कई मायनों में बेहद खास होती है कावड़ यात्रा, जानिए

Kanwar Yatra
ANI
मिताली जैन । Jul 14 2022 12:39PM

हर साल इस कावड़ यात्रा को बेहद ही हर्षोल्लास के साथ संपन्न किया जाता रहा है, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण पिछले दो साल से कावड़ यात्रा स्थगित की गई थी। अब एक बार फिर इस साल कावड़ यात्रा 14 जुलाई से 26 जुलाई तक आयोजित होने वाली है।

सावन का महीना शुरू हो चुका है और इन पावन महीने में हजारों-लाखों शिव भक्त कावड़ यात्रा के लिए निकलते हैं। साल में एक बार होने वाली इस यात्रा को बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसमें कावड़ यात्री कई दिनों तक नंगे पैर चलते हैं और गंगा नदी के पवित्र जल को लाने के लिए उत्तराखंड में हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री और बिहार के सुल्तानगंज जैसे तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हैं। फिर, वे इस जल को शिव मंदिरों जैसे उत्तर प्रदेश में पुरा महादेव मंदिर और औघरनाथ, प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर, और झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर में चढ़ाते हैं।

हर साल इस कावड़ यात्रा को बेहद ही हर्षोल्लास के साथ संपन्न किया जाता रहा है, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण पिछले दो साल से कावड़ यात्रा स्थगित की गई थी। अब एक बार फिर इस साल कावड़ यात्रा 14 जुलाई से 26 जुलाई तक आयोजित होने वाली है। तो चलिए आज इस लेख में हम कावड़ यात्रा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानते हैं-

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इसलिए कहते हैं कावड़

कावड़ यात्रा का नाम ’कांवर’ से लिया गया है, जो बांस से बना एक खंभा है जिसमें दो कंटेनर विपरीत छोर से लटकते हुए पवित्र जल से भरे होते हैं। कई मील चलने के दौरान भक्त उन्हें अपने कंधों पर ले जाते हैं।

धार्मिक रूप से है महत्वपूर्ण कावड़ यात्रा

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, गंगा नदी भगवान शिव की जटाओं से निकलती है। दरअसल, कांवड़ यात्रा का संबंध समुद्र मंथन से है। दरअसल, समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला, तो दुनिया जलने लगी। ऐसे में मानव जाति की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने इसे निगल लिया। लेकिन, इससे उनका गला नीला पड़ गया। त्रेता युग में, शिव के भक्त राजा रावण ने ध्यान किया और एक शिव लिंग पर पवित्र गंगा जल डाला। इस प्रकार भगवान को जहर की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त किया। तब से यह परंपरा शुरू हो गई। आज भी भक्तगण पूरे भक्तिभाव के साथ पवित्र गंगा का जल लाकर भगवान शिव पर चढ़ाते हैं।

होती है ढेर सारी तैयारियां

यह यात्रा शिवभक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है और देश भर में कावड़ियों के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं। यात्रा आमतौर पर श्रावण के मास में की जाती है। इस दौरान कावड़ियां आमतौर पर अलग-अलग भगवा रंग के वस्त्र पहनते हैं और बोल बम का जाप करते हैं। यात्रा की शुरुआत से पहले ही तीर्थयात्रियों के आराम करने के लिए विभिन्न स्थानों पर उनके लिए शिविर लगाए जाते हैं।

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कानून-व्यवस्था भी रहती है दुरूस्त

कावड़ यात्रा के दौरान किसी तरह की कोई परेशानी ना हो, इसलिए पुलिस की तरफ से भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल हरिद्वार और आसपास के इलाकों को 12 सुपर जोन, 31 जोन और 133 सेक्टरों में बांटा गया है और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए करीब 9,000-10,000 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किए जाने की संभावना है।

- मिताली जैन

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