Rudrashtakam: लंकापति रावण पर विजय पाने के लिए श्रीराम ने की थी रुद्राष्टकम् की रचना, जानिए इसका महत्व

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श्रीरामचरितमानस में इस बात का वर्णन मिलता है कि श्रीराम ने त्रिलोक विजेता रावण से युद्ध करने से पहले रुद्राष्टकम गाकर भगवान शिव की स्तुति की थी। बता दें कि उन्होंने रामेश्वरम में भगवान शिव को प्रसन्न कर लंकापति रावण पर विजय प्राप्त की थी।

श्रीरामचरितमानस में इस बात का वर्णन मिलता है कि श्रीराम ने त्रिलोक विजेता रावण से युद्ध करने से पहले रुद्राष्टकम गाकर भगवान शिव की स्तुति की थी। बता दें कि उन्होंने रामेश्वरम में भगवान शिव को प्रसन्न कर लंकापति रावण पर विजय प्राप्त की थी। रुद्राष्टकम् को भगवान भोलेनाथ की स्तुति का सर्वोत्तम उपाय माना जाता है। इसका पाठ करने से भगवान शिव अपने भक्तों से प्रसन्न होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक हर सोमवार को लयबद्ध रूप से रुद्राष्टकम् का पाठ करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के रोग-दोष, शत्रु और संकटों का नाश होता है। शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए लगातार 7 दिनों तक शिव मंदिर में कुश के आसन पर बैठकर रुद्राष्टकम् का पाठ करना चाहिए। इससे जातक को शत्रुओं पर विजय मिलती है। भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए रुद्राष्टकम् की रचना की थी। 

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जो भी जातक सच्चे मन से रुद्राष्टकम् का पाठ करता है, उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा व शक्ति का संचार होता है। इसका रोजाना पाठ करने से मन एकाग्रचित होता है। रुद्राष्टकम् का पाठ करने से जातक बड़ी से बड़ी बाधा पार करना भी आसान होता है।

शिव रुद्राष्टक स्तोत्र

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्।

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्।

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा।

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि।

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्।

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी चिदानन्दसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।

न यावद् उमानाथपादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।

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