Gyan Ganga: प्रभु कहते हैं- जो मेरी शरण में आ गया उसका उद्धार होना ही है

Lord Krishna
आरएन तिवारी । Apr 1 2022 5:27PM

मानो प्रभु कहना चाहते हैं कि जिसने मेरा चरण पकड़ा, मुझे पुकारा उसका उद्धार तो होना ही है पर जो मेरे भक्त का चरण पकड़े बैठा है उसका उद्धार मैं पहले करता हूँ। भगवान ने दोनों का ही उद्धार किया। दोनों ही शापित थे।

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 

प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आज-कल हम श्रीमदभागवत महापुराण के अंतर्गत आठवें स्कन्द की कथा श्रवण कर रहे हैं। 

पिछले अंक में हम सबने गजेन्द्र और ग्राह की कथा सुनी। गजेन्द्र को आत्म-रक्षा हेतु जब कोई दूसरा उपाय नहीं सुझा तब उसने गोविंद को वैसे ही पुकारा जैसे चीर-हरण प्रसंग में द्रौपदी ने कृष्ण को पुकारा था। प्रभु ने देखा कि गजराज अत्यंत पीड़ित हो रहा है इसलिए उसकी आर्त स्तुति सुनकर करुणा के सागर प्रभु, भक्त वत्सल गजराज की रक्षा करने गरुण पर सवार होकर दौड़ पड़े। भगवान ने देखा- गजेन्द्र अत्यंत संकट में पड़ा हुआ था, सरोवर के भीतर बलवान मगरमच्छ ने उसको बड़ी ही मजबूती से पकड़ रखा था और गजेन्द्र व्याकुल हो रहा था।

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आइये ! अब आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं। 

जब गजेन्द्र ने देखा- कि आकाश में गरुण पर सवार होकर हाथ में चक्र लिए श्री हरि आ रहे हैं, तब उसने नाम लिया। 

सोsन्त: सरस्युरूबलेन गृहीत आर्तो दृष्ट्वागरुत्मतिहरिम ख उपातचक्रम 

उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छ्र नारायणाखिल गुरो भगवन्नमस्ते।।

गजराज ने अपनी सूँड में कमल का एक सुंदर पुष्प लिया और ‘नारायण’ ! 

‘जगतगुरो’! ‘भगवान’! आपको नमस्कार, यह कहकर कमलाकांत के चरणों में चढ़ा दिया। भगवान ने देखा ये तो सरोवर में डूबा जा रहा है। भगवान ने तीव्र गति से उसकी सूंड को पकड़ा और बाहर खींच लिया। जैसे ही प्रभु ने हाथी को बाहर निकाला वैसे ही मगर भी बाहर खींचा चला आया।

तं वीक्ष्य पीड़ितमज: सहसावतीर्य सग्राहमाशु सरस: कृपयोज्जहार  

ग्राहात् विपाटित् मुखादरिणागजेन्द्रं संपश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम्।।

भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से ग्राह का मुँह फाड़ दिया और गजेन्द्र का उद्धार किया। बोलिए सुदर्शनचक्र धारी कृष्ण भगवान की जय--

शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित ! उस समय ब्रह्मा, शंकर आदि सभी देवता ऋषि और गंधर्व भगवान के इस कर्म की प्रशंसा करने लगे तथा उनके ऊपर फूलों की वर्षा करने लगे। स्वर्ग में दुंदुभियाँ बजने लगीं। यक्ष, गंधर्व, किन्नर नाचने गाने लगे। 

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कभी-कभी हमारे मन में यह शंका उत्पन्न होती है कि, संकट में पड़ा हुआ गजराज अपनी रक्षा के लिए प्रभु को पुकारा पर गोविंद ने आते ही सबसे पहले ग्राह को उबारा। ग्राह का उद्धार पहले और गजराज का बाद में हुआ, क्यों ? मानो प्रभु कहना चाहते हैं कि जिसने मेरा चरण पकड़ा, मुझे पुकारा उसका उद्धार तो होना ही है पर जो मेरे भक्त का चरण पकड़े बैठा है उसका उद्धार मैं पहले करता हूँ। भगवान ने दोनों का ही उद्धार किया। दोनों ही शापित थे। ये जो मगर है वह पूर्व जन्म का ''हू हू'' नाम का गंधर्व था। हँसी-मज़ाक किया करता था। लोगो का मनोरंजन करना ही इसका कार्य था। देवताओ में कुछ ऐसे गंधर्व होते हैं जो देवताओ को प्रसन्न करने के लिए विविध चेष्टाये किया करते है इनका नाम ही है---“हा-हा हू-हू''। ये सबको हंसाते रहते हैं। एक बार यह सरोवर में स्नान करने आया उसी समय देवल नाम के ऋषि स्नान करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दे रहे थे। इसको मज़ाक सूझा इसने डूबकर देवल ऋषि का पैर पकड़ लिया। महात्मा घबड़ा गए बचाओ बचाओ। अब ये बाहर निकलकर हँसने लगा और कहा- “क्यों महाराज डर गए।'' महाराज जी को तो पसीने छूट रहे थे। महात्मा ने कहा- अरे मूर्ख! तुमने मेरे भगवत भजन में विक्षेप कर दिया। जा मैं तुम्हें शाप देता हूँ तू मगर बन जा। तब वह चरणो में गिरकर रोने लगा। महाराज ! मेरा तो उद्देश्य आपका मनोरंजन करना था। मै आपको प्रसन्न करना चाहता था और मैंने कोई बुरा काम तो किया नहीं आपके चरण ही तो पकड़े। महात्मा प्रसन्न हो गए और बोले- बेटा !

ऐसे ही चरण पकड़ते रहोगे तो कल्याण हो जाएगा। आज इसने हाथी का पैर पकड़ा तो उद्धार हो गया। वह ग्राह दिव्य शरीर से सम्पन्न हो गया। अब वह भगवान की कृपा से मुक्त हो गया था। उसने भगवान के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया और और भगवान के सुयश का गुण-गान करने लगा। भगवान के कृपापूर्ण स्पर्श से उसके सारे पाप-ताप नष्ट हो गए। उसने भगवान की परिक्रमा की और सबके देखते-देखते भगवद धाम को प्रस्थान किया। 

गजेन्द्र भी पूर्व जन्म में द्रविण देश का राजा था उसका नाम इन्द्र द्युम्न था। एक बार उसने अगस्त्य ऋषि को देखकर अनदेखा कर दिया, उनको प्रणाम नहीं किया। अगस्त्य जी ने शाप दे दिया-

“यथा गज; स्तब्ध मति; स एव” गजराज की तरह अभिमान में मदमस्त बैठे हो। “जाओ हाथी ही बन जाओ।'' राजा ने बहुत अनुनय-विनय की तब अगस्त्य जी ने क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया, जाओ हाथी बनोगे तब भी तुम्हारे संस्कार बने रहेगे। पूर्व जन्म की शिक्षा और संस्कार का ही प्रभाव था कि हाथी की देह से भगवान की स्तुति की और भगवान के स्पर्श मात्र से ही भगवत स्वरूप हो गया। 

भगवान श्री हरि ने गजेन्द्र का उद्धार करके उसे अपना पार्षद बना लिया और पार्षद स्वरूप गजेन्द्र को साथ लेकर गरुण पर सवार होकर अपने अलौकिक धाम को चले गए। इस कलियुग में संकट और विपत्ति आने पर गजेन्द्र मोक्ष का पाठ बहुत ही उपयोगी होता है। भगवान कहते हैं-

ये मां स्तुवंत्यनेनाङ्ग प्रतिबुध्य निशात्यये

तेषां प्राणात्यये चाहं ददामि विमलां मतिम ॥    

                       

जय श्री कृष्ण-                                              

क्रमश: अगले अंक में --------------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । 

-आरएन तिवारी

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