तेल oilseeds बाजार में ज्यादातर तेल तिलहनों के भाव स्थिर

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सूत्रों ने कहा कि पिछले साल देश में एक फरवरी 2022 को पाइपलाइन में खाद्यतेलों का स्टॉक 18 लाख टन का था जबकि एक फरवरी 2023 में पाइपलाइन में स्टॉक लगभग 34.5 लाख टन का हो गया है।

दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शुक्रवार को ज्यादातर तेल तिलहनों के भाव पूर्वस्तर पर बंद हुए जबकि सरसों तेल तिलहन और बिनौला तेल कीमतों में गिरावट रही। बाजार सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में 0.7 प्रतिशत की गिरावट रही जबकि शिकॉगो एक्सचेंज कल रात हानि के साथ बंद होने के बाद फिलहाल सामान्य है। सूत्रों ने कहा कि पिछले साल देश में एक फरवरी 2022 को पाइपलाइन में खाद्यतेलों का स्टॉक 18 लाख टन का था जबकि एक फरवरी 2023 में पाइपलाइन में स्टॉक लगभग 34.5 लाख टन का हो गया है।

देशी खाद्यतेल से 20-25 रुपये लीटर सस्ता होने के कारण व्यापारी दबाकर शुल्कमुक्त आयात वाले सूरजमुखी तेल का आयात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह देश के सरसों उत्पादक किसानों के लिहाज से अच्छा नहीं है। उपभोक्ताओं को भी कोई विशेष लाभ नहीं है क्योंकि जब अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) ही जरुरत से कहीं ज्यादा तय किया गया हो तो उसमें 8-10 प्रतिशत की कमी भी हो जाये तो इसे खाद्यतेल कीमतों में आई गिरावट का समुचित लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिलता।

सूत्रों ने कहा कि जब वैश्विक बाजारों में खाद्यतेलों के दाम कम हो रहे थे उस वक्त सरकार की ओर से शुल्कमुक्त आयात की छूट नहीं दी जानी चाहिये थी और अब जबकि आयातित तेलों के दाम सात-आठ माह पूर्व के मुकाबले आधे से भी कम रह गये हैं तो देश के तिलहन उत्पादक किसानों के हित में सरकार को तत्काल सस्ते आयातित तेलों पर अधिकतम सीमा तक आयात शुल्क लगाने के बारे में विचार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि देश में तिलहन उत्पादन नहीं बढ़ने का कारण है कि जब कीमतों में वृद्धि होती है तो विदेशी खाद्यतेल कंपनियां विभिन्न माध्यमों से बाजार में इस बात को फैलाती हैं कि इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी।

इन प्रचारों के जरिये विदेशी कंपनियां सरकार पर आयात शुल्क कम करने का दवाब बनाती दिखती हैं और अक्सर सफल भी हो जाती हैं। इससे आयात बढ़ जाता है और देशी तेल तिलहन उत्पादकों को नुकसान होने के अलावा ‘खल’ महंगे हो जाते हैं। मौजूदा समय में यही स्थिति है कि तेल के दाम टूटे पड़े हैं और खल महंगा है जिसकी वजह से दूध एवं दुग्ध उत्पादों के दाम बढ़ रहे हैं। समय का इंतजार नहीं करते हुए सरकार को जल्द ही इस दिशा में कार्रवाई करने के बारे में सोचना चाहिये।

उन्होंने कहा कि देश में खाद्यतेलों का आयात खर्च 10 साल में दोगुना से भी अधिक हो गया है।मौजूदा स्थिति बनी रही तो यह खर्च और बढ़ सकता है। इस स्थिति को, देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाकर ही पलटा जा सकता है और इससे देश में रोजगार बढ़ने के साथ साथ भारी मात्रा में विदेशीमुद्रा की बचत भी होगी। शुक्रवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन - 5,630-5,680 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली - 6,775-6,835 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 16,550 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,540-2,805 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 11,680 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 1,890-1,920 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 1,850-1,975 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 11,900 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 11,650 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 10,380 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,900 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 10,400 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,450 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,500 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,430-5,560 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज- 5,170-5,190 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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