सबसे बड़ा और सीधा सवाल यह है कि आखिर पप्पू पास कैसे हो गया?

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूरे चुनाव प्रचार अभियान के दौरान पार्टी का नेतृत्व करते हुए अपनी रणनीति से भाजपा को कई जगह उसके गढ़ों में ऐसी मात दी है जोकि भगवा खेमे को हमेशा सालती रहेगी।

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद खुशियां मना रही कांग्रेस पर तंज कसते हुए भाजपा ने पूछा था कि लगातार तीसरी बार सत्ता से दूर रही कांग्रेस आखिर किस बात का उत्सव मना रही है? देखा जाये तो भाजपा का सवाल वाजिब था क्योंकि तीन चुनावों से कांग्रेस तीन अंकों में सीटें हासिल नहीं कर पा रही है फिर भी उत्सव ऐसे मना रही है जैसे उसका कोई बड़ा मिशन पूरा हो गया हो। आप 2014 से 2024 तक के तीन लोकसभा चुनाव परिणामों का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि इस बार कांग्रेस को वाकई जश्न मनाना ही चाहिए क्योंकि सत्ता से दूर रह जाने के बावजूद यह भी सही है कि कांग्रेस को इस बार बड़ी जीत मिली है। दरअसल कांग्रेस ने लगातार हार से उपजी निराशा पर जीत हासिल कर ली है। पिछले दस सालों से कांग्रेस मुक्त भारत अभियान जिस तेजी से चला था उससे ऐसा लग रहा था कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी शायद जल्द ही लुप्तप्राय हो जाये लेकिन कांग्रेस की शानदार वापसी ने उसके समर्थकों और कार्यकर्ताओं को जोश से भर दिया है।

इसके अलावा भाजपा ने राहुल गांधी को पप्पू करार देकर उन्हें पूरी तरह से विफल घोषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन राहुल गांधी ने पूरे चुनाव प्रचार अभियान के दौरान पार्टी का नेतृत्व करते हुए अपनी रणनीति से भाजपा को कई जगह उसके गढ़ों में ऐसी मात दी है जोकि भगवा खेमे को हमेशा सालती रहेगी। भारतीय राजनीतिक इतिहास को देखेंगे तो पाएंगे कि विपक्षी नेता के रूप में राहुल गांधी ने बहुत कुछ सहा है। उनकी छवि पप्पू यानि कम बुद्धि वाले नेता की बना दी गयी थी। यही नहीं, उनकी राष्ट्रभक्ति पर भी सवाल उठाये गये। लोकसभा चुनावों से पहले उनके विदेशी दौरों को सवालों के घेरे में लाते हुए उन पर आरोप लगाये गये कि वह विदेशों में अपने संबोधनों के जरिये देश की छवि खराब कर रहे हैं। चुनावों के दौरान राहुल गांधी के तमाम पुराने वीडियो के अंश निकाल कर उनकी समझ पर सवाल उठाये जा रहे थे। राहुल गांधी बाइक मैकेनिक से मिलें तो सवाल, राहुल गांधी बढ़ई से मिलें तो सवाल, राहुल गांधी ट्रक ड्राइवरों से मिलें तो सवाल, राहुल गांधी छात्रों से मिलें तो सवाल। ऐसा माहौल बना दिया गया था कि राहुल गांधी हर धंधे में हाथ आजमाना चाहते हैं क्योंकि वह राजनीति में सफल नहीं हो पाये। लेकिन लोकसभा चुनाव परिणामों ने साबित कर दिया कि राहुल गांधी राजनीति में सफल और स्थापित, दोनों हो गये हैं। राहुल गांधी की इस सफलता को सोशल मीडिया पर 'पप्पू पास हो गया' की संज्ञा दी जा रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि पप्पू पास कैसे हो गया? यदि आप राहुल गांधी की पिछले एक-डेढ़ साल की राजनीतिक गतिविधियों का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि उन्होंने परीक्षा करीब आने पर ही पढ़ने जैसी आदत छोड़कर साल के शुरू से ही परीक्षा की तैयारी में जुटने वाले छात्र का आचरण अपना लिया है।कांग्रेस ने अगर अपनी लोकसभा सीटों की संख्या में लगभग 50 का इजाफा किया है तो इसमें राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' और 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' का भी अहम योगदान है। इन दोनों यात्राओं के जरिये राहुल गांधी ने जब देश के विभिन्न कोनों की समस्याओं को करीब से समझा और जनता से सीधी मुलाकात कर उनके मन की बात जानी तो इससे उनमें खुद भी बड़ा परिवर्तन आया और जनता के बीच उनकी छवि में भी सुधार हुआ। राहुल गांधी जब अपनी यात्राओं के दौरान पैदल चलते हुए आम लोगों से बात करते थे तब लोगों को समझ आया कि राहुल गांधी कम बुद्धि वाले नेता नहीं हैं जैसा कि आमतौर पर उन्हें दर्शाया जाता है। इसके अलावा, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से अब तक की उनकी तमाम तस्वीरों को देख लीजिये उनमें सिर्फ उनकी विदेश यात्रा को छोड़ दें तो बाकी तस्वीरों में आपको यही लगेगा कि वह अपनी लुक पर ध्यान देने की बजाय साधारण तरीके से रहने में विश्वास करने लगे हैं और आम जन के बीच उन्हीं की तरह रहना और दिखना चाहते हैं। आप अगर राजनीतिक इतिहास उठा कर देखेंगे तो पाएंगे कि जनता के बीच साधारण तरीके से रहने वाले नेता बहुत लोकप्रिय होते हैं। राहुल गांधी जिस तरह टी-शर्ट और पैंट में ही रहते हैं और चाहे सर्दी हो या गर्मी, उनका लुक एक जैसा ही रहता है उसका बड़ा असर मतदाताओं पर पड़ा है।

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आपने चुनावों के दौरान अक्सर देखा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी को शहजादा बताते हुए उन पर हमले करते हैं लेकिन राहुल गांधी पिछले लगभग एक-डेढ़ साल से जिस साधारण तरीके से रह रहे हैं उसके चलते इस बार के चुनावों में 'शहजादा' शब्द ने उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाया। 2014 से पहले नरेंद्र मोदी की छवि साधारण नेता की और राहुल गांधी की छवि युवराज की थी लेकिन अब मोदी के सूट-बूट पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने उनकी छवि अमीर और उद्योगपतियों के समर्थक की और राहुल गांधी की छवि 'जननायक' की बना दी है। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं रहा। राहुल गांधी को 'पप्पू' वाली छवि से बाहर निकालने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम ने दिन-रात काम किया और आखिरकार उन्हें सफलता मिल गयी। बताया जाता है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के प्रचार का काम कांग्रेस ने मार्केटिंग और कम्युनिकेशन फर्म तीन बंदर को दिया था। राहुल गांधी की यह दोनों यात्राएं प्रचार की दृष्टि से तो काफी सफल रहीं ही साथ ही उनकी छवि भी एक गंभीर राजनेता की बनाने में मददगार साबित हुईं। इसी मार्केटिंग फर्म ने कांग्रेस के प्रचार अभियान को धार देते हुए चुनावों के दौरान ऐसे-ऐसे स्लोगन बनाये जोकि लोगों की जुबान पर चढ़ गये। साथ ही कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कुछ उद्योगपतियों के करीब होने की बात कहते हुए ऐसा प्रचार अभियान चलाया कि लोगों को लगने लगा कि एक दो उद्योगपतियों को ही देश के सारे संसाधन सौंपे जा रहे हैं। प्रधानमंत्री की उद्योगपतियों के साथ पुरानी तस्वीरों को ऐसे वायरल कराया गया कि छोटे शहरों और गांवों में लोगों को लगने लगा कि मोदी सरकार सिर्फ उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है। जिस समय प्रधानमंत्री की उद्योगपतियों की या सूट बूट में तस्वीर पोस्ट की जाती थी उसके कुछ ही देर बाद किसी गरीब को गले लगाये या माथे पर चंदन लगा कर ध्यान लगाते हुए राहुल गांधी की तस्वीर पोस्ट की जाती थी। यानि जिस तरह मोदी ने अपनी ब्रैंड इमेज बनाई ठीक उसी तरह राहुल गांधी ने भी अपनी ब्रांड इमेज बनाई।

इसके अलावा, जिस समय पूरा देश अयोध्या में राम मंदिर बनने की खुशी में उत्सव मना रहा था और ऐसा लग रहा था कि राम लहर में भाजपा वाकई में इस बार चुनावों में 400 सीटों के पार चली जायेगी तभी राहुल गांधी की टीम ने भाजपा पर संविधान को बदलने और लोकतंत्र को खत्म करने की चाल चलने जैसे आरोप लगाने शुरू कर दिये। इन आरोपों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए कुछ सोशल मीडिया इनफ्लुएंसरों की मदद भी ली गयी। उनसे भी वीडियो बनवाये गये और आखिरकार यह टीम जनता के मन में यह बात बिठाने में सफल रही कि अगर मोदी 400 सीटों के साथ सत्ता में वापस आये तो संविधान बदल देंगे। प्रधानमंत्री चुनावों में बार-बार कह रहे थे कि उनका अगला कार्यकाल और भी बड़े फैसलों वाला होगा। इसे इस रूप में दर्शाया गया कि अगला बड़ा फैसला आरक्षण खत्म करने का होगा। यह बात लोगों के मन में बिठाने के लिए डीपफेक वीडियो बनवाये गये जिसे कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी शेयर कर भ्रम फैलाने का काम किया। जब कांग्रेस ने यह देखा कि प्रधानमंत्री उनकी चाल समझ गये हैं और इस ओर से लोगों का ध्यान हटाने के लिए मंगलसूत्र और मुजरा जैसे शब्दों का उपयोग कर रहे हैं तब कांग्रेस ने दूसरी चाल चलते हुए कुछ ऐसे चुनावी जुमले पेश किये जिसमें कही जा रही बातों पर बड़ी संख्या में मतदाताओं ने यकीन कर लिया।

दरअसल, कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में महालक्ष्मी योजना के तहत महिलाओं को एक लाख रुपए सालाना देने का वादा किया था। इसके अलावा युवाओं से 'पहली नौकरी पक्की' जैसा महत्वपूर्ण वादा किया था। साथ ही कांग्रेस ने देश में जाति जनगणना करवाने और अग्निवीर योजना को रद्द करने का वादा भी किया था। कांग्रेस ने जब यह देखा कि उसके घोषणापत्र में किये गये वादे जनता तक ठीक से पहुँच नहीं पा रहे हैं तो 'खटाखट, फटाफट' जैसे शब्दों का उपयोग कर मतदाताओं का ध्यान आकर्षित किया गया। यह शब्द लोगों के कानों में गूंजते रहे और राहत पाने के उद्देश्य से लोगों ने कांग्रेस की झोली वोटों से भर दी। इसके अलावा कांग्रेस ने चुनावों के दौरान 'मेरे विकास का हिसाब दो' और 'सब कुछ ठीक नहीं है' जैसे प्रचार अभियानों के जरिये भी भाजपा को घेरने में सफलता हासिल की। कांग्रेस के पूरे प्रचार अभियान पर नजर डालेंगे तो लगेगा कि सिर्फ कंटेंट के मामले में ही नहीं बल्कि टाइमिंग के हिसाब से भी पार्टी की प्रतिक्रिया जोरदार रही। हम आपको बता दें कि इस साल की शुरुआत में कांग्रेस ने प्रचार अभियान को नई धार देने के लिए भाषा और क्षेत्र के हिसाब से चार टीमें गठित की थीं। हर टीम में 900 से लेकर एक हजार तक इंटर्न थे जोकि उस क्षेत्र में स्थानीय सोशल मीडिया टीमों के साथ संपर्क में रहते थे। हर क्षेत्र की टीम में काम कर रहे लोगों को विभिन्न इलाकों के व्हाट्सएप ग्रुपों में भी शामिल किया गया था ताकि आपसी समन्वय बेहतर तरीके से हो सके।

चुनाव प्रचार के दो महीनों के दौरान के भाजपा और कांग्रेस के सोशल मीडिया अकाउंटों पर लाइक, रीपोस्ट या कमेंटों का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि कांग्रेस की डिजिटल टीम का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा क्योंकि सोशल मीडिया पर उसकी पोस्टों को लोगों ने काफी पसंद किया। सोशल मीडिया पर कांग्रेस के प्रचार अभियान का जवाब देने में भाजपा का आईटी सेल एक तो पीछे रहा साथ ही भगवा दल के पास ध्रुव राठी जैसे यूट्यूबरों की ओर से फैलाई जा रही बातों की प्रभावी काट नहीं मौजूद थी। इसके अलावा, चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमाम मीडिया संस्थानों को साक्षात्कार दिये जिसे भाजपा के सभी नेताओं ने साझा किया लेकिन इन साक्षात्कारों में नया कुछ भी नहीं था जबकि कांग्रेस और उसके नेताओं की सोशल मीडिया पोस्टें अपने बेहतर कंटेंट की वजह से सबका ध्यान आकर्षित कर रही थीं। इसके अलावा भाजपा पर निशाना साधने वाले यूट्यूबरों के तमाम वीडियो कांग्रेस के लोग साझा कर रहे थे जबकि मोदी सरकार या भाजपा का गुणगान करने वाले यूट्यूबरों के वीडियो भाजपा के लोग साझा नहीं कर रहे थे और सिर्फ मोदी के आभामंडल से इतना प्रभावित थे कि उन्हें लग रहा था कि 400 पार का नारा हकीकत होने ही वाला है तो मेहनत क्यों करनी?

इसके अलावा, राहुल गांधी के यूट्यूब चैनल, फेसबुक पेज, एक्स या इंस्टाग्राम अकाउंट पर ही उनके सब्सक्राइबर या फॉलोअर बढ़ने और चुनावों में कांग्रेस को वोट नहीं मिलने जैसे कटाक्ष करने वालों को यह भी देखना चाहिए कि कांग्रेस के नेता दो लोकसभा सीटों से बड़े अंतर से विजयी होने में सफल रहे हैं। पिछली लोकसभा के दौरान ऐसा भी समय आया था जब राहुल गांधी को संसद की सदस्यता और सरकारी आवास से हाथ धोना पड़ा था लेकिन जनता ने इस बार उन्हें दो सीटों से चुनाव जिता कर भेज दिया है। यही नहीं राहुल गांधी की जीत का अंतर प्रधानमंत्री मोदी की जीत के अंतर से बहुत ज्यादा है। यदि राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं का आग्रह स्वीकार कर विपक्ष का नेता बनने का प्रस्ताव मान लिया तो मोदी से उनकी सीधी राजनीतिक भिडंत होगी जोकि राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर बड़ा असर डाल सकती हैं। गौरतलब है कि राहुल गांधी का आरोप रहता है कि प्रधानमंत्री उनकी बात का जवाब नहीं देते लेकिन यदि राहुल विपक्ष के नेता बन गये तो प्रधानमंत्री को उनके सवालों का जवाब देना ही होगा। इसके अलावा, चुनावों में राहुल गांधी को जिस तरह जनता का आशीर्वाद मिला है उससे उन्होंने उस धारणा को भी तोड़ दिया है कि नरेंद्र मोदी के विराट राजनीतिक व्यक्तित्व तक कोई नेता नहीं पहुँच सकता है।

बहरहाल, इस तरह आप कुल मिलाकर देखेंगे तो पाएंगे कि पास होने के लिए पप्पू ने खुद भी मेहनत की है और उनकी टीम ने भी उन्हें पूरा सहयोग दिया है। भले पप्पू इस बार भी टॉप नहीं कर पाया हो लेकिन पास होकर उसने विफलता का तमगा अपने ऊपर से उतार फेंका है। देखा जाये तो यह कांग्रेस के लिए कम खुशी की बात नहीं है इसलिए उनका उत्सव मनाना स्वाभाविक ही है।

-नीरज कुमार दुबे

नोटः हमने यहां राहुल गांधी के लिए पप्पू शब्द का इस्तेमाल सिर्फ उन पर होने वाले राजनीतिक हमलों को दर्शाने के लिए किया है। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने स्वयं कई बार अपने लिये इस शब्द का इस्तेमाल किया है।

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