भारतीय सेना में शौर्य दिखा रही हैं शेखावाटी की बेटियां

शेखावाटी क्षेत्र की सैंकड़ों लड़कियां भारतीय सेना की विभिन्न इकाइयों में कार्यरत रहकर देश सेवा कर रही हैं, वहीं क्षेत्र की हजारों लड़कियां रात-दिन मेहनत कर अपने प्रयासों से सेना में भर्ती होने का द्वार खटखटा रही हैं।

राजस्थान में शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी नौकरियों में अपना डंका बजवा चुकीं शेखावाटी की लड़कियां अब सेना जैसे चुनौती भरे क्षेत्र में अपना दमखम दिखा रही हैं। इसके पीछे बड़ी वजह कुछ नया कर दिखाने की चाह है। शेखावाटी क्षेत्र के शिक्षा में आगे होने की वजह से यहां कुछ नया होने का माहौल अपने आप तैयार हो गया। सेना में अभी तक लड़कों का दबदबा था। शायद इस तथ्य ने भी यहां की लड़कियों को दमखम और दबंगई वाली फौजी नौकरी के लिए प्रेरित किया है। सेना भी इन लड़कियों का दिल खोलकर स्वागत कर रही है। यहां के लोग भी अब यहां की लड़कियों के कदमों तले से आती आहट को महसूस कर रहे हैं। शेखावाटी में फौजियों की संख्या पहले से ही अच्छी-खासी है। झुंझुनूं जिला देश का ऐसा पहला जिला है जहां के सेना में सबसे ज्यादा जवान कार्यरत हैं।

भारतीय वायुसेना के लिए 18 जून का दिन ऐतिहासिक था। मौका था इंडियन एयरफोर्स की तीन महिला लड़ाकू विमान पायलट को कमीशन देने का। हैदराबाद स्थित एयरफोर्स एकेडमी में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की मौजूदगी में तीनों महिला फाइटर पायलेट्स की पासिंग आऊट परेड हुई। फिर इंडियन एयरफोर्स की तीन महिला लड़ाकू विमान पायलटों को कमिशन दे दिया गया। राजस्थान के झुंझुनूं जिले की मोहना सिंह, बिहार के दरभंगा की भावना काथ और मध्य प्रदेश के सतना की अवनी चतुर्वेदी को भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान उड़ाने का दायित्व मिला। उन्होंने मार्च में ही लड़ाकू विमान उड़ाने की योग्यता हासिल कर ली थी। इसके बाद उन्हें युद्धक विमान उड़ाने का गहन प्रशिक्षण दिया गया।

यह पहला मौका होगा जब भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान की कॉकपिट में कोई महिला बैठ कर युद्ध के मैदान में दुश्मन से लड़ेगी। वर्तमान में वायुसेना में करीब 1500 महिलाएं हैं जो अलग-अलग विभागों में काम कर रही हैं। 1991 से ही महिलाएं हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ा रही हैं, लेकिन फाइटर प्लेन से उन्हें दूर रखा जाता था। मोहना सिंह की खुशी का भी ठिकाना नहीं है। उनका कहना है हाल ही में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जब उनको महिला फाइटर पाइलेट के लिए योग्य घोषित किया गया, उस वक्त उन्हें सबसे बड़ी खुशी मिली। वह इन दिनों दुश्मनों पर कहर बरपाने की ट्रेनिंग ले रही हैं। उनका कहना है कि वह बचपन से ही अपने पापा की तरह देश की सेवा करना चाहती थीं।

राजस्थान के झुंझुनूं जिले की रहने वाली मोहना सिंह के पिता प्रताप सिंह वायुसेना में बड़ौदरा में वारन्ट अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। मां मंजू देवी शिक्षिका हैं। मोहना सिंह की छोटी बहन नंदनी सिंह दिल्ली में अध्ययनरत हैं। उनका कहना है उन्हें पुरुषों की तुलना में कहीं कोई छूट नहीं मिली है। फिजिकल फिटनेस या मेंटल रोबस्टनेस और टेस्ट्स सभी सेम प्रॉसेस में पास करने थे, लेकिन वह पीछे नहीं हटीं। यही वजह है कि वह अपने मुकाम पर पहुंच सकीं। इन्होंने अमृतसर के जीआईएमईटी से इलेक्ट्रानिक स्ट्रीम से बी.टेक किया है। मोहना ने अपने बायोडाटा में कहा कि मैं पिता और दादा की विरासत आगे बढ़ा रही हूं। मोहना सिंह के दादा वीर चक्र लांसनायक लादूराम 1948 में सेना में रहते हुए लड़ाई में शहीद हो गए थे। यह घटना सोच के स्तर पर शेखावाटी की महिलाओं में तेजी से आ रहे बदलाव की ओर इशारा कर रही है। एक तरह से इसने शेखावाटी की उन साहसी युवतियों के इरादों को बल ही दिया जो देश की सर्वोच्च सैन्य इकाई में आना चाहती हैं।

26 जनवरी 2012 के गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में इंडिया गेट स्थित राजपथ पर देश के इस सबसे बड़े समारोह में वायु सेना की टुकड़ी का नेतृत्व किया था राजस्थान के शेखावाटी अंचल के सीकर जिले की बेटी स्नेहा शेखावत ने। उन्होंने राष्ट्रपति के नाते तीनों सेनाओं की प्रमुख को सलामी दी। इस खास मौके पर सेना की किसी टुकड़ी की अगुआई करने वाली वे देश की पहली महिला सैन्य अधिकारी बन गईं। संयोग देखिए कि उस समय सर्वश्रेष्ठ परेड दस्ते का खिताब भी वायु सेना को ही मिला। आज वे वायु सेना के जहाज उड़ा रही हैं। स्नेहा कहती हैं, फौज में महिला-पुरुष में भेदभाव जैसी कोई बात नहीं। ऐसा होता तो मैं राजपथ पर सलामी परेड की अगुआई करने वाली देश की पहली महिला सैन्य अधिकारी न बन पाती। गांव की लड़कियों के लिए वे एक बड़ा कारगर सूत्र देती हैं। उन्हें सारी झिझक और संकोच छोडक़र इस विश्वास के साथ घर से निकलना चाहिए कि मैं सब कुछ कर सकती हूं।

इस तरह का सपना पालने वाली वे शेखावाटी की अकेली युवती नहीं थीं। और कई इस रास्ते पर चलने की तैयारी कर रही हैं। उनमें चूरू जिले की वीणा सहारण भी हैं। वीणा सहारण आज आइएल-76 नाम का जहाज उड़ा रही हैं। इतना ही नहीं, इस विमान को उड़ाने वाली वे देश की पहली महिला पायलट हैं। इससे पहले इस जहाज को पुरुष पायलट ही उड़ाया करते थे। इसकी वजह थी आइएल-76 का वजन 190 टन होता है और यातायात के हिसाब से यह देश का सबसे बड़ा जहाज है। युद्ध और आपदा जैसी स्थितियों में यह वायु सेना का सबसे उपयोगी वाहन है।

इस जहाज की कमान महिला पायलट के हाथों में देने की पहल भारतीय वायु सेना के इतिहास में बड़ा कदम था। वीणा ने इससे पहले एएन-32 नाम का जहाज उड़ाकर अपनी योग्यता साबित कर चुकी थी। इस जहाज से वे देश के दुर्गम सैन्य स्थलों पर राशन और दूसरी जरूरी चीजें पहुंचाती थीं। कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी प्रदेशों के दुर्गम इलाकों मे वे पूरी दक्षता और हौसले के साथ उड़ान भरती रहीं। भूकम्प, बाढ़ और सूनामी जैसी आपदाओं पर उन्हें जरूरी जिम्मेदारियां सौंपने में वायु सेना के अधिकारियों को संकोच न हुआ। उनकी काबिलियत पर पूरा भरोसा हो जाने के बाद आखिरकार 2009 में उन्हें आइएल-76 की कमान सौंप दी गई। स्क्वाड्रन लीडर वीणा सहारण अब भी इस जहाज को उड़ाने वाली एकमात्र महिला पायलट हैं। वे वायु सेना के एचपीटी-32 और डीओ 228 नाम के जहाज भी उड़ा चुकी हैं।

वीणा की मानें तो सेना की नौकरी लड़कियों के हिसाब से सबसे अच्छी है। उनके शब्दों में, देखिए, लड़कियां चाहे शहर की हों या गांव की, प्रतिभा सब में होती है। जरूरत बस परिजनों से थोड़ा-सा प्रोत्साहन मिलने की होती है। और उडऩे का सपना पूरा होने की खुशी? वह कोई बड़ी बात नहीं। एक दिशा में ईमानदारी से मेहनत के साथ लगे रहें तो कामयाबी मिलनी ही है।

झुंझुनूं जिले के धमोरा गांव की रहने वाली नवीना शेखावत का सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर चयन हुआ था। उसके पिता मनोहर सिंह शेखावत जोधपुर में सेना अभियन्ता सेवा विभाग में कार्यरत हैं। इस कारण उनका परिवार जोधपुर में ही रहता है। नवीना का कहना है कि स्कूल के दिनों से ही मैं सेना के बारे में पढ़ती थी तब मेरे मन में विचार आने लगा कि मुझे सेना में जाना हैं। मेरे माता पिता ने भी मेरे इस फैसले में मेरा हौसला बढ़ाया और मुझे कभी निराश नहीं होने दिया। वह कहती हैं कि मैं कालेज के समय से ही एन.सी.सी. से जुड़ गयी। मैंने एन.सी.सी. में पैरासेलिंग ड्रील, सूटिंग एवं मैंने 9 घंटे 40 मिनट माईक्रोलाइट विमान उड़ा कर रिकार्ड कायम किया। मैंने नेशनल सांइस ओलम्पियाड में भी भाग लिया। 2006 में बैंगलोर में आयोजित वायु सैनिक कैम्प में राजस्थान कंटीजेंट को 30 वर्षों बाद प्रथम स्थान प्राप्त करवाकर मैंने रिकार्ड बनाया।

झुंझुनूं जिले के डाबड़ी धीरसिंह गांव की रेणु शेखावत सेना में लेफ्टिनेंट बनीं हैं। रेणु ने भारतीय सेना की जज एडवोकेट जनरल ब्रांच में कमीशन प्राप्त किया है। रेणु ने ओटीएस चेन्नई में ट्रेनिंग पूरी की। उनकी ट्रेनिंग लड़कों के समान ही रही। देश सेवा के लिए समर्पित रेणु के परिवार में हमेशा से ही देश सेवा का जब्जा रहा है। रेणु के पिता रणवीरसिंह भारतीय नौसेना से सब-लेफ्टिनेंट पद से रिटायर हो चुके हैं। रेणु के दादा नरपतसिंह सीमा सुरक्षा बल से सेवानिवृत्त हैं।

झुंझुनूं जिले के जाबासर गांव की रूख्सार पुत्री अनवार खान का हाल ही में भारतीय तटरक्षक बल में सहायक कमांडेंट के पद पर चयन हुआ है। रूख्सार अपने परिवार की पांचवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं जो लगातार सेना में सेवा देते आ रहे हैं। सेना में शहादत देने के मामले में भी शेखावाटी की बेटियां पीछे नहीं रहती हैं। झुंझुनू जिले के सेफरा गवार गांव की बेटी किरण हरियाणा में मेवात के कुर्थला गांव की बहू थीं। प्रशिक्षण उड़ान के दौरान गोवा तट के समीप डॉर्नियर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें किरण शेखावत की मौत हो गई थी। किरण ने 26 जनवरी 2015 को गणतंत्र दिवस परेड में राजपथ पर नौसेना की महिला टुकड़ी की अगुवाई की थी। नौसेना की वह पहली महिला अधिकारी हैं, जिन्हें देश के लिए शहीद होने का गौरव हासिल हुआ है।

ये तो चन्द ऐसे नाम हैं जिनका वर्णन हो रहा है। आज शेखावाटी की सैंकड़ों लड़कियां भारतीय सेना की विभिन्न इकाइयों में कार्यरत रहकर देश सेवा कर रही हैं, वहीं क्षेत्र की हजारों लड़कियां रात-दिन मेहनत कर अपने प्रयासों से सेना में भर्ती होने का द्वार खटखटा रही हैं। आने वाले समय में शेखावाटी के पुरूषों की तरह ही महिलाओं का साहस भी सेना में देखने को मिलेगा।

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