भगवान श्रीराम ने महालया के दिन की थी मां दुर्गा की स्तुति

mahalaya-2019

महालया के दिन लोग अपने पूर्वजों को भी याद करते है। इस दिन लोग अपने पितरों का पिंडदान भी करते हैं। महालया के पितरों का तर्पण किसी नदी या तालाब के किनारे किया जाता है। पिंडदान या तर्पण का काम प्रातः सूर्योदय से शुरू हो जाता है और दोपहर तक चलता रहता है।

आश्विन मास की अमावस्या को महालया मनाया जाता है। महालया के दिन ही पितृ पक्ष का समापन होता और नवरात्र की अगले दिन शुरूआत होती है। महालया को बंगाल में बहुत उत्साह से मनाया जाता है तो आइए हम आपको महालया के महत्व के बारे में बताते हैं।

बंगाल में हैं महालया का खास महत्व 

वैसे तो महालया पूरे देश धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका विशेष महत्व है। महालया के दिन ही बंगाल में दुर्गा की प्रतिमाओं की आंख बनायी जाती है और उसमें रंग भरा जाता है। ऐसी मान्यता है कि महालया के दिन ही दुर्गा की मूर्तियों का काम पूरा हो जाता है और इसी दिन से दुर्गा पूजा की शुरूआत मानी जाती है।

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महालया के दिन तर्पण भी होता है

महालया के दिन लोग अपने पूर्वजों को भी याद करते है। इस दिन लोग अपने पितरों का पिंडदान भी करते हैं। महालया के पितरों का तर्पण किसी नदी या तालाब के किनारे किया जाता है। पिंडदान या तर्पण का काम प्रातः सूर्योदय से शुरू हो जाता है और दोपहर तक चलता रहता है।

महालया से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि महालया के दिन ही मां दुर्गा अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिकेय को लेकर कैलाश पर्वत से अपने पिहर या पृथ्वी लोक में आती हैं। महालया के दिन देवी पार्वती को धरती पर आने का निमंत्रण दिया जाता है। इसलिए महालया के दिन मंत्रों के जाप, भजन और गीतों से मां दुर्गा को आमंत्रित दिया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार महालया महालया ही वह समय है, जिसमें मां दुर्गा ने असुरों का नाश किया था। बंगाल में इस दिन को बहुत महत्व दिया जाता है। बंगाल के कई हिस्सों में इसे धूमधाम से मनाया जाता है और मां दुर्गा के पराक्रम से संबंधित ऐसे कई नाटक किए जाते हैं, जिसमें वे राक्षसों का वध करती हैं।

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श्रीराम जी ने महालया के दिन की थी दुर्गा की पूजा

पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जब रावण सीता का हरण कर ले गया तो राम जी बहुत व्यथित हुए। उसके बाद राम जी ने हनुमान को सीता माता का पता लगाने के लिए लंका भेजा। हनुमान जी जब सीता माता का लंका में होने का संदेश लेकर आए तो रामजी ने युद्ध की तैयारी प्रारम्भ की। रावण जैसी बलशाली राक्षस का नाश करना आसान नहीं था। रामजी सोच में पड़ गए और उन्होंने रावण से युद्ध प्रारम्भ करने से पहले सर्वशक्ति रूपणी दुर्गा का आह्वान किया। जब मां दुर्गा धरती पर अवतरित हुईं तो श्रीराम चंद्र जी ने मां दुर्गा की स्तुति की। उसके बाद देवी की विधिवत पूजा-अर्चना की। रामजी की पूजा से प्रसन्न होकर देवी ने विजयी होने का आर्शीवाद दिया। देवी से विजयी होने का आशीष लेकर रामजी ने लंका पर हमला किया और दशहरे के दिन रावण का वध कर सीता अयोध्या वापस लाए। इस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार विजयदशमी की शुरूआत महालया से हो जाती है। देवी दुर्गा की आराधना के कारण ही महालया का खास महत्व है।

प्रज्ञा पाण्डेय

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