Gyan Ganga: श्रीरामजी ने लक्ष्मणजी को सुग्रीव को थोड़ा ही डराने को क्यों कहा था ?

Lord Rama
सुखी भारती । Jun 29 2021 3:21PM

ठीक इसी प्रकार सुग्रीव में भी विषयों व अकृतज्ञता का जो भाव उत्पन्न हो गया है, उसके नाश हेतु भी हमें उसके एक अवगुण की ही आड़ लेनी होगी। और उसका वह अवगुण है, उसका सदैव से ‘भय’ से ग्रसित होना। सुग्रीव भय का बहुत बड़ा पुजारी है।

श्रीलक्ष्मण जी को श्रीराम जी अनेकों तर्कों व उदाहरणों से समझाते हैं। श्रीलक्ष्मण जी भी प्रभु से शत प्रतिशत सहमत होते हैं। असहमति तो वैसे उन्हें कभी थी भी नहीं, लेकिन उन्हें लगता है कि श्रीराम जी इतने दयालु व कोमल हृदय वाले हैं कि कई बार प्रभु के इसी भोलेपन का समाज अमान्य लाभ उठाने की चेष्टा करता है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि संसार को प्रभु के हाथ में मात्र माला ही दिखेगी तो निश्चित ही सब प्रभु को तिनके के समान जानेंगे ही। ऐसे में प्रभु श्रीराम जी का प्रभुत्व दुनिया तभी अंगीकार करेगी, जब प्रभु के दूसरे हाथ में ‘माला’ के साथ-साथ ‘भाला’ भी होगा। शास्त्र की मर्यादा व आर्दश आज कल कौन मानता है? लेकिन ‘शास्त्र’ को जब ‘शस्त्र’ का सान्निध्य प्राप्त हो जाये, तो फिर शास्त्र की भाषा गूंगे को भी समझ में आने लगती है।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: ऐसा क्या हुआ कि श्री लक्ष्मण भी सुग्रीव के वध को तत्पर हो उठे

अगर प्रभु आरम्भ में ही सुग्रीव के कान खींचकर रखते, तो उन्हें यह समस्या देखनी ही न पड़ती। चलो कोई बात नहीं। क्योंकि हमें प्रभु की लीला कहाँ समझ में आनी है। जैसा प्रभु का आदेश हो, हमें तो उनकी आज्ञा का वैसा ही अनुसरण करना है। लेकिन प्रभु कह रहे हैं कि सुग्रीव का एक विशेष अवगुण भी है जो उसे मेरे समीप लायेगा। यह सुनने में तो निश्चित ही बड़ा विचित्र सा लगता है। भला अवगुण भी कभी जीव के सगे व हितकारी हुए हैं? कारण कि इन अवगुणों के चलते ही तो जीव प्रभु के श्रीचरणों, से विलग व अहित को प्राप्त होता है। इसीलिए समस्त महापुरुष अवगुणों के समूल नाश अथवा उनपे संपूर्ण नियंत्रण पर ही अधिक बल देते हैं। और श्रीराम जी तो उलटी ही गंगा बहाते हुए कह रहे हैं, कि सुग्रीव का एक अवगुण ही उसे प्रभु के समीप लायेगा। 

यह देख श्रीलक्ष्मण जी जिज्ञासा वश प्रभु श्रीराम जी से अपनी इस उलझन के समाधान हेतु प्रार्थना करते हैं। प्रभु मुस्करा श्रीलक्ष्मण जी को संबोधित करते हैं कि हे प्रिय अनुज! आवश्यक नहीं कि सदा व्याधि का उपचार अमृत से ही हो। कभी-कभी व्याधि का उपचार विष से भी संभव होता है। आर्युवेद ऐसे अनेकों उदाहरणों व प्रमाणों से भरा पड़ा है। आओ मैं तुम्हें यह एक अन्य उदाहरण से समझाता हूँ। मान लो कि वनों में जब आग लग जाए, तो आग बुझाने के लिए, पानी निःसंदेह एक उत्तम विकल्प है। लेकिन जब कभी पानी के छिड़काव से समाधान न निकले, तो जिस क्षेत्र में अग्नि से वन झुलस रहा है, और वहां से हवा के बहाव के साथ, जिधर अग्नि फैल रही है, उसी और कुछ दूरी छोड़, कुछ क्षेत्र में कृत्रिम तरीके से अग्नि लगा दी जाये, तो अग्नि बुझाई जा सकती है। श्रीलक्ष्मण जी शायद पूर्णतः समझ नहीं पाये थे। जिसे भाँप श्रीराम जी बोले कि हे प्रिय अनुज! यह कैसे कार्य करता है, पहले इसे समझो। क्योंकि वनों में आग तभी आगे से आगे फैलती है, जब उसे आगे से आगे वनस्पति प्राप्त होती जाती है। अगर अग्नि प्रवाह से दो एकड़ जमीन छोड़ कर आप बहुत थोड़े भाग में भी उपलब्ध वनस्पति को आग लगा कर राख में परिर्वतित कर दें, तो पहले से आक्रामक, अनियंत्रित व विनाशक अग्नि प्रवाह को, जब आगे वनस्पति की अपेक्षा केवल राख मिलेगी, तो वह विनाशक अग्नि स्वतः ही शाँत हो जायेगी। कयोंकि राख से अग्नि का संयोग ही नहीं बनता। तो देखा कैसे अग्नि प्रसार को रोकने के लिए, बाधक एक अग्नि ही बनी।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: प्रभु श्रीराम के सुग्रीव वध के संकल्प को देखते हुए सभी थर-थर काँपने लगे थे

ठीक इसी प्रकार सुग्रीव में भी विषयों व अकृतज्ञता का जो भाव उत्पन्न हो गया है, उसके नाश हेतु भी हमें उसके एक अवगुण की ही आड़ लेनी होगी। और उसका वह अवगुण है, उसका सदैव से ‘भय’ से ग्रसित होना। सुग्रीव भय का बहुत बड़ा पुजारी है। वह हमारी शरण में भी बालि के भय के कारण ही आया था। बालि समाप्त क्या हुआ, सुग्रीव का भय भी समाप्त हो गया। और भय के समापन से उसके हृदय से हमारी प्रीति व धर्म की नीति भी जाती रही। सुग्रीव में प्राणों के हरण का जो भय, उसके हृदय को आंदोलित किए हुए था, उस भय को हमें पुनः जाग्रत करना होगा। बालि का भय तो फिर भी निम्न स्तर का था। क्योंकि बालि तो कामी, लोभी व अन्य अनेकों निम्न अवगुणों से भरपूर था। तो उसका भय भी उच्च कोटि का नहीं था। लेकिन तब भी, वह भय सुग्रीव को मेरी शरण में लाने में सफल रहा। ठीक वैसे ही अगर सुग्रीव को पुनः भयभीत कर दिया जाये, तो बात बन सकती है। सुग्रीव को इस स्तर तक भयभीत किया जाए, कि उसे अगर पुनः सुरक्षा कवच की आवश्यकता प्रतीत हो, तो उसकी खोज हम पर आकर ही रूके। मेरा दृढ़ भाव है कि सुग्रीव के साथ ऐसा ही होगा। क्योंकि जो सुग्रीव बालि के निम्न प्रवृति वाले भय से प्रेरित होकर जब मेरी शरण में आ सकता है, तो परम बैरागी, महा तपस्वी व साक्षात शेष के अवतार मेरे प्रिय लक्ष्मण के भय से भला, वह कैसे हमारी शरण में नहीं आयेगा। इसलिए बस इतना ध्यान रखना प्रिय लक्ष्मण, कि सुग्रीव को तनिक इतना ही डराना, कि सुग्रीव भयग्रसित होकर हमसे विपरीत दिशा की तरफ न दौड़ पड़े, अपितु हमारी ओर ही आए-

‘तब अनुजहि समझावा रघुपति करूना सींव।

भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव।।’

यही भय का सदुपयोग है। प्रिय अनुज! भय की ऐसी वृति, जो प्रभु से जोड़ दे, वह भी कल्याणप्रद है। संसार में एक माँ भी जब देखती है, कि उसका बच्चा खेलते-खेलते कूँए के बिल्कुल किनारे पर आ बैठा है। तो निश्चित ही यह परिस्थिति भयानक बन सकती है। क्योंकि बच्चा कभी भी उस कुँए में गिर सकता है। ऐसे हालात में माँ क्या करती है। वह माँ उस बच्चे को प्यार व डांट के साथ काबू में करती है। लेकिन देखने योग्य तो यह है कि यहाँ उस माँ की डांट उच्च कोटि के मनोविज्ञान से प्रेरित होती है। माँ को पता है कि डांट अगर नपी-तुली नहीं होगी, तो परिणाम घातक भी हो सकते हैं। इसलिए माँ उस बालक को उतना ही डांटती है, कि उसका बालक डर कर उसकी तरफ ही आये, न कि भयभीत होकर कूँए में जा गिरे। मैं आशा करता हुं प्रिय लक्ष्मण, कि मेरे कहने का तात्पर्य तुम समझ ही गये होगे।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: प्रभु श्रीराम सुग्रीव पर क्रोधित तो थे लेकिन अपनी लीला के जरिये उसे समझाना चाहते थे

श्रीलक्ष्मण जी प्रभु श्रीराम जी के ऐसे आशीष वचन सुन कर गदगद हो उठे। प्रभु की इस लीला ने उन्हें आनंद से भर दिया। प्रभु ने साथ में श्रीलक्ष्मण जी को यह भी अहसास करा दिया, कि ऐसा नहीं प्रिय लक्ष्मण, कि तुम ही मेरी संतान तुल्य हो। राजा सुग्र्रीव भी मेरी संतान ही है। यह बात और है कि वह तनिक बिगड़-सा गया है। इसलिए तुम थोड़ी बहुत झाड़-फूँककर दो, ताकि उसके मन रूपी दर्पण पर जो धूल आ चुकी है, उसकी तनिक सफाई हो सके। दर्पण सवच्छ होगा, तभी तो उसको हमारे दर्शन स्पष्ट प्रतीत होंगे। कारण कि हम कहीं बाहर थोड़़ी न हैं। अपितु उसके हृदय में ही सुशोभित हैं। और सुग्रीव के हृदय का दर्पण अभी मलिन है। इसलिए जायो प्रिय लक्ष्मण! उठायो अपना धनुष बाण और कर दो सुग्रीव के घातक विषयों का नाश।

श्रीलक्ष्मण जी क्या सुग्रीव को वापिस मुख्यधारा में लाने में सफल हो पाते हैं? जानेंगे अगले अंक में...(क्रमशः)...जय श्रीराम!

-सुखी भारती

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़