इस तरह करें हवन, आहुति के लिए यह कुछ चीजें हैं जरूरी
शास्त्रों के अनुसार वेदी के पांच संस्कार किये जाते हैं। तीन कुशों में वेदी या ताम्र कुण्ड का दक्षिण से उत्तर की ओर परिमार्जन करें। फिर उन कुशों से वेदी या ताम्र कुण्ड को ईशान दिशा में फेंक दें। गोबर और जल से लीपकर पृथ्वी शुद्ध करें।
हिंदू धर्म में शुद्धीकरण के लिए हवन का विधान है। हवन कुण्ड में अग्नि के जरिये देवताओं के निकट हवि पहुंचाने की प्रक्रिया यज्ञ कहलाती है। हवि उस पदार्थ को कहा जाता है जिसकी अग्नि में आहुति दी जाती है। हवन की वेदी वैसे तो पुरोहित के परामर्श से तैयार करनी चाहिए लेकिन आजकल हवन की वेदी तैयार भी मिलती है। अनेक पुरोहित तो जमीन में गड्ढा खोदकर लकड़ियों से भी वेदी का निर्माण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार वेदी के पांच संस्कार किये जाते हैं। तीन कुशों में वेदी या ताम्र कुण्ड का दक्षिण से उत्तर की ओर परिमार्जन करें। फिर उन कुशों से वेदी या ताम्र कुण्ड को ईशान दिशा में फेंक दें। गोबर और जल से लीपकर पृथ्वी शुद्ध करें। कुशमूल से पश्चिम की ओर लगभग दस अंगुल लंबी तीन रेखाएं दक्षिण से प्रारम्भ कर उत्तर की ओर बनाएं। दक्षिण अनामिका और अंगूठे से रेखाओं पर मिट्टी निकालकर बाएं हाथ में तीन बार रखकर फिर सारी मिट्टी दाहिने हाथ में रख लें। फिर मिट्टी को उत्तर की ओर फेंक दें। इसके बाद जल से कुंड को सींच दें। इस तरह भूमि के पांच संस्कार संपन्न करके पवित्र अग्नि अपने दक्षिण की तरफ रखें।
हवन कुण्ड में अग्नि प्रज्ज्वलित करने के पश्चात पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है। हवन करते समय किन-किन उंगलियों का प्रयोग किया जाये इसके सम्बन्ध में मृगी और हंसी मुद्रा को शुभ माना गया है। मृगी मुद्रा वह है जिसमें अंगूठा, मध्यमा और अनामिका उंगलियों से सामग्री होमी जाती है। हंसी मुद्रा वह है, जिसमें सबसे छोटी उंगली कनिष्ठका का उपयोग न करके शेष तीन उंगलियों तथा अंगूठे की सहायता से आहुति छोड़ी जाती है।
गंध, धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य भी अग्नि देव को अर्पित किये जाते हैं। इसके बाद घी मिश्रित हवन सामग्री से या केवल घी से हवन किया जाता है। शास्त्रों में घृत से अग्नि को तीव्र करने के लिए तीन आहुति देने का वर्णन किया गया है। आहुति के साथ निम्न मंत्र बोलते जाएं−
1− ओम भूः स्वाहा, इदमगन्ये इदं न मम।
2− ओम भुवः स्वाहा, इदं वायवे इदं न मम।
3− ओम स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय इदं न मम।
ओम अगन्ये स्वाहा, इदमगन्ये इदं न मम।
ओम घन्वन्तरये स्वाहा, इदं धन्वन्तरये इदं न मम।
ओम विश्वेभ्योदेवभ्योः स्वाहा, इदं विश्वेभ्योदेवेभ्योइदं न मम।
ओम प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये इदं न मम।
ओम अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदमग्नये स्विष्टकृते इदं न मम।
इस तरह गौतम महर्षि द्वारा प्रचलित पांच आहुतियां प्रदान करके निम्न मंत्रों के साथ आहुतियां प्रदान करें−
1− ओम देवकृतस्यैनसोवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये इदं न मम।
2− ओम मनुष्यकृतस्यैनसोवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये इदं न मम।
3− ओम पितृकृतस्यैनसोवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये इदं न मम।
4− ओम आत्मकृतस्यैनसोवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये इदं न मम।
5− ओम एनस एनसोवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये इदं न मम।
6− ओम यच्चाहमेनो विद्वांश्चकर यच्चाविद्वॉस्तस्य
- शुभा दुबे
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