Mahashivratri 2025: भगवान शिव प्रसन्न होकर देते हैं अपार सुख संपदा

Lord Shiva
ANI
शुभा दुबे । Feb 25 2025 4:32PM

त्रयोदशी को एक बार भोजन करके चतुर्दशी को दिन भर निराहार रहना पड़ता है। पत्र पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके वेदी पर कलश की स्थापना करके गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति तथा नन्दी की चांदी की मूर्ति रखनी चाहिए।

महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। मान्यता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्माण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिये इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया है। देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को सभी कर सकते हैं। विधि विधान से तथा स्वच्छ भाव से जो भी यह व्रत रखता है, भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे अपार सुख संपदा प्रदान करते हैं।

विधान- त्रयोदशी को एक बार भोजन करके चतुर्दशी को दिन भर निराहार रहना पड़ता है। पत्र पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके वेदी पर कलश की स्थापना करके गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति तथा नन्दी की चांदी की मूर्ति रखनी चाहिए। कलश को जल से भरकर रोली, मोली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेल पत्र आदि का प्रसाद शिव को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। रात को जागरण करके चार बार शिव आरती का विधान जरूरी है। दूसरे दिन प्रातः जौ, तिल, खीर तथा बेलपत्र का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत का पारण करना चाहिए।

इसे भी पढ़ें: अदृभुत होती है भगवान शंकर की बारात, देवताओं के साथ भूत पिशाच भी होते है शामिल

भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य को खाना निषिद्ध है। जो इस नैवेद्य को खा लेता है वह नरक को प्राप्त होता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं। यदि शिव की प्रतिमा के पास शालिग्राम की मूर्ति होगी तो नैवेद्य खाने पर कोई दोष नहीं लगता है।

भगवान शिव और उनका नाम समस्त मंगलों का मूल है। वे कल्याण की जन्मभूमि तथा परम कल्याणमय हैं। समस्त विद्याओं के मूल स्थान भी भगवान शिव ही हैं। ज्ञान, बल, इच्छा और क्रिया शक्ति में भगवान शिव के जैसा कोई नहीं है। वे सभी के मूल कारण, रक्षक, पालक तथा नियन्ता होने के कारण महेश्वर कहे जाते हैं। उनका आदि और अंत न होने से वे अनंत हैं। वे सभी पवित्रकारी पदार्थों को भी पवित्र करने वाले हैं। वे शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों के सम्पूर्ण दोषों को क्षमा कर देते हैं तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ज्ञान, विज्ञान के साथ अपने आपको भी दे देते हैं।

All the updates here:

अन्य न्यूज़