इच्छाशक्ति संकल्पशक्ति का जागरण करना होगा। घनीभूत इच्छाशक्ति एवं मजबूत संकल्पशक्ति से रास्ते के सारे अवरोध दूर हो जाते हैं और व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है।

मूल प्रश्न है कि क्या हमारे आज के नौजवान भारत को एक सक्षम देश बनाने का स्वप्न देखते हैं? या कि हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी केवल उपभोक्तावादी संस्कृति से जन्मी आत्मकेन्द्रित पीढ़ी है? दोनों में से सच क्या है? दरअसल हमारी युवा पीढ़ी महज स्वप्नजीवी पीढ़ी नहीं है, वह रोज यथार्थ से जूझती है, उसके सामने भ्रष्टाचार, आरक्षण का बिगड़ता स्वरूप, महंगी होती जाती शिक्षा, कैरियर की चुनौती और उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को कुचलने की राजनीति विसंगतियां जैसी तमाम विषमताओं और अवरोधों की ढेरों समस्याएं भी हैं। उनके पास कोरे स्वप्न ही नहीं, बल्कि आंखों में किरकिराता सच भी है। इन जटिल स्थितियों से लौहा लेने की ताकत युवक में ही हैं। क्योंकि युवक शब्द क्रांति का प्रतीक है।

यौवन को प्राप्त करना जीवन का सौभाग्य है। जीने की तीन अवस्थाएं बचपन, यौवन एवं बुढ़ापा हैं, सभी युवावस्था के दौर से गुजरते हैं, लेकिन जिनमें युवकत्व नहीं होता, उनका यौवन व्यर्थ है। उनके निस्तेज चेहरे, चेतना-शून्य उच्छ्वास एवं निराश सोच मात्र ही उस यौवन की साक्षी बनते हैं, जिसके कारण न तो वे अपने लिये कुछ कर पाते हैं और न समाज एवं राष्ट्र को ही कुछ दे पाते हैं। वे इतना सतही जीवन जीते हैं कि व्यक्तिगत स्पर्द्धाओं एवं महत्वाकांक्षाओं में उलझकर अपने ध्येय को विस्मृत कर देते हैं। उनका यौवन कार्यकारी तो होता ही नहीं, खतरनाक प्रमाणित हो जाता है। युवाशक्ति जितनी विराट् और उपयोगी है, उतनी ही खतरनाक भी है। इस परिप्रेक्ष्य में युवाशक्ति का रचनात्मक एवं सृजनात्मक उपयोग करने की जरूरत है।

विचारों के नभ पर कल्पना के इन्द्रधनुष टांगने मात्र से कुछ होने वाला नहीं है, बेहतर जिंदगी जीने के लिए मनुष्य को संघर्ष आमंत्रित करना होगा। वह संघर्ष होगा विश्व के सार्वभौम मूल्यों और मानदंडों को बदलने के लिए। सत्ता, संपदा, धर्म और जाति के आधार पर मनुष्य का जो मूल्यांकन हो रहा है मानव जाति के हित में नहीं है। दूसरा भी तो कोई पैमाना होगा, मनुष्य के अंकन का, पर उसे काम में नहीं लिया जा रहा है। क्योंकि उसमें अहं को पोषण देने की सुविधा नहीं है। क्योंकि वह रास्ता जोखिम भरा है। क्योंकि उस रास्तें में व्यक्तिगत स्वार्थ और व्यामोह की सुरक्षा नहीं है। युवापीढ़ी पर यह दायित्व है कि संघर्ष को आमंत्रित करे, मूल्यांकन का पैमाना बदले, अहं को तोड़े, जोखिम का स्वागत करे, स्वार्थ और व्यामोह से ऊपर उठे। 

अर्नाल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक ‘सरवाइविंग द फ्यूचर’ में नवजवानों को सलाह देते हुए लिखा है ‘मरते दम तक जवानी के जोश को कायम रखना।’ उनको यह इसलिये कहना पड़ा क्योंकि जो जोश उनमें भरा जाता है, यौवन के परिपक्व होते ही उन चीजों को भावुकता या जवानी का जोश कहकर भूलने लगते हैं। वे नीति विरोधी काम करने लगते है, गलत और विध्वंसकारी दिशाओं की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसलिये युवकों के लिये जरूरी है कि वे जोश के साथ होश कायम रखे। वे अगर ऐसा कर सके तो भविष्य उनके हाथों संवर सकता है। इसीलिये सुकरात को भी नवयुवकों पर पूरा भरोसा था। वे जानते थे कि नवयुवकों का दिमाग उपजाऊ जमीन की तरह होता है। उन्नत विचारों का जो बीज बो दें तो वही उग आता है। एथेंस के शासकों को सुकरात का इसलिए भय था कि वह नवयुवकों के दिमाग में अच्छे विचारों के बीज बोनेे की क्षमता रखता था। आज की युवापीढ़ी में उर्वर दिमागों की कमी नहीं है मगर उनके दिलो दिमाग में विचारों के बीज पल्लवित कराने वालेे स्वामी विवेकानन्द और सुकरात जैसे लोग दिनोंदिन घटते जा रहे हैं। कला, संगीत और साहित्य के क्षेत्र में भी ऐसे कितने लोग हैं, जो नई प्रतिभाओं को उभारने के लिए ईमानदारी से प्रयास करते हैं? हेनरी मिलर ने एक बार कहा था- ‘‘मैं जमीन से उगने वाले हर तिनके को नमन करता हूं। इसी प्रकार मुझे हर नवयुवक में वट वृक्ष बनने की क्षमता नजर आती है।’’ महादेवी वर्मा ने भी कहा है ‘‘बलवान राष्ट्र वही होता है जिसकी तरुणाई सबल होती है।’’ इसीलिये युवापीढ़ी पर यह दायित्व है कि वह युवा दिवस पर कोई ऐसी क्रांति घटित करे, जिससे युवकों की जीवनशैली में रचनात्मक परिवर्तन आ सके, हिंसा-आतंक-विध्वंस की राह को छोड़कर वे निर्माण की नयी पगडंडियों पर अग्रसर हो सके।  

- ललित गर्ग

All the updates here:

अन्य न्यूज़