चीन के खिलाफ वैश्विक नाराजगी से उपजे अवसरों को हाथ से जाने ना दे भारत

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यह सही है कि चीन इस समय दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब है लेकिन चीन से यह तमगा जल्द ही छिनने वाला है क्योंकि दुनिया अब उससे आंखें फेर रही है और उद्योगों की स्थापना के लिए अन्य जगहों की तलाश शुरू कर दी है।

कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते देशभर में संपूर्ण लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था के लिए भले यह संकट काल हो लेकिन इसे सुनहरे अवसर के रूप में तबदील किया जा सकता है। इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के खिलाफ जो माहौल बना हुआ है उसका फायदा भारत समय रहते उठा ले तो देश में अच्छा खासा विदेशी निवेश आ सकता है और मोदी सरकार की 'मेक इन इंडिया' पहल को बड़े पैमाने पर बढ़ावा मिल सकता है। चीन ने कोरोना वायरस के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से लगातार झूठ बोला तथा पूरी दुनिया को महामारी और भयंकर मंदी के दौर में धकेल दिया, यही नहीं जब संकट के समय दुनिया को चीन से मदद की जरूरत पड़ी तो ड्रैगन नकली माल बेचने पर उतर आया। चीन कहने को तो सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है लेकिन उसने जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ धोखा किया है उसके चलते आज दुनिया में चीन का कोई साथी नहीं बचा है। जो देश उसके साथ खड़े भी दिख रहे हैं वह भी दबे मन से स्वीकार करते हैं कि चीन चाहता तो समय रहते दुनिया को आगाह करके इस भयंकर बर्बादी से बचा सकता था। जापान ने तो चीन छोड़ने वाली अपने देश की कंपनियों को कई प्रकार के प्रोत्साहन देने का ऐलान भी कर दिया है।

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कई नामी गिरामी कंपनियां चीन छोड़ने की तैयारी में हैं तो यह चीन के लिए बड़ा झटका है। देखा जाये तो चीन इस समय दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब है लेकिन अब चीन से यह तमगा जल्द ही छिनने वाला है। ड्रैगन की कारगुजारियों के चलते दुनिया अब उससे आंखें फेर रही है और उद्योगों की स्थापना के लिए अन्य जगहों की तलाश शुरू कर दी है। चीन मैन्युफैक्चरिंग का हब अपनी सस्ती श्रम लागत और बेहतरीन इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण बना हुआ था। जहां तक भारत की बात है तो सस्ता श्रमबल तो यहाँ भी है लेकिन समस्या इन्फ्रास्ट्रक्चर की आयेगी। इसके अलावा राज्यों की निर्णय लेने की गति, कानून व्यवस्था और खासतौर पर भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों के शीघ्र हल पर सभी राज्यों को और काम करना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 27 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ संवाद किया तो उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए नियमों को सरल बनाएं और उद्योगों के अनुकूल माहौल बनाएं। इस संदर्भ में मोदी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तारीफ भी की, जिन्होंने कोरोना महामारी के इस दौर में कारखानों में श्रमिकों के लिए काम के घंटे आठ से बढ़ाकर 12 कर दिए हैं।

मोदी चाहते हैं कि राज्यों में निवेश के अनुकूल माहौल बने और इसके लिए वह लगातार प्रयासरत हैं। प्रधानमंत्री का मानना है कि 2014 में केंद्र में उनकी सरकार आने के बाद से राज्यों में विदेशी निवेश आकर्षित करने की जो होड़ लगी है उसको और गति देनी होगी। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए वाइब्रेंट गुजरात समिट शुरू की थी जिसमें बड़े-बड़े निवेशकों के जरिये गुजरात में निवेश कराया और बड़ी संख्या में स्थानीय और अन्य प्रदेशों के लोगों को रोजगार दिया था।

मोदी जानते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी भारत के पास है, दुनिया में चाहे बात विज्ञान की हो या सूचना तकनीक की या फिर इंजीनियरिंग की, या फिर अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की, भारतीय हर क्षेत्र में आगे हैं। अब तो विदेशों से भी बड़ी संख्या में प्रशिक्षित भारतीय वापस लौट रहे हैं, इसके अलावा पिछले छह सालों से स्किल इंडिया प्रोग्राम के जरिये जिस तरह युवाओं को हुनरमंद बनाया गया है, इन सबको देखते हुए वह समय अब आ गया है जब इन सब गुणों को भुना कर भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे तेज गति से तरक्की करने वाली अर्थव्यवस्था बनाया जाये। भारत हमेशा दुनिया के लिए विश्वसनीय रहा है और संकट के समय सबके साथ खड़ा हुआ है। भारत में जिन भी विदेशी कंपनियों का निवेश है उन्हें आज तक यहां संचालन से जुड़ी कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में एक के बाद एक नये शहरों में अपने कार्यालय खोले हैं और अपने हिसाब से यहां कारोबार कर रही हैं जबकि चीन में ऐसा नहीं है वहां की सरकार की कई प्रकार की बंदिशें बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर लागू हैं।

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हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी कहा है कि चीन के प्रति घृणा को बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश आकर्षित करने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है और सरकार इस मौके को हाथ से नहीं जाने देगी। इसीलिये विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए हाल ही में कुछ महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ की गयी हैं। माना जा रहा है कि ऐसी कंपनियों की संख्या 1000 के आसपास है जो चीन छोड़ने का मन बना चुकी हैं और अपने लिए नये ठिकाने की तलाश में हैं। इन कंपनियों की भारत सरकार से भी बात चल रही है। हाल ही में एक बिजनेस पत्रिका में रिपोर्ट छपी थी कि 300 से ज्यादा मोबाइल कंपनियां और इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज बनाने वाली तथा टैक्सटाइल्स और सिंथेटिक फैब्रिक्स संबंधी क्षेत्र वाली कंपनियां अपनी इकाईयां भारत में लगाने के लिए बातचीत कर रही हैं। साफ है कि इस समय दुनिया का कोई भी देश चीन में पूंजी निवेश करने से कतरा रहा है।

बहरहाल, भारत सरकार चीन के खिलाफ माहौल को भुनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेगी लेकिन यह प्रयास पूरी तरह कारगर तभी सिद्ध होंगे जब सभी राज्य भी इस कार्य में बढ़-चढ़कर योगदान करें। अपने यहाँ राज्यों में श्रम सुधारों पर आगे बढ़ने की बात हो, नियमों को सरल बनाने की बात हो, निवेशक अनुकूल नीतियां बनाने की बात हो, फाइलों को लटकाने की बजाय निर्णय त्वरित गति से लेने की बात हो, तैयार माल को देश-विदेश में तेज गति से पहुँचाने के साधनों की बात हो, ज्यादा से ज्यादा युवाओं को उद्योगों की माँग के अनुरूप प्रशिक्षण मुहैया कराने की बात हो...इन सभी मुद्दों पर तुरंत गौर करना होगा। हमें याद रखना चाहिए कि आज जो कंपनियां चीन से बाहर निकलना चाह रही हैं उनके पास सस्ते श्रमिकों के लिए वियतनाम, ताइवान, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्राजील और बांग्लादेश जैसे विकल्प भी हैं। यह मौका कोई और न ले जाये इसके लिए कमर कस कर सभी को एकजुटता के साथ टीम इंडिया के रूप में काम करना होगा। यह तो सभी जानते हैं कि 21वीं सदी भारत की होगी...यकीनन इसे साकार करने का समय आ चुका है।

-नीरज कुमार दुबे

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