अल्मोड़ा से लॉर्ड्स तक का एकता बिष्ट का सफर काफी संघर्षमय
पहाड़ के उबड़-खाबड़ ऊँचे-नीचे रास्ते, यातायात, स्वास्थ्य की शून्य सुविधाएँ और नित्य नई आपदाओं से त्रस्त जन-जीवन के मध्य सफलता के शिखर पर पहुँचना सहज नहीं है।
पहाड़ी प्रदेश और पहाड़ी जीवन कई मायनों में अलग होता है। मैदानी इलाकों में रहते हुए हम जब पहाड़ों की तरफ देखते हैं तो ऐसा लगता है मानो सब कुछ बड़ा ही सुखद और नैसर्गिक है, लगता है पहाड़ हमें अपनी ओर खींच रहे हैं लेकिन पहाड़ पर रहना और सफलता की कहानी लिखना किसी पहाड़ से कम नहीं है।
पहाड़ के उबड़-खाबड़ ऊँचे-नीचे रास्ते, यातायात, स्वास्थ्य की शून्य सुविधाएँ और नित्य नई आपदाओं से त्रस्त जन-जीवन के मध्य सफलता के शिखर पर पहुँचना सहज नहीं है। आज से लगभग बारह साल पहले की घटना मुझे याद आती है उत्तराखण्ड़ के अल्मोड़ा शहर के लाला बाजार से गुजरते हुये एक वॉवकट बालों वाली लड़की ने अनायास आगे बढ़कर मेरे पाँव छूकर मुझे प्रणाम किया। उत्तराखण्ड़ में पैर छूकर प्रणाम करने की परम्परा है और मेरे मुँह से निकला-- हज़ारी प्रसाद! जी हाँ, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की उदयीमान खिलाड़ी एकता बिष्ट जिसने थोड़े से समय में ही अपनी प्रतिभा से ना केवल अपनी सफलता के झंडे पूरे संसार में गाड़े हैं बल्कि देश और भारतीय महिलाओं को गौरवान्वित किया है।
एकता बिष्ट को मैं इसी नाम से पुकारती थी। एकता मेरी स्टूडेंट रही और हेयर कट के कारण मैं उसे हज़ारी प्रसाद द्विवेदी कहती थी। मैंने उससे पूछा-- और एकता! क्या चल रहा है? क्रिकेट खेल रही हो या छोड़ दिया? जी मैम खेल रही हूँ पाकिस्तान से खेलना था लेकिन इस पैर की चोट की वजह से नहीं खेल पाई।
कोई बात नहीं और अवसर आयेंगे-- ये कहकर मैं आगे बढ़ गई।
उसके बाद एकता मुझे कई वर्षों तक नहीं मिली लेकिन उसकी सफलता की नित्य नई कहानियाँ हम सब तक पहुँचती रहीं। खेल सुविधाओं के नाम पर शून्य अल्मोड़ा जैसे छोटे शहर की कच्ची पक्की पिच पर कभी रबड़ और कभी कपड़े की गेंद से गेंदबाज़ी का अभ्यास करके अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाना कोई हंसी खेल नहीं।
ऐसी सफलता के लिए परिवार का एकनिष्ठ समर्पण, अदम्य साहस, लगन और जी तोड़ मेहनत की आवश्यकता होती है। एकता को मैंने बचपन से देखा उसके लिए परिस्थितियां बहुत विकट थीं पिता फौज से रिटायर और परिवार की माली हालत भी ठीक नहीं थी।
उस पर पुरानी परम्पराओं और संस्कृति के रंग में रचे बसे सांस्कृतिक शहर की दकियानूसी फ़िज़ा जिसमें एक लड़की का लड़कों के साथ, लड़कों का खेल खेलना किसी आश्चर्य से कम ना था लेकिन समाज के तंजों की मार सहकर अल्मोड़ा स्टेडियम की कच्ची पक्की पिच पर अपने गुरु लियाकत अली के साथ अभ्यास करने वाली एकता ने जो अपनी खुली आँखों से लॉर्ड्स में खेलने का सपना देखा उसे असली जामा पहनाने के लिए उसने कड़ी मेहनत की राह चुनी। सही गुरु का दिशा निर्देशन, परिवार का साथ और कुछ कर गुजरने की ललक ने एकता को सफलता का रास्ता दिखा दिया। २००५ में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य के रूप में खेलने के लिए एकता के पिता ने अपने चचेरे भाई नरसिंह बिष्ट से ५००० रु० उधार तक लिए और एकता को मैसूर भेजा लेकिन चोट के कारण वह खेल नहीं पाई। २०१० में बैंगलुरु के विश्वकप कैम्प के लिए कॉलेज के विद्यार्थियों ने मिलकर दस हज़ार रु० जमा कर एकता को बैंगलुरु भेजे थे।
इस तरह धुन की पक्की एकता निरन्तर लक्ष्य तक पहुँचने की लिए सतत प्रयत्नशील रही जिसके परिणाम स्वरूप २०१२ से भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्थाई खिलाड़ी है। अब तक सभी प्रारूप में खेल चुकी एकता ने १०० से भी ज्यादा अन्तर्राष्ट्रीय विकेट प्राप्त कर लिए हैं। वह हैट्रिक एवं रिकॉर्ड स्पेल डालकर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुकी है। पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वन्द्वी की खिलाफ २ बार ५ विकेट लेकर एकता ने सभी देशवासियों का सीना गर्व से फुला दिया है, पाकिस्तान के खिलाफ १० ओवर में ७ मेडन मात्र ८ रन और ५ विकेट और फिर भारत की विशाल जीत अविस्मरणीय है और अब २०१७ महिला विश्वकप में एक बार फिर पाकिस्तान के खिलाफ ५ विकेट लिए। ये अल्मोड़ा शहर के लिए गौरव का विषय है, क्यूंकि इस शहर ने एकता को कठोर अभ्यास और मेहनत करते देखा है।
शून्य सुविधाओं के मध्य जीते हुये जीत का रास्ता बनाना और शिखर तक पहुँचना और असुविधाओं से निरन्तर लड़ते हुये एक अन्तर्राष्ट्रीय स्वप्न और उस चरम को छूना दो अलग-अलग परिस्थितियां हैं अन्तर हम सब जानते हैं। पहाड़ की बेहद कठिन ज़िन्दगी जीते हुये बेहद साधारण खानपान वाली एकता के चेहरे की मासूम हंसी अक्सर मेरी आँखों के सामने तैर जाती है। खेल के मैदान में जब तनाव अपने चरम पर होता है उस समय शांत रहना एकता के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी है।
इसलिए लोग प्रायः उसे लेडी धोनी भी कहते हैं। पहाड़ हमें सहनशीलता सिखाते हैं, विपरीत परिस्थितियों के मध्य जीवन की राह ढूंढ़ने वाली साधारण परिवार की लड़कियों के लिए एकता एक मिसाल है। रविवार को हुए लॉर्ड्स मैदान पर विश्वकप के फाइनल में भारतीय टीम की संघर्षगाथा एकता के जीवन की एक और सफलता है।
डॉ. दीपा गुप्ता
व्याख्याता (हिन्दी)
स्वतंत्र विचारक एवं लेखक
अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
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