गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां सितंबर, 2025 तक बुनियादी वित्तीय सेवा समाधान लागू करेंगी: आरबआई

Reserve Bank of India

आरबीआई ने एक परिपत्र में कहा कि 10 और उससे अधिक सेवा केंद्रों वाली एनबीएफसी ‘मिडल लेयर’ और एनबीएफसी ‘अपर लेयर’ के अंतर्गत आने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को अनिवार्य रूप से बुनियादी वित्तीय सेवा समाधान (सीएफएसएस) उपलब्ध कराना होगा।

मुंबई| भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने निश्चित श्रेणी के तहत आने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बुनियादी वित्तीय सेवा समाधान 30 सितंबर 2025 तक उपलब्ध कराने को कहा है।

यह ठीक उसी प्रकार है जैसे बैंकों के लिये कोर बैंकिंग समाधान (सीबीएस) की व्यवस्था है। इस व्यवस्था से एनबीएफसी के कामकाज का एकीकरण होगा और ग्राहकों को कहीं भी, किसी भी समय बेहतर तरीके से सेवा प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

आरबीआई ने एक परिपत्र में कहा कि 10 और उससे अधिक सेवा केंद्रों वाली एनबीएफसी ‘मिडल लेयर’ और एनबीएफसी ‘अपर लेयर’ के अंतर्गत आने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को अनिवार्य रूप से बुनियादी वित्तीय सेवा समाधान (सीएफएसएस) उपलब्ध कराना होगा।

आरबीआईने कहा कि सीएफएसएस के तहत ग्राहकों को कहीं भी / कभी भी सुविधा के साथ उत्पादों और सेवाओं से संबंधित डिजिटल पेशकशों और लेनदेन की सुविधा दी जाएगी। यह व्यवस्था एनबीएफसी के कार्यों के एकीकरण करेगी। साथ ही यह केंद्रीकृत आंकड़ा और लेखा रिकॉर्ड प्रदान करेगा। इसके लिये समयसीमा 30 सितंबर, 2025 तय की गयी है।

हालांकि ‘अपर लेयर’ वाली एनबीएफसी यह सुनिश्चित करेंगी कि सीएफएसएस कम-से-कम 70 प्रतिशत सेवा केंद्रों में 30 सितंबर, 2024 तक लागू हो। केंद्रीय बैंक के अनुसार, 10 से कम सेवा केंद्रोंवाली एनबीएफसी-बेस लेयर और एनबीएफसी- ‘मिडल’ और ‘अपर लेयर’ के लिये सीएफएसएस लागू करना अनिवार्य नहीं है।

हालांकि वे अपने लाभ के लिये इसे लागू कर सकती हैं। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय बैंक ने एनबीएफसी की विभिन्न श्रेणी बना रखी है। इसमें एनबीएफसी ‘मिडल लेयर’ से आशय वैसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से है जो जमा स्वीकार करती हैं, भले ही उनका संपत्ति आकार कुछ भी हो। इसके अलावा इस श्रेणी में 1,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक की संपत्ति आकार वाली एनबीएफसी भी हैं, जो जमा नहीं लेती हैं।

साथ ही इसमें निवेश कंपनियां, आवास वित्त कंपनियां और बुनियादी ढांचा वित्त कंपनियां जैसे एनबीएफसी का काम करने वाली कंपनियां भी शामिल हैं। वहीं ‘अपर लेयर’ के अंतर्गत वे एनबीएफसी आती हैं, जिन्हें आरबीआई द्वारा विशेष रूप से तय मापदंडों और ‘स्कोरिंग’ तौर-तरीकों के आधार पर बढ़ी हुई नियामकीय आवश्यकता के रूप में पहचाना जाता है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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