बांटो और राज करो की नीति पर चलने वाले ब्रिटेन ने इस बार डॉक्यूमेंट्री बना कर हमें बाँट दिया

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देश में जब लोकसभा चुनावों में एक साल से भी कम समय बचा है और भाजपा विरोधी दलों के पास जब मोदी के वैश्विक कद जैसा कोई बड़ा नेता नहीं है तो मोदी की छवि को नुकसान पहुँचाने का अभियान छेड़ दिया गया है।

गुजरात दंगों के इतिहास को अपने मन मुताबिक कुरेदते हुए बीबीसी ने जो डॉक्यूमेंट्री बनाई है वह असल में भारतीयों को वैचारिक आधार पर बाँटने की एक बड़ी साजिश है और इस साजिश के पीछे हैं ब्रिटेन के पूर्व विदेश मंत्री जैक स्ट्रॉ। उन्हें विभाजनकारी मानसिकता वाला और दूसरे देशों के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने वाला नेता माना जाता है। बीबीसी ने गुजरात दंगों को लेकर जो डॉक्यूमेंट्री बनाई है उसके पीछे जैक स्ट्रॉ का ही दिमाग है। भारत के प्रति पूर्वाग्रह रखने वाले जैक स्ट्रॉ के इशारे पर बनी डॉक्यूमेंट्री में गुजरात में मुसलमानों की मौतों का तो जिक्र है लेकिन उन 59 कारसेवकों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है जिन्हें गोधरा में ट्रेन में जिंदा जला दिया गया था। सवाल यह भी उठता है कि 2002 के दौरान ब्रिटेन के विदेश मंत्री रहे जैक स्ट्रॉ के पास अगर वास्तव में दंगों से जुड़ी कोई गोपनीय जानकारी थी तो उन्होंने इसे बीबीसी को सौंप कर क्या ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट का उल्लंघन नहीं किया? सवाल यह भी उठता है कि ब्लैकबर्न क्षेत्र से आठ बार सांसद रहे जैक स्ट्रॉ ने क्या अपने क्षेत्र के मुस्लिमों को खुश करने के लिए इस डॉक्यूमेंट्री का निर्माण करवाया है? 2021 की जनगणना दर्शाती है कि ब्लैकबर्न क्षेत्र में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत 35 और ईसाई आबादी का प्रतिशत 38 है। यानि मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका में है।

जैक स्ट्रॉ के बारे में तमाम तरह की कहानियां प्रचलित होने के बावजूद सवाल उठता है कि भारत से नफरत करने वाले इस व्यक्ति की दिमागी चाल को हिंदुस्तान में सफल बनाने के लिए यहां के कुछ लोग क्यों आमादा हैं? गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कई जाँचें हुईं, तत्कालीन यूपीए सरकार जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी, उसने भी तमाम एसआईटी का गठन कर दंगों के विभिन्न मामलों की जांच कराई। नरेंद्र मोदी से घंटों तक पूछताछ हुई। लेकिन जितने भी जांच आयोग या एसआईटी थे सभी ने सभी मामलों में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी। यही नहीं गुजरात की जनता ने हर विधानसभा चुनावों में और जबसे मोदी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं तब से दोनों आम चुनाव में जनता ने मोदी को विभिन्न आरोपों से क्लीन चिट दी। लेकिन हिंदुस्तानी क्लीन चिटों पर भरोसा नहीं करने वाले लोग विदेशी चार्जशीटों पर यकीन कर रहे हैं। आज जो लोग घूम-घूम कर गुजरात दंगों पर असत्य से भरी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री दिखा रहे हैं क्या वह बंगाल और केरल की राजनीतिक हिंसा, 1984 के सिख विरोधी दंगों की सत्य कथा और कश्मीर में पंडितों के नरसंहार पर आधारित द कश्मीर फाइल्स भी देखने और दिखाने का साहस रखते हैं?

देश में जब लोकसभा चुनावों में एक साल से भी कम समय बचा है और भाजपा विरोधी दलों के पास जब मोदी के वैश्विक कद जैसा कोई बड़ा नेता नहीं है तो मोदी की छवि को नुकसान पहुँचाने का अभियान छेड़ दिया गया है। बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर जिस तरह देश के विश्वविद्यालयों में नकारात्मकता फैलायी जा रही है, छात्रों के मन में जहर भरा जा रहा है, अल्पसंख्यक मोदी के करीब जा रहे हैं तो उन्हें डराया जा रहा है वह समाज हित में नहीं है। ऐसा करने वालों को यह भी पता होना चाहिए कि मोदी ने कभी अपनी छवि की परवाह नहीं की इसलिए वह 20 से भी ज्यादा वर्षों से लगातार सरकारों के मुखिया बने हुए हैं। 

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बहरहाल, जिस तरह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के खिलाफ बोल कर और अपनी पार्टी कांग्रेस के खिलाफ खड़ा होकर साहस दिखाया है वह प्रदर्शित करता है कि विदेशियों की हर चाल को देश समझने लगा है और राष्ट्रहित में कोई भी त्याग करने को तैयार है। हम आपको बता दें कि अपने ट्वीट को लेकर हो रही आलोचनाओं के बीच अनिल एंटनी ने कांग्रेस में अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। अनिल एंटनी ने ट्वीट कर अपने इस्तीफे की घोषणा की जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें डॉक्यूमेंट्री के खिलाफ किए अपने ट्वीट को वापस लेने के लिए कई ‘‘असहिष्णु’’ फोन कॉल आ रहे हैं और इसी मुद्दे पर ‘‘नफरत/अपशब्दों की फेसबुक ‘वॉल'’’ के कारण उन्होंने यह फैसला किया। एके एंटनी कई दशकों से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और अनिल भी पार्टी में जिस तरह सेवाएं दे रहे थे उसके बावजूद सिर्फ राष्ट्रहित में किये गये एक ट्वीट के चलते उनके साथ जिस तरह का बर्ताव किया गया वह राहुल गांधी के 'नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान' खोलने के दावों पर भी सवाल उठाता है।

जहां तक केरल में इस मुद्दे पर हो रही राजनीति की बात है तो आपको बता दें कि वाम समर्थक स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया सहित विभिन्न राजनीतिक संगठनों ने मंगलवार को इस डॉक्यूमेंट्री को पूरे केरल में दिखाया। इसके विरोध में भाजपा की युवा शाखा ने प्रदर्शन किया। इस दौरान भाजपा को अप्रत्याशित रूप से कई हलकों से समर्थन मिला। समर्थन करने वालों में अनिल एंटनी भी शामिल थे।

उधर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर मंगलवार को भारी हंगामा हुआ। जेएनयू छात्र संघ ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रसंघ के कार्यालय का बिजली और इंटरनेट कनेक्शन काट दिया। हालांकि, छात्रों ने अपने मोबाइल फोन और अन्य उपकरणों पर यह डॉक्यूमेंट्री देखी। डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ कार्यालय के बाहर इकट्ठा हुए छात्रों ने यह भी दावा किया कि जब वे इसे अपने फोन पर देख रहे थे तो उन पर पत्थर फेंके गए। हालांकि, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि पुलिस को ऐसी किसी घटना की सूचना नहीं दी गई। कुछ छात्रों ने यह भी दावा किया कि विश्वविद्यालय परिसर में सादी वर्दी में पुलिसकर्मी घूम रहे थे। इसके अलावा दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय में भी डॉक्यूमेंट्री दिखाने की तैयारी की जा रही है।

दूसरी ओर, हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों के एक समूह ने मंगलवार को बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को अपने परिसर में दिखाया, जिसे लेकर विश्वविद्यालय के प्राधिकारियों ने रिपोर्ट मांगी है। ‘फ्रेटरनिटी मूवमेंट- एचसीयू यूनिट’ के बैनर तले छात्रों के एक समूह ने विश्वविद्यालय के परिसर में यह डॉक्यूमेंट्री दिखायी। विश्वविद्यालय के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि छात्र समूह ने इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने से पहले प्राधिकारियों से कोई अनुमति नहीं ली थी और उन्हें इसके बारे में तब पता चला, जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से इस बारे में शिकायत की। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने सुरक्षा शाखा से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है।

इस बीच, खबर है कि कोलकाता में भी विश्वविद्यालय में यह डॉक्यूमेंट्री दिखाने की तैयारी की जा रही है। हम आपको यह भी बता दें कि तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और डेरेक ओ' ब्रायन ने केंद्र पर निशाना साधते हुए बीबीसी की विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री का 'लिंक' टि्वटर पर साझा किया है।

बहरहाल, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की छवि पर प्रहार के लिए बनाई गयी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को देश में कुछ लोग ऐसे समय बढ़ावा दे रहे हैं जब हम गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। बरसों तक भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन ने बांटो और राज करो की जो नीति अपने शासन के समय अपनाई थी, उस नीति पर वह आज भी कायम है। बीबीसी से डॉक्यूमेंट्री बनवा कर हमको बांटने का प्रयास किया गया है और हम उसकी चाल समझ नहीं पा रहे हैं।

-नीरज कुमार दुबे

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