भूख से युद्ध के साथ शिक्षा की लौ जलाता अक्षय पात्र

Madhu Pandit Das
ANI

बहरहाल दीन-दुखियों, बच्चों, विधवा और बुजुर्ग महिलाओं एवं पुरूषों, स्कूली बच्चों और आंगनबाड़ी में आने वाले बच्चों को भोजन मुहैया कराने के लिए इस्कॉन से जुड़े दो संतों ने अक्षय पात्र की साल 2000 में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में की। इस्कॉन से जुड़े मधु पंडित दास और चंचलापति दास ने मिलकर अक्षय पात्र फाउंडेशन की स्थापना की।

महाभारत में एक कथा आती है..जुए में अपना सबकुछ हारने के बाद पांडव वनवास काट रहे हैं..उसी दौरान वे सूर्य की उपासना करते हैं..सूर्य देव प्रसन्न होकर युधिष्ठिर को एक पात्र देते हैं..उस पात्र की विशेषता है कि उसमें रखा भोजन कभी खत्म ही नहीं होता...वह सदा भरा ही रहता है। अक्षय का अर्थ ही होता है, जिसका कभी क्षय ना हो, यानी जिसमें कभी कोई कमी ना हो..कहना न होगा कि इस्कॉन का अक्षय पात्र भी पांडवों के अक्षय पात्र की तरह हो गया है..भूखे, बेसहारा, गरीब, बेघर बुजुर्ग माताओं, आंगनबाड़ी और स्कूली बच्चों की भूख मिटाने का आज यह बड़ा सहारा बन गया है। साल 2000 में शुरू इस संकल्प ने चौथाई सदी की यात्रा पूरी कर ली है। 

अक्षय पात्र सोलह राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के करीब 24 लाख बच्चों को नियमित रूप से उनके स्कूलों में भोजन करा रहा है। साल 2001 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन योजना को लागू करने का आदेश दिया। देश की सर्वोच्च अदालत में दायर एक जनहित याचिका  में कहा गया था कि खाद्य निगम के गोदामों में काफी मात्रा में अन्न सड़ जाता है। उस अन्न के जरिए मध्यान्ह भोजन योजना लागू की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय को यह तर्क जंचा और उसके ही आदेश पर समूचे देश के स्कूलों में दोपहर में बना हुआ भोजन देना जरूरी कर दिया गया। इसके पहले केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने 15 अगस्त 1995 को राष्ट्रीय पोषण योजना की चुने हुए ब्लॉकों में शुरूआत की, जिसके तहत स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन मुहैया कराना शुरू हुआ । बाद में इसके तहत बच्चों को मुफ्त चावल दिया जाने लगा। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब पका हुआ खाना देना अनिवार्य कर दिया गया। अब इसका नाम प्रधानमंत्री पोषण कार्यक्रम कर दिया गया है। 

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अक्षय पात्र फाउंडेशन की शुरुआत के पीछे अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ यानी इस्कॉन के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद का भी एक संकल्प कार्य कर रहा है। स्वामी प्रभुपाद पश्चिम बंगाल के मायापुर में भगवान कृष्ण के भजन में लीन रहते थे। एक बार उन्होंने अपनी खिड़की से देखा, कूड़े में फेंके भोजन को लेकर कुत्ते और कुछ बच्चों में खींचतान चल रही थी। यह कारूणिक दृश्य देखकर प्रभुपाद परेशान हो गए। उन्होंने तब संकल्प लिया कि वे ऐसी व्यवस्था करेंगे, जिसकी वजह से उनके आसपास कोई भूखा रहने को मजबूर ना हो सके। इस्कॉन के मंदिरों में यह व्यवस्था अहर्निश अब तक जारी है। उनके यहां भोजन के वक्त कोई भूखा नहीं रहता। 

बहरहाल दीन-दुखियों, बच्चों, विधवा और बुजुर्ग महिलाओं एवं पुरूषों, स्कूली बच्चों और आंगनबाड़ी में आने वाले बच्चों को भोजन मुहैया कराने के लिए इस्कॉन से जुड़े दो संतों ने अक्षय पात्र की साल  2000 में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में की। इस्कॉन से जुड़े मधु पंडित दास और चंचलापति दास ने मिलकर अक्षय पात्र फाउंडेशन की स्थापना की। पहले साल साल इस योजना के तहत बेंगलुरू के पांच स्कूलों के 1,500 बच्चों को भोजन उपलब्ध कराया गया। तब से यह फाउंडेशन लगातार कार्य कर रहा है और आज स्थिति यह है कि अक्षय पात्र सोलह राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी विद्यालयों के करीब चौबीस लाख बच्चों को रोजाना दोपहर का भोजन मुहैया करा रहा है। अक्षय पात्र का उद्देश्य भूख की वजह से स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को भोजन मुहैया कराना और उन्हें शिक्षा हासिल करने में सहयोगी बनना है। शुरुआत में सीमित पैमाने पर काम करने के बाद, संस्था का विस्तार तेजी से हुआ। आज यह भारत में सबसे बड़े मध्याह्न भोजन कार्यक्रमों में से एक का संचालन करता है, जिसके दायरे में अब करीब चौथाई करोड़ बच्चे आ चुके हैं।

अक्षय पात्र के जरिए अब तक चार  अरब से ज्यादा थालियां खिलाई जा चुकी हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो चार अरब लोगों को अब तक भोजन मुहैया कराया जा चुका है। इसका मतलब यह है कि भारत की आबादी के करीब ढाई गुना ज्यादा लोगों को अब तक यह गैरलाभकारी संगठन खाना खिला चुका है। अक्षय पात्र की पहुंच आज 23,978 से अधिक स्कूलों तक हो गई है। इस साल मार्च में अक्षय पात्र ने अपना 78वां रसोईघर स्थापित किया। बहुत लोगों को जानकर हैरत होगी कि इनमें से 47 रसोईघरों को आईएसओ प्रमाण पत्र हासिल है। 

सरकारी स्कूलों में जारी मध्यान्ह भोजन योजना पर दो तरह के आरोप लगते रहे हैं। पहला भ्रष्टाचार का होता है, जबकि दूसरा परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता पर रहा है। कमोबेश ये शिकायतें अभी तक बनी हुई हैं। लेकिन अक्षय पात्र की ओर से जिन स्कूलों, आंगनबाड़ियों आदि में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है, वहं ऐसी कोई शिकायत नहीं है। 

इसकी वजह यह है कि अक्षय पात्र सिर्फ सरकार से मिलने वाले चावल, दाल और गेहूं और दूसरी सहूलियतों पर ही निर्भर नहीं है। अक्षय पात्र फाउंडेशन दान दाताओं से भी मिले सहयोग पर भी निर्भर है। दान में मिली रकम से अक्षय पात्र ने ना सिर्फ भोजन की गुणवत्ता बेहतर बनाए रखी है, बल्कि पौष्टिकता और पोषण का भी ध्यान रखा है। उसके पास जो 78 रसोईघर हैं, वे पूरी तरह मशीनीकृत हैं । उनमें स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता है। भोजन को तैयार करने के लिए सैकड़ों लोग इन रसोईघरों में कार्यरत हैं। तैयार भोजन को स्कूलों और आंगनबाड़ियों को पूरी तरह एयर कंडिशंड व्यवस्था में भेजा जाता है। एक तरह से कह सकते हैं कि अक्षय पात्र का भोजन ढोने वाले वाहन सचल रेफ्रिजरेटर हैं। यानी भोजन के खराब होने या बासी होने की कोई वजह नहीं है। भोजन में तेल, सब्जी, आटा, दाल, चावल, मसाले आदि जिस भी चीज का इस्तेमाल होता है, उनकी गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जाता है। इतना ही नहीं, भोजन का मेन्यू भी एक ही नहीं होता। बल्कि भोजन का मेन्यू रोजाना अलग-अलग होता है। अक्षय पात्र के एक प्रवक्ता कहते हैं कि हमारा उद्देश्य पौष्टिक और गुणवत्ता युक्त भोजन मुहैया कराकर स्कूली बच्चों की सेहत का ध्यान तो रखना ही है, उनकी पढ़ाई की गुणवत्ता को निर्बाध रखना है। अध्ययन बताते हैं कि दोपहर का भोजन मिलने के बाद स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में गिरावट आई है।

साल 2003 में अक्षय पात्र फाउंडेशन को मध्याह्न भोजन योजना का भागीदार बनाया गया । इसी साल पहली बार फाउंडेशन ने कर्नाटक सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया। इसके बाद कर्नाटक के हुबली, मैसूर और मंगलुरु के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के वृंदावन और राजस्थान के जयपुर जैसे अन्य स्थानों पर भी और अधिक रसोइयां स्थापित की गईं। आज, यह संगठन भोजन परोसने के साथ सुनिश्चित करता है कि कक्षा में बैठने वाले प्रत्येक बच्चे को पर्याप्त पोषण मिले।

अक्षय पात्र के भोजन की गुणवत्ता की ख्याति बढ़ती जा रही है। बिना प्याज लहसुन के बना अक्षय पात्र का भोजन ना सिर्फ सुस्वादु है, बल्कि पौष्टिक भी है। यही वजह है कि इसी साल अगस्त में रेल गाड़ियों और स्टेशनों पर भोजन आदि की व्यवस्था करने वाले रेलवे के आईआरसीसीटी के साथ अक्षय पात्र ने समझौता किया है। इसके तहत चुनिंदा स्टेशनों और रूटों पर रेल यात्रियों को अक्षय पात्र की थाली मिलने लगी है। अक्षय पात्र फाउंडेशन को उम्मीद है कि इसका विस्तार रेलवे में हो सकेगा। अक्षय पात्र की बढ़ती साख ही है कि इसी साल सितंबर में कानपुर में स्कूली बच्चों को भोजन अक्षय पात्र की ओर से मिलने लगा है। एक दिसंबर से मथुरा जिले के साढ़े आठ सौ से ज्यादा आंगनवाड़ियों को भी इसी के जरिए भोजन मिलना शुरू हो चुका है। अक्षय पात्र की भोजन की गुणवत्ता का ही असर है कि आज हर ताकतवर सियासी हस्ती चाहती है कि उसके इलाके के स्कूलों में भी अक्षय पात्र भोजन मुहैया कराए। लेकिन अक्षय पात्र की भी सीमा है। इस कार्य से उसे कोई मुनाफा नहीं कमाना है और ना ही उसे ऐसा कोई फायदा मिलता है। अक्षय पात्र से जुड़े एक शख्स का कहना है कि अगर दानदाता आगे आते रहे तो दूसरे इलाकों में भी उनका संगठन स्कूली और आंगनवाड़ी के बच्चों को भी भोजन मुहैया कराएगा। बस जरूरत है कि इस महत्वपूर्ण समाज कार्य में सहयोगी के तौर पर और भी दान दाता आगे आएं। 

-उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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