काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-1
विभिन्न हिन्दू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि श्रीराम का जन्म नवरात्र के अवसर पर नवदुर्गा के पाठ के समापन के पश्चात् हुआ था और उनके शरीर में मां दुर्गा की नवीं शक्ति जागृत थी। मान्यता है कि त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या के महाराजा दशरथ की पटरानी महारानी कौशल्या ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को जन्म दिया था।
प्रशांत मानस
तुलसी बाबा लीजिए, मेरा प्रथम प्रणाम
कृपा आपकी जो मिले, रघुनंदन श्रीराम।
रघुनंदन श्रीराम, चरित किस तरह बखानूं
अपने भीतर के अवगुण को मैं ही जानूं।
कह ‘प्रशांत’ निर्जीव कलम को शक्ति दीजे
बाबा करके क्षमा, शरण में अपनी लीजे।।
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तुलसी जैसे पूज्य हैं, वाल्मीकि भगवान
श्री शिवजी महाराज फिर, सुमिरों श्री हनुमान।
सुमिरों श्री हनुमान, साथ में तीनों भैया
पार लगाएं भक्तजनों की टूटी नैया।
कह ‘प्रशांत’ श्री सीताराम ध्यान में आओ
बहुत बड़ा है काम, आप ही पूर्ण कराओ।।
बालकांड
श्री गणेश मां शारदा, नमन करो स्वीकार
गुरु चरणों की हूं शरण, वंदन बारम्बार।
वंदन बारम्बार, मोह की काटी कारा
और बहाई सत्य ज्ञान की निर्मल धारा।
कह ‘प्रशांत’ गुरुदेव हाथ को मेरे पकड़ो
छूटे यह संसार, कृपा में ऐसे जकड़ो।।1।।
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संतों से विनती करूं, ब्रह्मा विष्णु-महेश
हे दुष्टो तुमको नमन, देते सदा कलेस।
देते सदा कलेस, कष्ट मानव पर पड़ता
तब ही सच्चे दिल से याद राम को करता।
कह ‘प्रशांत’ हे दुर्जन मेरे घर मत आना
और सज्जनो दूर कभी मुझसे ना जाना।।2।।
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उसके जितने रूप हैं, उसके जितने नाम
गिन-गिनकर करता उन्हें, उतनी बार प्रणाम।
उतनी बार प्रणाम, उजाला और अंधेरा
दोनों हैं, तब ही संसार हुआ है पूरा।
कह ‘प्रशांत’ गुण या दोषों पर ध्यान न दीजे
रामकथा है, इसे शीश पर धारण कीजे।।3।।
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रामकथा को कह गये, जो कवि संत सुजान
उनकी महिमा क्या कहूं, वे हैं सभी महान।
वे हैं सभी महान, काव्य उनका पढ़ लीन्हा
शब्द रूप बस मैंने उनको अपना दीन्हा।
कह ‘प्रशांत’ इसमें मेरी कुछ नहीं बड़ाई
जो कुछ है सब उनका, उनकी ही प्रभुताई।।4।।
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वंदित चारों वेद हैं, दुनिया भर में आज
भवसागर के वास्ते, हैं मजबूत जहाज।
हैं मजबूत जहाज, चन्द्रमा सूरज-तारा
कामधेनु अमृत-मदिरा अरु विष की धारा।
कह ‘प्रशांत’ श्री अवधपुरी सरयू मां गंगा
सुखदाता शुभदाता करे पाप सब भंगा।।5।।
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कौशल्या दशरथ जनक, भरत लखन सुखधाम
चैथे भैया शत्रुघन, सबके अनुपम काम।
सबके अनुपम काम, विभीषण साथी आये
बजरंगी ने सारे बिगड़े काम बनाये।
कह ‘प्रशांत’ श्री जाम्बवान अंगद सुग्रीवा
पशु-पक्षी देवता-असुर मानव सम जीवा।।6।।
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नारद मुनि शुकदेवजी, सनकादिक से भक्त
प्रभु चरणों में ये हुए, ज्ञानीजन अनुरक्त।
ज्ञानीजन अनुरक्त, राम की प्राण पियारी
कहें उन्हें सीता माता या जनकदुलारी।
कह ‘प्रशांत’ अब रामनाम की कीजे पूजा
कलियुग में है इससे बड़ा मंत्र ना दूजा।।7।।
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कलियुग में श्रीराम से, बड़ा राम का नाम
जिसने भी गाया उसे, पाया चिर विश्राम।
पाया चिर विश्राम, सगुण को शीश नवाओ
और अगर चाहो निर्गुण में ध्यान लगाओ।
कह ‘प्रशांत’ जिसने भी जपा तुरत फल पाया
भक्तो राम नाम की है ऐसी ही माया।।8।।
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रामकथा प्रारम्भ अब, करता हूं श्रीमान
है पावन संजीवनी, सुनिए देकर कान।
सुनिए देकर कान, रचाया है शिवजी ने
जो थे वहां सुपात्र, सुना फिर उन सब ही ने।
कह ‘प्रशांत’ मां पार्वती अरु काकभुशुंडी
भरद्वाज सम ज्ञानी-ध्यानी श्रोता आदी।।9।।
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फिर मेरे गुरुदेव ने, कही अनेकों बार
छोटी मेरी बुद्धि है, उनकी कृपा अपार।
उनकी कृपा अपार, समझ में जो भी आया
उसको देकर शब्द कहूंगा हे रघुराया।
कह ‘प्रशांत’ सब मीठा-मीठा राम समर्पित
और अगर हो कड़वा कर दें मुझको अर्पित।10।।
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कल्प अनेकों हैं हुए, जिनमें अनगिन भेद
इसके कारण ढूंढना, नहीं कथा में छेद।
नहीं कथा में छेद, हृदय में श्रद्धा होगी
है अनुभव की बात, तभी ये लाभ करेगी।
कह ‘प्रशांत’ है रामकथा अनंत विस्तारी
जिनके शुद्ध विचार, सुनें वे सब संसारी।।11।।
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चैत्र मास नवमी तिथि, शुभ दिन मंगलवार
राम जन्म जिस दिन हुआ, छाई खुशी अपार।
छाई खुशी अपार, अयोध्या में सब आते
करके सरयू स्नान सभी पावन हो जाते।
कह ‘प्रशांत’ हों असुर नाग पक्षी या देवा
मानव मुनिजन संत सभी करते हैं सेवा।।12।।
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पावन सरयू है नदी, दर्शन स्पर्श-स्नान
पापों को हरता सदा, इसका मधु जलपान।
इसका मधु जलपान, अयोध्या पुरी सुहानी
सकल सिद्धि देने वाली अमृत की खानी।
कह ‘प्रशांत’ वह मनुज नहीं फिर जग में आता
यहां छोड़ता प्राण, सदा मंगल पद पाता।।13।।
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चार घाट समझो उन्हें, जो उत्तम संवाद
सात कांड हैं सीढ़ियां, मेटे सभी विषाद।
मेटे सभी विषाद, छन्द सोरठे-दोहे
ज्ञान विराग-विचार हंस, सबका मन मोहे।
कह ‘प्रशांत’ हैं चार स्तम्भ नौ रस जल जीवा
राम-सिया का यश अमृत जी भरके पीवा।।14।।
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जिनके अच्छे कर्म हैं, और भाग्य अनुकूल
राम चरण में प्रेम है, धारें सिर पर धूल।
धारें सिर पर धूल, वही सरयू तट आते
और कथा अमृत पा जीवन धन्य बनाते।
कह ‘प्रशांत’ लेकिन जिनके धन्धे हैं काले
उनको कथा नहीं मिलती, बद किस्मत वाले।।15।।
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रामकथा में हैं गुंथे, बाल चरित जो चार
उनको जानो कमल सम, रंग-सुगंध अपार।
रंग सुगंध अपार, अवधपति तीनों रानी
कुटुम्बियों के पुण्य कर्म भौंरे जल प्राणी।
कह ‘प्रशांत’ सीताजी का जो हुआ स्वयंवर
सुंदर नावें प्रश्न और केवट है उत्तर।।16।।
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परशुराम के क्रोध को, समझो भीषण बाढ़
सब कुंवरों का ब्याह है, पर कल्याणी धार।
पर कल्याणी धार, तीर्थ में जुटे समाजा
राजतिलक की खातिर सज्जित मंगल साजा।
कह ‘प्रशांत’ षड्यंत्र बुद्धि रानी कैकेयी
उसको मानो नदियों की दुर्गन्धित काई।।17।।
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भरतलाल को जानिए, परिपूरण सर्वज्ञ
उनका पावन चरित है, जप-तप पूजा-यज्ञ।
जप-तप पूजा-यज्ञ, पाप-ताप कलियुग के
है अवगुण का वर्णन कीचड़ बगुले कौए।
कह ‘प्रशांत’ सब ऋतुओं में यह नदी सुहावन
है गरमी सरदी वर्षा वसंत मनभावन।।18।।
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शिव-पार्वती विवाह है, सुंदर ऋतु हेमंत
राम जन्म का सुख शिशिर, राम विवाह वसंत।
राम विवाह वसंत, ग्रीष्म है वन को जाना
कठिन धूप-लू है रस्ते के कष्ट समाना।
कह ‘प्रशांत’ वर्षा है असुर युद्ध घनघोरा
बढ़े देवकुल रूपी धान तीव्र सब ओरा।।19।।
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रामराज्य त्रैलोक्य में, विनम्रता आगार
शरद ऋतु को जानिए, निर्मल सुख भंडार।
निर्मल सुख भंडार, शिरोमणि है सतियों में
सीता मैया की गाथा शोभित मणियों में।
कह ‘प्रशांत’ है जैसे नदियों की शीतलता
ऐसा भरत स्वभाव, नहीं वर्णन हो सकता ।।20।।
- विजय कुमार
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