काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-9
विभिन्न हिन्दू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि श्रीराम का जन्म नवरात्र के अवसर पर नवदुर्गा के पाठ के समापन के पश्चात् हुआ था और उनके शरीर में मां दुर्गा की नवीं शक्ति जागृत थी। मान्यता है कि त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या के महाराजा दशरथ की पटरानी महारानी कौशल्या ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को जन्म दिया था।
दोनों भाई फिर गये, देखी वह रंगशाल
धनुष यज्ञ होगा जहां, सुंदर और विशाल।
सुंदर और विशाल, बड़ा था आंगन भारी
निर्मल वेदी बनी वहां सबके मनहारी।
कह ‘प्रशांत’ आगे सारे राजा बैठेंगे
और नागरिक पीछे से कौतुक देखेंगे।।91।।
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पूजा हित लेने गये, दोनों भाई फूल
सीता भी पहुंची वहां, समय बड़ा अनुकूल।
समय बड़ा अनुकूल, सरोवर में कर स्नाना
गिरिजा के मंदिर में कीन्ही पूजा-ध्याना।
कह ‘प्रशांत’ वर मिले वीर सुंदर अरु अच्छा
हे माता तुम पूर्ण करो मेरी यह इच्छा।।92।।
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हुई मातु की प्रेरणा, कुछ ऐसी उस काल
जनकसुता ले संग में, सखी चली तत्काल।
सखी चली तत्काल, नहीं नैनों की भाषा
देख राम को सीता मन जागी अभिलाषा।
कह ‘प्रशांत’ दोनों की जब आंखें टकराई
ऐसा लगा धनुष टूटा, शुभ वेला आयी।।93।।
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सीता फिर मंदिर गयी, पकड़े दोनों पांव
मां तुम हो सब जानती, कहां सिया का ठांव ?
कहां सिया का ठांव, हाथ सिर पर यों धरना
जो है मेरे हित में, मातु वही तुम करना।
कह ‘प्रशांत’ यह सुनकर वह मूरत मुस्काई
और गले की माला खिसकी, नीचे आयी।।94।।
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सीता ने वह धार ली, माला अपने शीश
मां की मूरत से मिले, जी भरके आशीष।
जी भरके आशीष, कामना पूरी होगी
नारदजी की पावन वाणी सत्य बनेगी।
कह ‘प्रशांत’ मन में धारे हो जिनके चरणा
वही धनुष को तोड़ेंगे, संदेह न करना।।95।।
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सुख से बीता रात-दिन, आयी मधुर प्रभात
रंगभूमि पहुंचे तभी, मुनि समेत दोउ भ्रात।
मुनि समेत दोउ भ्रात, मंच इक अलग बनाया
तीनों को आदर के साथ वहां बैठाया।
कह ‘प्रशांत’ खुद जनकराज ने स्वागत कीना
देख राम को बाकी राजा हुए मलीना।।96।।
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सुंदर अवसर जानकर, जनक दिये संदेश
सखियों संग सीता चली, अति मोहक परिवेश।
अति मोहक परिवेश, कौन कवि उपमा देगा
और कलंकित अपने कागज-कलम करेगा ?
कह ‘प्रशांत’ सब देव नगाड़े लगे बजाने
और फूल बरसाकर लगीं अप्सरा गाने।।97।।
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बंदीजन ने आ किया, राजा का गुणगान
जैसा उनका वंश है, वैसे जनक महान।
वैसे जनक महान, प्रतिज्ञा है अति भारी
तोड़े जो शिव धनुष, वही होगा अधिकारी।
कह ‘प्रशांत’ जयमाल जानकी पहनाएगी
दिग-दिगन्त में कीर्ति पताका फहराएगी।।98।।
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बड़े-बड़े राजा उठे, चले दिखाने जोश
मगर धनुष को देखकर, उड़े सभी के होश।
उड़े सभी के होश, कठिन था उसे हिलाना
फिर कैसे संभव था ऊपर उसे उठाना।
कह ‘प्रशांत’ फिर सबने मिलकर जोर लगाया
महादेव का धनुष न किंचित हिलने पाया।।99।।
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देख जनक अकुला उठे, दिल में लागी आग
संग सिया के आज हैं, फूटे मेरे भाग।
फूटे मेरे भाग, सभी है शीश झुकाए
धनुष तोड़ना दूर, जरा भी हिला न पाए।
कह ‘प्रशांत’ थी भूल प्रतिज्ञा कर ली भारी
है विधना का लेख, जानकी रहे कुंवारी।।100।।
- विजय कुमार
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