तेल-तिलहन कीमतों में मिला-जुला रुख

Edible oil
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कम कीमत पर किसानों द्वारा अपनी फसल की बिक्री से बचने और जाड़े में हल्के (सॉफ्ट) तेलों की स्थानीय मांग होने के कारण सरसों तेल-तिलहन और सोयाबीन तेल कीमतों में सुधार आया।

विदेशी बाजारों में तेजी के रुख के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में मंगलवार को कारोबार का मिला-जुला रुख रहा। एक ओर जहां सरसों तेल-तिलहन, सोयाबीन तेल और कच्चे पामतेल (सीपीओ) की कीमतें सुधार के साथ बंद हुईं, वहीं ऊंचे भाव पर मांग कमजोर होने से बिनौला तेल कीमत में गिरावट देखने को मिली। बाकी खाद्य तेल-तिलहनों की कीमतें अपरिवर्तित रहीं। बाजार सूत्रों ने कहा कि आयातित तेलों में सबसे सस्तेपामोलीन तेल के आगे देशी तेलों का टिकना मुश्किल हो रहा है।

कम कीमत पर किसानों द्वारा अपनी फसल की बिक्री से बचने और जाड़े में हल्के (सॉफ्ट) तेलों की स्थानीय मांग होने के कारण सरसों तेल-तिलहन और सोयाबीन तेल कीमतों में सुधार आया। पेराई मिलों को सरसों और बिनौला की पेराई में नुकसान है तथा सबसे सस्ता तेल होने की वजह से सीपीओ और पामोलीन तेल की मांग अधिक है जबकि सामान्य तौर पर जाड़े के दिनों में इन तेलों की मांग कम रहती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में यहां कृषि विशेषज्ञों और कृषि प्रसंस्करण उद्योग के प्रतिनिधियों की बजट-पूर्व बैठक हुई।

बैठक में हिस्सा लेने वाले कंसोर्टियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन (सीआईएफए) के अध्यक्ष रघुनाथ दादा पाटिल ने कहा कि गेहूं और टूटे चावल जैसे कृषि उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध के कारण किसानों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता कम करने के लिए पाटिल ने सुझाव दिया कि सोयाबीन, सूरजमुखी और मूंगफली के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

सूत्रों ने कहा कि सरकार की ओर से शुल्कमुक्त आयात की छूट दिये जाने के बावजूद सूरजमुखी और सोयाबीन डीगम तेल ग्राहकों को सस्ता मिलने की जगह महंगे में खरीदना पड़ रहा है क्योंकि ‘कोटा प्रणाली’ लागू करने की वजह से बाकी आयात प्रभावित हुआ है और खाद्य तेलों की कम आपूर्ति की स्थिति के कारण इन तेलों के भाव प्रीमियम लगाये जाने की वजह से लगभग 10 प्रतिशत ऊंचा बिक रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस कम आपूर्ति की स्थिति को खत्म करने के लिए कोटा प्रणाली हटाकर सूरजमुखी और सोयाबीन तेल पर 10 प्रतिशत का आयात शुल्क लगा देना चाहिये।

इससे किसानों को फायदा होगा क्योंकि उनके तिलहन के अच्छे दाम मिलेंगे, आपूर्ति बढ़ने से उपभोक्ताओं को फायदा होगा और तेल मिलों को सस्ते आयातित तेलों की वजह से जो बाजार टूटा है, उससे राहत मिलेगी और सरकार को भी राजस्व की प्राप्ति होगी। सूत्रों ने कहा कि अगर आयातित तेलों पर निर्भरता बढ़ी और देशी तिलहन का उत्पादन नहीं बढ़ा तो पशुचारा और मुर्गीदाना के लिए मारामारी और बढ़ेगी क्योंकि तिलहन की पेराई से ही डीआयल्ड केक (डीओसी) और खल प्राप्त हो सकता है।

हाल के दिनों में मवेशी चारे और मुर्गीदाने के रूप में उपयोग के लिए डीओसी और खल की वैश्विक मांग में इजाफा देखने को मिला है। सोयाबीन से लगभग 82 प्रतिशत डीओसी प्राप्त होता है और किसान इसलिए इस फसल को बोते हैं कि तेल के अलावा डीओसी के निर्यात से उन्हें काफी फायदा होता है। सीपीओ तेल में कोई डीओसी नहीं निकलता है कि खल की कमी को किसी आयात से पूरा किया जा सके। मंगलवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन - 7,325-7,375 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली - 6,585-6,645 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,100 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,445-2,705 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 14,900 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 2,255-2,385 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 2,315-2,440 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 14,250 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,850 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 12,750 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,700 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,450 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,300 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,400 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,650-5,750 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज 5,460-5,510 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का) 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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