पापांकुशा एकादशी व्रत से नष्ट होते हैं संचित कर्म
पापांकुशा एकादशी का नाम पापों को हरने के कारण रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी के व्रत से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है और स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त होता है।
आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी मनायी जाती है। पापांकुशा एकादशी के दिन विष्णु के पद्मनाभ रूप की पूजा की जाती है। इस व्रत से सभी प्रकारों के पापों से मुक्ति मिलती है तथा शरीर तथा आत्मा शुद्ध रहते हैं। तो आइए हम आपको पापांकुशा एकादशी के बारे में बताते हैं।
पापांकुशा एकादशी का महत्व
पापांकुशा एकादशी का नाम पापों को हरने के कारण रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी के व्रत से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है और स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त होता है। जो लोग पूर्ण रूप से एकादशी का व्रत नहीं कर सकते वे दोपहर या शाम को एक बार भोजन कर सकते हैं। पापांकुशा एकादशी का व्रत भक्तों हेतु फलदायी होता है। इसके अलावा सच्चे मन से भक्ति तथा यथाशक्ति दान देने भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
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पापांकुशा व्रत से जुड़ी कथा
कथा के अनुसार विध्यांचल पर्वत पर एक क्रूर शिकारी रहता था उसका नाम क्रोधना था। पूरे जीवन उसने हमेशा बुरे कर्म किए और अच्छे कर्मों के बारे में कभी नहीं सोचा। जब उसका अंत निकट आया तो यमराज ने अपने एक दूत को उसे लेने के लिए भेजा लेकिन क्रोधना मृत्यु से बहुत डरता था। इस प्रकार मृत्यु से डर कर वह अंगारा नाम के ऋषि के पास गया तथा सहायता हेतु याचना करने लगा। क्रोधना के आग्रह से ऋषि अंगारा द्रवित हो उठे तथा उन्होंने पापांकुशा एकादशी के विषय में बताते हुए अश्विन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत रखने के लिए कहा। क्रोधना ने सच्ची निष्ठा, लगन और भक्ति भाव से पापांकुशा एकादशी का व्रत रखा तथा श्री हरि विष्णु की आराधना करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी संचित पाप नष्ट हो गए तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
एकादशी का व्रत कैसे करें
एकादशी के दिन प्रातः उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और उपवास का संकल्प लें।
इसके बाद घर के मंदिर में कलश की स्थापना करें। अब कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें। विष्णु जी की आराधना करें। इसके लिए सबसे पहले प्रतिमा को दीपक दिखाएं और फूल, नारियल और नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। इसके बाद भगवान की आरती उतारें। पूजा करते वक्त तुलसी दल अवश्य रखें। रात में जगकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें। एकादशी का व्रत करने वालों को दशमी से ही व्रत का पालन करना चाहिए। दशमी के दिन सात प्रकार के अनाजों गेहूं, उड़द, जौ, मूंग, चावल, चना और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए क्योंकि एकादशी के दिन इन सात अनाजों की पूजा होती है।
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हजार अश्वमेध यज्ञ का मिलता है फल
पापांकुशा एकादशी एक हजार अश्वमेघ तथा सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल प्रदान करने वाली होती है। पापांकुशा एकादशी व्रत के समान अन्य कोई व्रत नहीं होता है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात में जग कर कीर्तन करता है वह स्वर्ग का अधिकारी बनता है। इसके अलावा एकादशी के दिन दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति सुवर्ण, जल, तिल, भूमि, अन्न, गौ, जूते तथा छाते का दान करता है, उसे यमराज का सामना नहीं करना पड़ता है।
प्रज्ञा पाण्डेय
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