IL&FS के पूर्व ऑडिटरों ने प्रतिबंध लगाने के NCLT के अधिकार पर उठाए सवाल
डेलॉयट का पक्ष रखते हुए जनक द्वारकादास ने दलील दी कि यदि ऑडिटर कंपनी के साथ नहीं जुड़ा है तो कंपनी अधिनियम की धारा 140(5) लागू नहीं होती है। यह धारा ऑडिटरों के इस्तीके से जुड़ी है।
मुंबई। आईएलएंडएफएस समूह के पूर्व ऑडिटरों डेलॉयट और बीएसआर एसोसिएट्स ने शुक्रवार को एक बार फिर दोहराया कि उनको प्रतिबंधित करना राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। उन्होंने कहा कि मौजूदा कानून केवल उन ऑडिटरों को दंडित कर सकता है जो कंपनी से जुड़े हुए हैं। केपीएमजी की सहयोगी डेलॉयट हस्किंस एंड सैल्स और बीएसआर एसोसिएट्स अब आईएलएंडएफ समूह के ऑडिटर नहीं हैं। डेलॉयट ने 2017-18 में ही ऑडिटर पद से इस्तीफा दे दिया था जबकि बीएसआर ने पिछले महीने दिया है। हालांकि, कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने इन ऑडिटरों के अपना काम ठीक से नहीं करने की वजह से पांच साल का प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
डेलॉयट का पक्ष रखते हुए जनक द्वारकादास ने दलील दी कि यदि ऑडिटर कंपनी के साथ नहीं जुड़ा है तो कंपनी अधिनियम की धारा 140(5) लागू नहीं होती है। यह धारा ऑडिटरों के इस्तीके से जुड़ी है। उन्होंने कहा, "धारा 140 (5) सिर्फ मौजूदा ऑडिटरों पर लागू होती है और डेलॉयट 2017-18 में अलग हो गया था। न्यायाधिकरण की शक्तियों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि मंत्रालय एनसीएलटी को नियमों को दायरा बढ़ाने के लिए कह रहा है। दास ने कहा, "धारा 140(5) का उद्देश्य ऑडिटर बदलने या हटाने तक सीमित है, न कि ही उन्हें दंडित करने के लिए है।" इस तरह का तर्क बीएसआर के वकील ने भी दिया।
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उन्होंने कहा, "कंपनी अधिनियम के अनुसार एक ऑडिटर को केवल धारा 132 और 447 के तहत दंडित किया जा सकता है, जबकि धारा 140 (5) सरकार को केवल ऑडिटर को हटाने की अनुमति देती है।" उन्होंने तर्क दिया कि किसी भी अदालत के पास कानून में संशोधन करने का अधिकार नहीं है। इन दलीलों का जवाब देते हुए मंत्रालय के वकील संजय शौर्य ने कहा कि "व्याख्या" के नाम पर पूर्व में की गई गड़बड़ियों के परिणामों से आडीटर बच नहीं सकते हैं। धोखाधड़ी का आरोप लगने पर उसके बाद परिणाम भुगतने होते हैं। न्यायाधिकरण इस मामले में अगली सुनवाई 22 जुलाई को करेगी।
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