छठ पूजा 2020 की महत्वपूर्ण तिथियाँ, पूजन विधि और व्रत कथा

Chhath Puja
शुभा दुबे । Nov 18 2020 1:10PM

साल 2020 का छठ पर्व 18 नवंबर से शुरू होकर 21 नवंबर तक चलेगा। 18 नवंबर को छठ पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होगी और इसके बाद 19 तारीख को खरना मनाया जायेगा। खरना के तहत गन्ने के रस की स्वादिष्ट खीर बनाई जाती है।

भगवान सूर्य की उपासना का पर्व छठ पूरे देश में बड़े उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। हालाँकि इस बार कोरोना काल में इस पर्व की धूम कुछ फीकी जरूर पड़ी है लेकिन पूर्वांचली देश-दुनिया के जिस भी कोने में हैं, पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ छठ पर्व को मना रहे हैं। इस बार पिछले वर्षों की तरह घाटों पर पूजन के लिए विशेष इंतजाम तो नहीं हो पाये हैं इसीलिए अधिकतर लोग घरों पर ही पूजन इत्यादि कर रहे हैं। पूर्वांचल के इस त्योहार की छटा पूरे देश में इसलिए देखने को मिलती है क्योंकि यहाँ के लोग देश के अन्य हिस्सों में बस तो गये लेकिन अपनी परम्पराओं और पर्वों को मनाते रहे।

छठ 2020 की महत्वपूर्ण तिथियाँ

साल 2020 का छठ पर्व 18 नवंबर से शुरू होकर 21 नवंबर तक चलेगा। 18 नवंबर को छठ पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होगी और इसके बाद 19 तारीख को खरना मनाया जायेगा। खरना के तहत गन्ने के रस की स्वादिष्ट खीर बनाई जाती है। इसके बाद 20 नवंबर की शाम को भक्त गण छठी मैया को अर्घ्य देने के लिए पानी में उतरेंगे और फिर 21 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगे। इस बार 20 नवंबर को सूर्यास्त का समय 05.26 और 21 नवंबर को सूर्योदय सुबह 06.48 बजे होगा। छठ पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पूरे भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत द्वापर काल में हुई थी। यह पर्व इस मायने में अनोखा है कि इसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की आराधना से होती है। मान्यता है कि छठ पूजा पर अस्त और उगते सूर्य को अर्घ्य देने से समस्त पापों का नाश होता है। छठ पूजा के दौरान भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय छठी मैया से सलामती और खुशहाली के लिए आशीर्वाद माँगा जाता है।

कैसे करें छठ का व्रत

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय खाय से शुरू होने वाले व्रत के दौरान छठव्रती स्नान एवं पूजा पाठ के बाद शुद्ध अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी ग्रहण करते हैं। पंचमी को दिन भर 'खरना का व्रत' रखकर व्रती शाम को गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का 'निर्जला व्रत'। छठ महापर्व के तीसरे दिन शाम को व्रती डूबते सूर्य की आराधना करते हैं और अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पूजा के चौथे दिन व्रतधारी उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य समर्पित करते हैं। इसके पश्चात 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है और व्रती अन्न जल ग्रहण करते हैं। इस अर्घ्य में फल और नारियल के अतिरिक्त ठेकुआ का काफी महत्व होता है। नहाय खाय की तैयारी के दौरान महिलाएं गेहूं धोने और सुखाने तथा बाजारों में चूड़ी, लहठी, आलता और अन्य सुहाग की वस्तुएं खरीदने में व्यस्त रहती हैं। छठ पूजा के अंतिम दिन भक्तगण उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद कच्चा दूध व प्रसाद खाकर व्रत का पारण करते हैं।

कठिन नियमों वाला है व्रत है छठ

छठ व्रत को करने के कुछ कठिन नियम भी हैं जिनमें निर्जल उपवास के अलावा व्रती को सुखद शैय्या का भी त्याग करना होता है। छठ पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताता है। इस व्रत को करने वाले लोग ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। आज भी गाँवों में महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ व्रत करते हैं। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में जो लोग इस व्रत को करते हैं उनके यहाँ एक प्रथा और भी देखने को मिलती है कि घर की महिलाएँ इस व्रत को तब तक करती हैं जब तक कि अगली पीढ़ी की विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाये।

छठी मैया के बारे में

मान्यता है कि छठ माता सूर्य भगवान की बहन हैं इसीलिए श्रद्धालुगण सूर्य को अर्घ्य देकर छठी मैया को प्रसन्न करते हैं। इसके अलावा माँ दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि छठी मैया संतान सुख प्रदान करने वाली हैं और संतान प्राप्ति तथा संतान की सुख-समृद्धि की कामना के लिए भी छठ व्रत किया जाता है।

छठ पर्व से जुड़ी कथा

छठ कथा में कहा गया है कि राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

-शुभा दुबे

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