सिंधिया को लेकर आमने-सामने आ गए दिग्विजय और कमलनाथ- राहुल के अभियान के लिए बड़ा झटका

Scindia Digvijay KamalNath
ANI

दिग्विजय सिंह वर्ष 1993 से लेकर 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहें। 2003 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हराकर उमा भारती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। उमा भारती के बाद बीजेपी ने कुछ समय के लिए बाबूलाल गौर को सीएम बनाया लेकिन 2008 में राज्य की कमान शिवराज सिंह को थमा दी गई।

कांग्रेस पार्टी में ऐसे नेताओं की भरमार है जो अपने बयानों के जरिए पार्टी आलाकमान खासकर गांधी परिवार के लिए असहज स्थिति पैदा करते रहते हैं। कांग्रेस के दो बड़े नेताओं ने एक बार फिर से पार्टी के सामने ऐसी ही असहज स्थिति पैदा कर दी है और सबसे बड़ी बात है कि ये दोनों पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और दोनों ही अलग-अलग दौर में मध्य प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।

विडंबना देखिए कि, एक तरफ राहुल गांधी बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाले राज्यों में से एक मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत बनाने के अभियान में जुटे हुए हैं। इसी मिशन के तहत कई बार मध्य प्रदेश का दौरा कर चुके राहुल गांधी ने रविवार, 24 अगस्त को मध्यप्रदेश के नवनियुक्त जिला कांग्रेस अध्यक्षों की एक बड़ी बैठक दिल्ली में बुलाई थी। पार्टी द्वारा चलाए जा रहे 'संगठन सृजन अभियान' के तहत आयोजित की गई इस बैठक एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम को राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राष्ट्रीय संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल, मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी, मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और मध्य प्रदेश में विपक्ष के नेता उमंग सिंघार सहित पार्टी के कई अन्य बड़े नेताओं ने भी संबोधित किया। लेकिन मध्य प्रदेश से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक, इस बैठक से ज्यादा चर्चा दिग्विजय बनाम कमलनाथ की लड़ाई की हो रही है।

इसे भी पढ़ें: आकंठ तक भ्रष्टाचार में डूबी कांग्रेस और लालू को मतदाताओं की चिंता

मध्य प्रदेश में पांच वर्ष पहले कमलनाथ सरकार के गिरने के लिए उन्हीं को जिम्मेदार बताते हुए दिग्विजय सिंह ने खुलासा किया कि इसके लिए स्वयं कमलनाथ ही जिम्मेदार थे। एक पॉडकास्ट में बोलते हुए दिग्विजय सिंह ने पांच वर्ष पहले के घटनाक्रम का खुलासा करते हुए कहा कि, उस समय विचारधारा का विवाद नहीं था बल्कि उस समय के मुख्यमंत्री कमलनाथ लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा कर रहे थे, इसलिए कांग्रेस की सरकार उस समय गिर गई थी। दिग्विजय सिंह ने अपने पॉडकास्ट में कहा कि वर्ष 2020 की शुरुआत में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच कुछ मतभेद पैदा हो गए थे। उन्होंने इसे सुलझाने के लिए देश के एक बड़े उद्योगपति से सहयोग मांगा। उस बड़े उद्योगपति ने तीनों नेताओं (कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और उन्हें) अपने घर पर आमंत्रित किया। उस बैठक में दिग्विजय और सिंधिया ने कमलनाथ को एक साझा विशलिस्ट दी थी, जिसमें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के कुछ अटके हुए कामों का जिक्र था और इस पर जल्द सरकार की तरफ से काम होने की उम्मीद थी। लेकिन कमलनाथ ने उन मुद्दों पर काम नहीं किया। अगर ग्वालियर-चंबल से जुड़ी ज्योतिरादित्य सिंधिया की मांगें पूरी कर दी जाती और कमलनाथ लगातार सिंधिया की उपेक्षा नहीं करते तो उस समय कांग्रेस की सरकार नहीं गिरती।

दिग्विजय सिंह के इन आरोपों पर पलटवार करते हुए कमलनाथ ने उनकी सरकार गिरने का ठीकरा दिग्विजय सिंह पर ही फोड़ दिया। कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के आरोपों का जवाब देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "मध्य प्रदेश में 2020 में मेरे नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरने को लेकर हाल ही में कुछ बयानबाजी की गई है। मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहता हूं कि पुरानी बातें उखाड़ने से कोई फ़ायदा नहीं। लेकिन यह सच है कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह लगता था कि सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे हैं। इसी नाराज़गी में उन्होंने कांग्रेस के विधायकों को तोड़ा और हमारी सरकार गिरायी।" 

आपको बता दें कि, दिग्विजय सिंह वर्ष 1993 से लेकर 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहें। 2003 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हराकर उमा भारती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। उमा भारती के बाद बीजेपी ने कुछ समय के लिए बाबूलाल गौर को सीएम बनाया लेकिन 2008 में राज्य की कमान शिवराज सिंह को थमा दी गई। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भी राज्य में बीजेपी को ही जीत हासिल हुई लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में मामला गड़बड़ हो गया। मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 230 सदस्यों वाली विधानसभा में 41.02 प्रतिशत मत के साथ सिर्फ 109 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस ने उस चुनाव में भाजपा से थोड़ा कम यानी 40.89 प्रतिशत वोट हासिल करने के बावजूद भाजपा से 5 सीटें ज्यादा यानी 114 पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने उस समय सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से सरकार बनाई और कमलनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे के विधायकों के इस्तीफे के कारण कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई और इस तरह से राज्य की सत्ता से कांग्रेस की विदाई हो गई। वर्तमान में ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं और राज्य में बीजेपी की सरकार हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत को दिग्विजय सिंह द्वारा पांच वर्ष बाद याद करने और उस पर कमलनाथ का तुरंत तीखा पलटवार आना, यह बताने के लिए काफी है कि दोनों नेताओं के बीच कोई गहरा मतभेद उभर गया है और मध्य प्रदेश कांग्रेस में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही पूछा जा रहा है कि क्या राहुल गांधी मध्य प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच शुरू हुई इस लड़ाई को रोक पाएंगे ? 

- संतोष कुमार पाठक

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
All the updates here:

अन्य न्यूज़