सिर्फ 200 रुपये लेकर पहुंचा था सपनों के शहर Mumbai, Dosa बेचकर इस व्यक्ति ने कमाए करोड़ों रुपये, विदेशों में है फेंचाइजी

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वर्ष 2007 तक देश के नौ शहरों तक उनकी पहुंच हो गई थी। इसके बाद उन्होंने इंटरनेशनल मार्केट में कदम रखने का फैसला किया। वर्ष 2008 में एशिया के सबसे बड़े मॉल में उनका काउंटर खुला। इसके बाद न्यूजीलैंड में भी उन्होंने अपना काउंटर खोला।

मुश्किलों से पार पा कर अपने मुकाम को हासिल करने वाले लोग दुनिया में बेहद कम है। इन्हीं चुनिंदा लोगों में से एक है प्रेम गणपति जो मेहनत के दम पर इतना आगे निकल गए की उन्होंने गरीबी को पीछे छोड़ दिया और करोड़पति क्लब में शामिल हो गए। वो ऐसे व्यवसायी बन गए हैं जिन्होंने लगातार वर्षों तक मेहनत की और खास मुकाम हासिल किया है।

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,  कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। जिंदगी में आने वाली मुश्किलों का सामना करने से ही जीवन निखरता है। इन्हीं मुश्किलों को पार किया है प्रेम गणपति ने, जिन्होंने मशहूर डोसा चेन डोसा प्लाजा की शुरुआत की है। किसी समय में बर्तन मांजने वाले प्रेम गणपति के डोसा चेन आज विदेशों में भी बेहद लोकप्रिय है। 

बता दें कि प्रेम गणपति का जन्म तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले के नागलपुरम में हुआ था। उनका परिवार बेहद गरीब था। सिर्फ 10वीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद पैसों के आभाव में उनकी पढ़ाई छूट गई। परिवार भी छोटा नहीं था बल्कि माता-पिता और उनके कुल सात बच्चे थे। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के कारण वो काफी छोटी उम्र से ही नौकरी करने लग गए थे। आलम ये था कि अलग अलग काम करने पर उन्हें महीने के 250 रुपये मिलते थे जिसे वो परिवार को ही दे देते थे।

मुंबई में मिला धोखा

उन्हें मुंबई में किसी ने 1200 रुपये प्रति महीने की नौकरी दिलाने का वादा किया और यहां बुलाया। माता-पिता मुंबई नहीं भेजेंगे इसलिए वो बिना घर पर बताए ही नौकरी करने के लिए मुंबई के लिए वर्ष 1990 में महज 17 वर्ष की उम्र में रवाना हो गए। मुंबई पहुंचने पर उनसे किसी ने 200 रुपये लूट लिए, जिसके बाद वो फंस गए। उन्होंने बिना पैसों के ही मुंबई में ही रूकने का फैसला किया और वहां रहकर किस्मत आजमाई।

शुरुआत में धोए बर्तन

दक्षिण भारत से होने के कारण उन्हें किसी की भाषा समझ नहीं आई। हालांकि किसी तरह उन्हें बर्तन धोने का काम स्थानीय बेकरी में मिला। यहां उन्हें हर महीने 150 रुपये तनख्वाह मिली। उन्हें बेकरी में ही सोने के लिए अनुमति भी मिल गई थी। उन्होंने अगले कुछ सालों कर मुंबई में कई तरह की नौकरियां की और बचत कर अपने घर भेजते हे।

इसके बाद उन्होंने दो वर्षों तक इधर उधर ठोकरें खाने के बाद वर्ष 1992 में खुद का ही खाने का काम शुरू कर लिया। इस काम को शुरू करने से पहले उन्होंने पर्याप्त बचत की थी। उन्होंने इडली और डोसा बेचने का काम शुरू किया। अपना काम शुरू करने के लिए उन्होंने 150 रुपये में एक ठेला किराए पर लिया। इसके बाद 100 रुपये लगातर बर्तन, स्टोव और अन्य सामान खरीदा। उन्होंने वाशी स्टेशन के सामने ही अपनी दुकान शुरू की जहां वो इडली और डोसा बेचते थे। उन्होंने अपने इस काम में दो भाइयों मुरुगन और परमिशवन को भी साथ में लिया।

उनके इस छोटे से स्टॉल की खासियत थी कि वो साफ सुथरा रहता था। साफ-सफाई होने के कारण लोग उनके स्टॉल पर आना पसंद करते थे। लोगों को उनके डोसे का स्वाद भी पसंद आने लगा क्योंकि वो बिलकुल ऑथेंटिक टेस्ट ही लोगों को सर्व कर रहे थे। उनका ये कारोबार जल्द ही फलने फूलने लगा। वो हर महीने 20 हजार रुपया का लाभ कमाने लगे जिसके बाद उन्होंने वाशी में एक दुकान किराए पर ली, जहां कच्चा सामान और मसाला तैयार किया जाता था।

पांच साल बाद खोला पहला रेस्टोरेंट

लगातार कई वर्षों की मेहनत के बाद उन्होंने 1997 में 50,000 रुपये जमा किए और पहला रेस्टोरेंट खोला जिसका नाम प्रेम सागर डोसा प्लाजा रखा। इस जगह का किराया पांच हजार रुपये था। इस रेस्टोरेंट को चलाने के लिए उन्होंने दो लोगों को काम पर रखा। रेस्टोरेंट में अधिकतर कॉलेज जाने वाले लोग आते थे। इसी बीच उन्होंने अपनी वेबसाइट भी बनाई और डोसा को ऑथेंटिक टेस्ट के साथ फ्यूजन के तौर पर भी पेश किया। उन्होंने अपने डोसा मेन्यू में कई अन्य रेसेपी शामिल की, जिससे उनका मेन्यू 10-15 डोसा तक हो गया। उनका कारोबार इतना फैला की वो हर महीने 10 लाख तक कमाने लगे। 

फ्यूजन डोसा की शुरुआत

वर्ष 1999 में प्रेम गणपति ने फ्यूजन डोसा की शुरुआत की और डोसा के साथ चाइनीज का फ्यूजन किया। ये फ्यूजन उनके ग्राहकों को काफी पसंद आया। उनका चाइनीज स्टाइल डोसा लोगों को बेहद पसंद आया। उन्होंने डोसा में अमेरिकन चॉप्सी, शेजवान डोसा, पनीर चिली डोसा, स्प्रिंग रोज डोसा जैसी यूनिक वैरायटी पेश की। वर्ष 2002 तक उन्होंने डोसा प्लाजा में 104 वैरायटी पेश की और ये लोगों में बहुत लोकप्रिय था।

मॉल में खोला काउंटर

इसी बीच मुंबई में पहला मॉल बन रहा था। तभी उन्होंने मुंबई के पहले मॉल में डोसा प्लाजा का काउंटर खोला। यहां उन्हें तीन लाख का निवेश करना पड़ा था, जिसके लिए उन्होंने उधार भी लिया। इस काउंटर की शुरुआत होने पर पहले ही महीने छह लाख की कमाई हुई थी। इसके बाद उन्होंने डोसा प्लाजा की फ्रेंचाइजी देना शुरू किया। यहां भी उन्हें लाभ हुआ।

वर्ष 2005 में रखा इंटरनेशनल मार्केट में कदम

इसके बाद उन्होंने मुंबई से बाहर निकलकर भारत के कई राज्यों में अपनी फ्रेंचाइजी और आउटलेट खोले। वर्ष 2007 तक देश के नौ शहरों तक उनकी पहुंच हो गई थी। इसके बाद उन्होंने इंटरनेशनल मार्केट में कदम रखने का फैसला किया। वर्ष 2008 में एशिया के सबसे बड़े मॉल में उनका काउंटर खुला। इसके बाद न्यूजीलैंड में भी उन्होंने अपना काउंटर खोला। वर्ष 2011 में दुबई में उनके डोसा प्लाजा का काउंटर खुला। 

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