राज्यपाल की रिपोर्ट के बाद पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की तेज हुई मांग- अब क्या करेगी मोदी सरकार ?

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस की एक रिपोर्ट ने केंद्र सरकार की दुविधा को बढ़ा दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्यपाल ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम के विरोध में प्रदर्शन के दौरान मुर्शिदाबाद इलाके में हुई हिंसा की रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है।
राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और कांग्रेस में अनगिनत मुद्दों पर मतभेद हैं लेकिन जब भी बात पश्चिम बंगाल की आती है तो दोनों पार्टियों के स्थानीय नेता एक ही सुर में बोलते हुए नजर आते हैं। पश्चिम बंगाल में नेता चाहे कांग्रेस पार्टी के हो या फिर भारतीय जनता पार्टी के, दोनों ही एक ही सुर में राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते रहते हैं। पश्चिम बंगाल में दोनों ही दलों के स्थानीय नेताओं का यही आरोप रहता है कि राज्य में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और ममता बनर्जी सही तरीके से सरकार चला नहीं पा रही है।
बीजेपी की केंद्र में सरकार होने के बावजूद राज्य भाजपा के नेता लगातार पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था की स्थिति ध्वस्त होने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करते रहते हैं। बीजेपी के पश्चिम बंगाल प्रदेश के नेता पिछले कुछ वर्षों के दौरान, कई बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर चुके हैं।
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हालांकि कई वजहों से केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में चल रही एनडीए गठबंधन की सरकार ममता बनर्जी सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से बचती रही है। दरअसल, बीजेपी को सबसे बड़ा डर यह सताता रहता है कि अगर उनकी केंद्र सरकार ने ममता बनर्जी सरकार को बर्खास्त कर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा दिया तो विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की फिर से जीत सुनिश्चित हो जाएगी।
यही वजह है कि राज्य की सरकार पर हिंसा करवाने, बीजेपी नेताओं पर हमला करवाने, विरोधी नेताओं पर हमला करवाने, हिंदुओं पर हमला करवाने और कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा देने जैसे गंभीर आरोप लगाने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाना चाहते हैं।
लेकिन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस की एक रिपोर्ट ने केंद्र सरकार की दुविधा को बढ़ा दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्यपाल ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम के विरोध में प्रदर्शन के दौरान मुर्शिदाबाद इलाके में हुई हिंसा की रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में राज्यपाल ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि 'कट्टरपंथ और उग्रवाद की दोहरी' समस्या राज्य के लिए गंभीर चुनौती बन गई है। रिपोर्ट में बांग्लादेश के साथ लगते पश्चिम बंगाल के दो जिलों- मुर्शिदाबाद और मालदा में हालात भयावह तौर पर खराब होने का जिक्र किया गया है।
अपनी रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने राज्य की ममता बनर्जी सरकार और पश्चिम बंगाल की पुलिस पर भी सवाल उठाते हुए हिंसा की पूरी जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन, बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में केंद्रीय बलों की चौकियां स्थापित करने जैसे कई अहम सुझाव दिए हैं। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रपति शासन की तरफ इशारा करते हुए यह कह कर सनसनी फैला दी है कि,हालात बिगड़ने पर संविधान के अनुच्छेद- 356 के तहत प्रावधान भी विकल्प बने रहेंगे। अनुच्छेद-356 यानी राष्ट्रपति शासन।
राज्यपाल ने सीधे तौर पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश तो नहीं की है लेकिन यह जरूर लिख दिया है कि अगर राज्य में स्थिति और ज्यादा बिगड़ती है तो केंद्र संविधान के अनुच्छेद-356 के प्रावधानों को लागू करने पर विचार कर सकती है।
पश्चिम बंगाल में वर्ष 2026 यानी अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है। बीजेपी जोर-शोर से चुनाव की तैयारियों में जुटी हई है। पार्टी आलाकमान का यह दावा है कि इस बार बीजेपी राज्य में सरकार बनाने जा रही है। लेकिन इससे पहले ही राज्यपाल की इस रिपोर्ट ने पार्टी के आला नेताओं की दुविधा को बढ़ा दिया है। केंद्र सरकार को चलाने वाले नेता अब तक अपने ही नेताओं की पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग को खारिज करते रहे हैं लेकिन राज्यपाल की इस रिपोर्ट के बाद अब ममता बनर्जी सरकार को बर्खास्त करने की मांग को इतनी आसानी से नकारा नहीं जा सकता।
इस मामले में एक तरफ पश्चिम बंगाल बीजेपी के तमाम नेता और कार्यकर्ता हैं जो हर हाल में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में राष्ट्रपति शासन लगे देखना चाहते हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी की केंद्र सरकार है जिसका यह मानना है कि राष्ट्रपति शासन लगा तो ममता बनर्जी के पक्ष में मुस्लिमों के साथ-साथ उनके कैडर हिंदू वोटरों का भी ध्रुवीकरण होगा। ऐसे में क्या केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कोई बीच का रास्ता निकाल पाती है या नहीं, इसके लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा।
- संतोष कुमार पाठक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।
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