चैत्र नक्षत्र के चमकते ही नववर्ष में प्रवेश करता है भारत

India new year
सुखी भारती । Apr 12 2021 11:41AM

इतिहास के झरोखें में नववर्ष−जब इतिहास को बांचा जाता है तो भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथियों की रानी जैसी दिखती है। भारतीय कालगणना के अनुसार इसी दिन ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी।

चैत्र नक्षत्र के चमकते ही कश्मीर से लेकर केरल तक, उत्सवों के नगाड़े बज उठते हैं। जैसे कश्मीर में 'नौरोज' या 'नवरेह', पंजाब में 'वैसाखी', महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा', आंध्र प्रदेश में 'युगादि', सिंधी में 'चेतीचंड', केरल में 'विशु', असम में 'रोगली बिहू', बंगाल में 'पोयला बैशाख', तामिलनाडु में 'पुठ'। इन सब पर्वों में भारतीय नववर्ष की ही गूँज सुनाई देती है। इसी दिन नवरात्रि का भी शुभारम्भ होता है, और भारत वर्ष माँ जगदंबा के जयकारों से गूँज उठता है। अत: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर ही भारत नववर्ष में प्रवेश करता है।

इतिहास के झरोखें में नववर्ष−जब इतिहास को बांचा जाता है तो भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथियों की रानी जैसी दिखती है। भारतीय कालगणना के अनुसार इसी दिन ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। ब्रह्मांड पुराण के अनुसार−

चैत्रो मसि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि

शुक्लपक्षे समग्रे तु सदा सुर्योदये सति।।

वेद दशम मंडल के सूक्त में भी एक मंत्र बड़ा स्पष्ट बताता है कि−समुद्रदर्णवादध् संवित्सरो अर्थात तरंगों के महासागर से संवत्सर उत्पन्न हुआ। कहने का तात्पर्य यह है कि हिरण्यगर्भ से जब सृष्टि निर्माण के लिए शब्द तरंगों का झंझावत उठा तो वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ही था। इसलिए भारत के कुछ प्रांतों में इस आदि संवत्सर को 'युगादि' अर्थात 'युग का आदि' नाम से भी सम्बोध्ति किया जाता है। यही नहीं, 'स्मृति कौस्तुभ' के अनुसार इसी घड़ी में भगवान नारायण ने 'मत्स्यवतार' धरण किया था। और यही वह शुभ दिवस था, जब प्रभु श्रीराम जी का अयोध्या के राजसिंहासन पर राज्यभिषेक हुआ था। युगाब्द संवत् का भी पहला दिन यही है, द्वापर में भी धर्मराज युधिष्ठिर का इसी दिन राज्यभिषेक हुआ था। सिख इतिहास के द्वितीय पातशाही गुरु अंगद देव जी व सिंध प्रांत के संत झूलेलाल जी का प्रगटोत्सव भी इसी दिन मनाया जाता है। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी शुभ मुहूर्त पर की थी। 

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चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही भारतीय नववर्ष क्यों−क्योंकि चैत्रा शुक्ल प्रतिपदा को शुभ मुहूर्त माना जाता है। क्योंकि इस दिन नक्षत्राों की दशा, स्थित और प्रभाव उत्तम होता है। गणेश्यामल तंत्र के अनुसार पृथ्वी पर नक्षत्रलोक से चार प्रकार की तरंगें गिरती हैं−यम, सूर्य, प्रजापति और संयुक्त। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रजापति एवं सूर्य नामक तरंगों की बरखा होती है। यदि इस शुभ घड़ी में शुभ संकल्पों के साथ नए साल में कदम रखा जाए तो कहना ही क्या!

हमारे लिए भारतीय नववर्ष को मनाना बिल्कुल भी अव्यवहारिक और अपनी अलग बीन बजाने जैसा नहीं है। यदि आपको ऐसा लगता है तो इन पहलूओं पर मंथन अवश्य कर लेना−

1. हमारे सारे व्यापारिक हिसाब−किताब, बही खाते, सरकारी कामकाज, शिक्षा−सत्र इत्यादि 1 अप्रैल को ही नववर्ष के आरम्भ में लेते हैं। तो फिर हम चैत्रा शुक्ल पक्ष को अपना नववर्ष क्यों स्वीकार नहीं कर पाते?

2. यदि हम अपने धर्मिक अनुष्ठानों, मांगलिक काम−काजों, व्रत उपवासों, मुंडन या विवाहों, तीज−त्योहारों एवं पर्व उत्सवों को भारतीय पांचांग के अनुसार निर्धिरत करते हैं तो पिफर जीवन को हर वर्ष के पहले दिन से क्यों नहीं?

इसका कारण है कि अंग्रज़ों के चले जाने के बाद भी हम अपनी मानसिक गुलामी नहीं छोड़ पाए। और पहली जनवरी को, अपनी परंपरा के विरुद्ध जाकर हमारा नववर्ष मनाना, इसी मानसिक गुलामी का ज्वलंत उदाहरण है। सन् 1752 में 1 जनवरी को नववर्ष मनाना अग्रेज़ो ने ही शुरु किया था और भारतीयों पर इसे थोप दिया। वास्तव में इसकी जडें तो 713 ई.पूर्व रोम के इतिहास में हैं। उस काल में रोम के लोग एक कैलेन्डर को मानते थे, जिसमें एक वर्ष में 10 महीने हुआ करते थे। परंतु 47 ईसा पूर्व रोमन शासक जूलियन सीज़र ने इसमें कुछ बदलाव किए और यह 'जूलियन कैलन्डर' के नाम से प्रसि( हुआ। इसके बाद सन् 1582 में पोप अष्टम ने इसमें लीप ईयर को जोड़ा और कुछ परिवर्तन किए। तब से यह कैलन्डर 'ग्रैगोरियन' कहलाया व आज पूरे विश्व में अपनी पैठ जमाए हुए है। यह कैलन्डर सूर्व पर आधरित है। अतरू जितना समय पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करने में लगाती है भाव 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट, 46 सैकेन्ड उतने का ही इस कैलन्डर में एक वर्ष को प्रतिपादित किया गया है। और वर्ष का प्रथम दिवस रखा गया है 1 जनवरी। यद्यपि ग्रेगोरियन कैलन्डर का कोई भी अनुयाई यह तक नहीं बता पाया कि संडे के बाद मंडे क्यों आया, मंडे के बाद ट्यूज़डे क्यों? दूसरी ओर भारतीय कैलन्डर में सप्ताह के सातों दिन ग्रहों व उनके प्रभावों पर आधरित होते हैं। 

विडंबना तो यह है कि अंग्रेज़ों के जाने के बाद भी हम इसी के अनुसार ही चल रहे हैं। अपने देश के संवत्सर और काल गणना को बिसार बैठे। आपको शायद पता भी नहीं होगा कि भारत वर्ष का एक निजी कैलन्डर व काल गणना भी है। और भारत की यह कालगणना सबसे प्राचीन है। जहाँ ईस्वी गणना केवल 2010 वर्षों के इतने कम समय को दर्शाती है, यूनान की काल−गणना 3582 वर्षों, रोम की 2759, यहूदियों की 5770 साल, मिस्र की 28672 साल, चीन की 9 करोड़ 60 लाख 2 हज़ार साल पुरानी है वहीं पर भारतीय संवत् कल्प के आदि काल भाव 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 85 हज़ार 108 वर्षों से पूर्व उद्घाटित होता है। 

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इसी काल गणना के आधर पर भारत के महान सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने कलियुग शुरु होने के 3044 वर्षों बाद भाव आज से 2067 साल पहले 'विक्रम संवत्' या 'भारतीय कैलन्डर' या 'पांचांग' की शुरुआत की थी। इसका स्पष्ट प्रमाण हमें इस कैलन्डर या पांचांग में वर्णित एक संस्कृत पंक्ति के रूप में मिलता है। आज भी विद्वान लोग जब किसी से शुभ संकल्प करवाते हैं, तो वे पांचांग की इस पंक्ति का उच्चारण करते हैं− 'ब्रह्मा के द्वितीय पर्रा में, श्वेत वाराह कल्प में, सातवें मन्वंतर की 28वीं चतुर्युगी के कलियुग में इस विक्रमी संवत् की इस चंद्रमास की इस तिथि को मैं संकल्प करता हूँ...।' यदि आप पंक्ति में लिखित सभी इकाइयों का आकलन करके देखेंगे, तो यह कालगणना करोड़ों वर्षों की ही बैठेगी। जिसके द्वारा यह सि( होता है कि विक्रम संवत् विश्व की प्राचीनतम और सटीक कालगणनाओं पर आधरित है। भारतीय कैलन्डर शुरु से ही 12 माह एवं सूर्य और चंद्रमा दोनों पर आधरित एक सर्वोत्तम वैज्ञानिक नमूना था। तो आईए हम भी अपने भारतीय नववर्ष की अपने सभी स्वजनों को बधई दें एवं अपनी अमूल्य ध्रोहर पर गर्व महसूस करें। 

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