भारत की GDP में तेज़ उछाल से दर कटौती पर सवाल, महंगाई रिकॉर्ड-लो: RBI की अगली नीति पर सबकी निगाहें

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Ankit Jaiswal । Dec 1 2025 10:15PM

भारत की जीडीपी में 8.2% की अप्रत्याशित वृद्धि और रिकॉर्ड-निम्न 0.25% की खुदरा महंगाई दर ने आरबी आई की अगली नीति पर सबकी निगाहें टिका दी हैं, जिससे दर कटौती की संभावनाओं पर सवाल उठ रहे हैं। मजबूत आर्थिक विकास और अत्यंत कम महंगाई का यह विरोधाभासी परिदृश्य आरबी आई के लिए एक दुविधा प्रस्तुत करता है, जहाँ कुछ विश्लेषक कटौती की बजाय 'रोक' की सलाह दे रहे हैं।

अभी हाल में जारी हुए भारत के आर्थिक आंकड़ों ने आर्थिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। मौजूद जानकारी के अनुसार, जुलाई–सितंबर तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था ने 8.2% की अपेक्षा से कहीं तेज़ रफ्तार पकड़ी है, जिसके बाद कई विश्लेषकों ने पूरे वित्त वर्ष की विकास दर को 7% से ऊपर कर दिया है। बता दें कि यह वृद्धि उस संभावित दर के आसपास है, जिस पर अर्थव्यवस्था बिना अतिरिक्त महंगाई पैदा किए आगे बढ़ सकती हैं।

गौरतलब है कि इतनी मजबूत विकास दर ऐसे समय में आई है, जब खुदरा महंगाई अक्टूबर में घटकर मात्र 0.25% के रिकॉर्ड-निचले स्तर पर पहुँच गई। यह स्थिति केंद्रीय बैंक के लिए दिलचस्प दुविधा पैदा करती है, क्योंकि कम महंगाई आमतौर पर नीति दरों में कटौती की संभावना बढ़ाती है, जबकि मजबूत ग्रोथ कटौती के पक्ष में तर्कों को कमजोर करती हैं।

IDFC फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता का कहना है कि दिसंबर की RBI नीति बैठक ऐसे माहौल में होगी, जहाँ ग्रोथ बेहद मजबूत है और महंगाई अत्यंत निचले स्तर पर। उनके अनुसार, “ऐसे हालात में विराम ज्यादा तार्किक दिखता है, और कटौती का उपयोग तब करना चाहिए जब आर्थिक जोखिम अधिक स्पष्ट हों।”

बता दें कि ज्यादातर अर्थशास्त्री पहले ही अनुमान लगा रहे थे कि 5 दिसंबर को RBI 25 बेसिस पॉइंट की कटौती कर सकता है, जिससे रेपो रेट घटकर 5.25% तक आ जाएगा। उल्लेखनीय है कि RBI इस साल की पहली छमाही में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती कर चुका है और अगस्त के बाद से दरों को स्थिर बनाए हुए हैं।

RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने भी हाल में कहा था कि दरें घटाने की गुंजाइश मौजूद है, लेकिन इसका फैसला मौद्रिक नीति समिति की सामूहिक सोच पर निर्भर करेगा। वहीं, ICICI सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के मुख्य अर्थशास्त्री ए. प्रसन्ना का मानना है कि महंगाई उम्मीद से कहीं ज्यादा नरम पड़ी है और आगे का परिदृश्य भी अनुकूल दिख रहा है, इसलिए 25 बेसिस पॉइंट की एक और कटौती उचित हो सकती है।

फिलहाल वास्तविक ब्याज दर यानी रेपो रेट से महंगाई घटाने के बाद मिलने वाला अंतर काफी ऊँचे स्तर पर है, जिससे कई विशेषज्ञ कटौती की जरूरत महसूस कर रहे हैं। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में विकास दर धीमी पड़ सकती है, क्योंकि अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50% आयात शुल्क लागू करने से निर्यात और रोजगार दोनों पर दबाव बढ़ेगा।

Barclays ने GDP के मजबूत आंकड़ों के बाद कहा है कि अब दर कटौती की संभावना पिछले अनुमान की तुलना में कम दिखाई देती है। हालांकि निवेशक अभी भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि RBI महंगाई के नए अनुमान को और घटाकर 2.6% से नीचे ला सकता है, जबकि पूरे वर्ष की GDP वृद्धि का लक्ष्य भी बढ़ाया जा सकता है।

कुल मिलाकर, भारत की बेहद मजबूत ग्रोथ और ऐतिहासिक रूप से कम महंगाई ने RBI के सामने दिलचस्प संतुलन साधने का मौका खड़ा किया है, और अब निगाहें 5 दिसंबर की बैठक पर टिक गई हैं।

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