किसी पर भ्रष्टाचार के आरोप तो कोई जमानत पर घूम रहा, ऐसे नेताओं वाला गठबंधन कैसे ईमानदार सरकार दे पायेगा?

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इंडिया गठबंधन के प्रमुख नेता और गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल करने के सबसे बड़े इच्छुक राहुल गांधी खुद ही कई मामलों में जमानत पर चल रहे हैं। यहां तक कि वह अपने पारिवारिक गढ़ अमेठी से अपना पिछला लोकसभा चुनाव तक हार चुके हैं।

विपक्षी गठबंधन इंडिया की मुंबई बैठक से पहले ही जिस तरह इसके घटक दलों की ओर से अपने अपने नेता को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने की मांग की जा रही है वह जरा भी आश्चर्यजनक दृश्य नहीं है। दरअसल विपक्षी गठबंधन में शामिल विभिन्न दलों के नेताओं की अपनी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। कुछ लोग प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी चाहते हैं तो कुछ की चाह इस गठबंधन का राष्ट्रीय संयोजक बनने की है। कुल मिलाकर देखा जाये तो स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली है। सवाल उठता है कि जब नेतृत्व को लेकर ही इतना झगड़ा है तो सीटों के बँटवारे जैसे सबसे मुश्किल काम को कैसे अंजाम दिया जायेगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए की पिछली बैठक को कट्टर भ्रष्टाचारियों का सम्मेलन करार दे चुके हैं इसलिए सवाल उठता है कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा? जवाब ढूंढ़ने के लिए जरा इस गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के नामों पर नजर घुमाएंगे तो पाएंगे कि इनमें कई ऐसे हैं जो घोटाले या अन्य मामलों का सामना कर रहे हैं तो कई ऐसे भी हैं जोकि जमानत पर बाहर चल रहे हैं। मंच पर बैठे नेताओं की तस्वीरें देखते जाइये और उनसे जुड़े मामलों के बारे में सर्च करते जाइये आपको पता चल जायेगा कि यह सब क्यों एकत्रित हुए हैं। यही नहीं, इंडिया गठबंधन के प्रमुख नेता और गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल करने के सबसे बड़े इच्छुक राहुल गांधी खुद ही कई मामलों में जमानत पर चल रहे हैं। यहां तक कि वह अपने पारिवारिक गढ़ अमेठी से अपना पिछला लोकसभा चुनाव तक हार चुके हैं।

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महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, जिनको उनकी पार्टी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने की मांग कर रही है, उनके बारे में यह जान लेना बहुत जरूरी है कि वह राज्य में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए मात्र दो दिन अपने कार्यालय गये थे। अपने पिता की ओर से स्थापित राजनीतिक सिद्धांतों को उन्होंने तिलांजलि देकर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ सरकार बनाई थी और हिंदुत्व के मुद्दे को किनारे रख दिया था। वह मुख्यमंत्री के रूप में कितने सक्षम थे इसका अंदाजा तब भी लग गया था जब उनको कानों कान खबर नहीं लगी थी और एकनाथ शिंदे पार्टी और सरकार उनसे झटक लेने में सफल रहे थे। इसके अलावा उनकी सरकार पर कोरोना काल में भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे।

प्रधानमंत्री पद का सपना वर्षों से अपने मन में संजोए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बात करें तो सवाल उठता है कि आखिर ऐसे व्यक्ति को जनता कैसे स्वीकार कर सकती है जिसने लगभग दो दशकों के अपने शासन के बावजूद अपने राज्य को हर मायने में देश का सबसे पिछड़ा राज्य बनाये रखा। नीतीश कुमार जैसे व्यक्ति पर आखिर जनता कैसे भरोसा कर सकती है जो अपने फायदे को देखते हुए समय-समय पर गठबंधन ही बदलते रहते हैं? 

प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल करने के लिए लालायित नेताओं में अरविंद केजरीवाल की बात करें तो आपको याद दिला दें कि उनकी सरकार पर तो भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर आरोप हैं कि उनके उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया छह महीने से जेल में बंद हैं तथा एक और मंत्री की भ्रष्टाचार मामले में साल भर से ज्यादा समय बाद जमानत हुई वह भी खराब स्वास्थ्य के चलते। दिल्ली के मुख्यमंत्री राज्य के उपराज्यपाल के साथ जिस तरह का रुख रखते हैं उसका सीधा असर प्रशासन पर पड़ता है जिसका खामियाजा आखिरकार जनता को ही उठाना पड़ता है।

इसके अलावा प्रधानमंत्री पद की एक और उम्मीदवार ममता बनर्जी की बात करें तो उनके मुख्यमंत्रित्व काल में पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र, कानून व्यवस्था और प्रशासन की क्या स्थिति है यह किसी से छिपा नहीं है। उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। खुद उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी भ्रष्टाचार के कई मामलों का सामना कर रहे हैं। ममता दीदी के राज में मंत्री और उनकी गर्ल फ्रैंड के घर से नोटों के ऐसे पहाड़ मिले थे जिसके चर्चे पूरी दुनिया में रहे थे। अदालतें तक कई बार पश्चिम बंगाल सरकार पर कड़ी टिप्पणी कर चुकी हैं।

प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल करने के नये इच्छुक अखिलेश यादव की बात करें तो उनके बारे में तो उनके पिताजी ही कह कर गये हैं कि जो अपने पिता का नहीं हुआ वह दूसरों का क्या होगा। अखिलेश यादव को लगातार दो चुनावों से उत्तर प्रदेश की जनता ने मुख्यमंत्री पद के लायक भी नहीं समझा ऐसे में सवाल उठता है कि वह खुद में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी कैसे देख रहे हैं? 

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल करने के तो आकांक्षी नहीं लग रहे लेकिन उनके गठबंधन में बने रहने का कारण खुद को बचाने की कवायद ही समझ आता है। यह सर्वविदित है कि हेमंत सोरेन और उनकी सरकार से जुड़े कई लोगों के खिलाफ मामले चल रहे हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव, उनके बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तथा उनके परिवार के अन्य सदस्य भी भ्रष्टाचार के तमाम मामलों से घिरे हुए हैं और लगातार जमानत पर चल रहे हैं। इसी तरह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के मंत्री भी जिस तरह भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़े जा रहे हैं उससे भी यही लगता है कि भ्रष्टाचार के मामलों से घिरीं सारी पार्टियों के नेता एक मंच पर इसलिए जुट रहे हैं ताकि अपनी शक्ति बढ़ाकर वह बच सकें। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर से फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती का अब कोई आधार नहीं बचा है इसलिए वह विपक्षी मंच पर जुट रहे हैं ताकि अपना राजनीतिक वजूद बचाये रखा जा सके।

जहां तक शरद पवार की बात है तो अब वह सिर्फ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक ही रह गये हैं क्योंकि पार्टी पर तो उनके भतीजे अजित पवार का कब्जा हो चुका है। पवार कहने को इंडिया गठबंधन के मंच पर हैं लेकिन उनकी राजनीति पलटी मारते रहने की रही है। बहरहाल, अब जनता को तय करना है कि तेजी से आगे बढ़ती दुनिया के साथ कदमताल करने और उससे आगे निकलने के लिए हमें खिचड़ी सरकार की जरूरत है या फिर कड़े और बड़े निर्णय लेने वाली स्पष्ट बहुमत वाली सरकार की?

-नीरज कुमार दुबे

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