जाति की बाधा को दूर कर इस उद्योगपति ने खड़ा किया 400 करोड़ रुपये का बिजनेस, PM Modi से लेकर Ratan Tata से लेकर भी कर चुके हैं सम्मान

कई उद्योगपति ऐसे भी होते हैं जो रंक से राजा बनने तक का सफर तय करते है। ऐसे ही एक उद्योगपति हैं रतिभाई मकवाना, जो गुजरात के बहुत मशहूर उद्योगपति है। रतिभाई की कहानी साहस, संघर्ष और दृढ़ संकल्प से भरी हुई है।
देश के कई उद्योगपतियों का नाम आप जानते होंगे जैसे रतन टाटा, मुकेश अंबानी और गौतम अडाणी। ये ऐसे नाम हैं जो आमतौर पर चर्चा में बने रहते है। वहीं कई उद्योगपति ऐसे भी हैं जो अपनी सफलता के कारण उस मुकाम पर पहुंचते हैं जहां पहुंचने का आम व्यक्ति सपना भी नहीं देख सकता है।
वहीं कई उद्योगपति ऐसे भी होते हैं जो रंक से राजा बनने तक का सफर तय करते है। ऐसे ही एक उद्योगपति हैं रतिभाई मकवाना, जो गुजरात के बहुत मशहूर उद्योगपति है। रतिभाई की कहानी साहस, संघर्ष और दृढ़ संकल्प से भरी हुई है। उन्होंने तमाम परेशानियों का सामना करने के बावजूद भी चुनौतियों पर जीत हासिल करने का मौका नहीं छोड़ा है। सफलता की ऊंचाइयों को छूने के लिए वो लगातार कोशिश करते रहे। जाति के कारण उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता था कि चाय तक दूर से ही दे दी जाती थी, ताकि चाय परोसने वाले को उनके नजदीक ना जाना पड़े। यहां तक की एक बार ऊंची जाति के लोगों ने उन्हें एक मंदिर से जबरदस्ती बाहर निकाल दिया था।
ऐसी तमाम निम्न स्तर की परेशानियों और मुसीबतों को सामना कर शीर्ष पर पहुंचने की कहानी ही रतिभाई मकवाना की। आज के समय में रतिभाई मकवाना करोड़ों रुपये के कारोबार के मालिक है। उनके कारोबार के कारण लगभग उन्होंने 3500 लोगों को रोजगार दिया है। सिर्फ यही नहीं उनके बिजनेस का सालाना रेवेन्यू 400 करोड़ से अधिक है। रतिभाई कितने योग्य हैं इसका अंदाजा खुद इस बात से लगाया जा सकता है कि रतन टाटा भी उनकी तारीफ कर चुके है। टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने भी भारतीय उद्योग में योगदान के लिए रतिभाई को सलाम किया है।
गुजरात में है कारोबार
रतिभाई मकवाना गुजरात पिकर्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वर्ष 1983 से 1998 तक, उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक के गुजरात सर्कल के निदेशक के रूप में अपनी सेवाएं दी है। उनके कार्य और उद्योग जगत में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें "बिजनेस एक्सीलेंस नेशनल अवार्ड" प्रदान किया है। यही नहीं इससे पहले वर्ष 2011 में टाटा के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा ने दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक ट्रेड फेयर में भारतीय उद्योग में रतिभाई के योगदान के लिए उन्हें सलाम किया।
संघर्षपूर्ण रहा है जीवन
जीवन के शुरुआती वर्षों में रतिभाई को कई जाति-आधारित अपमानों का सामना करना पड़ा था। रतिभाई को ऊंची जाति के बच्चों के साथ खेलने की मनाही थी। पड़ोस में चाय की दुकान पर चाय भी दूर से ही सर्व की जाती थी, जो जाहिर तौर पर छुआछूत है। यहां तक कि एक बार ऊंची जाति के लोगों ने उन्हें मंदिर में पूजा करने से मना किया और बाहर तक निकाल दिया था। रतिभाई के पिता एक खेतिहर मजदूर थे। उन्होंने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया।
हालांकि इन परेशानियों के बाद भी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। रतिभाई और उनके पिता ने वर्ष 1962 में गुजरात पिकर्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड की स्थापना की जो आमतौर पर रसायन का कारोबार करता है। शुरुआत में, गुजरात पिकर्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड की स्थापना पिकर्स और अन्य सहायक उपकरण बनाने के लिए एक साझेदारी उद्यम के रूप में की गई थी। बाद में व्यवसाय ने प्लास्टिक सामग्री और प्लास्टिक पॉलिमर, बेंजीन विलायक आदि का वितरण शुरू कर दिया।
हालांकि शुरुआत के दिनों में उन्हें काफी अधिक संघर्ष करना पड़ा था। बैंकों ने भी उनकी कंपनी को लोन देने से भी मना कर दिया था। इसके बाद भी रतिभाई के इरादों में कोई कमी नहीं आई और वो लगातार कंपनी को आगे बढ़ाते रहे। व्यवसाय ने तमामत प्रयासों के कारण बड़ी प्रगति की। रतिभाई ने पॉलिमर, पेट्रोकेमिकल्स, एडिटिव्स आदि का व्यापार करने में भी अपने व्यावसायिक हितों विस्तारित किया। रतिभाई ने पूरे गुजरात में परिचालन करने वाली और फिर पूरे भारत में विस्तार करने वाली एक कंपनी के निर्माण का निरीक्षण किया। उन्होंने एक एक्सपोर्ट हाउस की स्थापना करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने के कंपनी के प्रयासों का भी निरीक्षण किया। उन्होंने युगांडा में भी कारोबार स्थापित किया।
इस बात में कोई दोराय नहीं है कि रतिभाई ने अपना कारोबार, नाम बनाने में लंबा संघर्ष किया है। आज का समय है जब एक छोटी जाति के आम इंसान से बेहतरीन उद्योगपति की ओर भी बेहद सम्मान से देखते है। किसी समय में जिन बैंकों ने रतिभाई को लोन देने से इंकार किया था वो भी अब रतिभाई को लोन देने से पीछे नहीं हटते है। जिस व्यक्ति ने छुआछूत को बेहद नजदीक से देखा है आज मेहनत के कारण लोग उसके पास आकर बैठने को आतुर रहते है।
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