राज कैसे चलाएं योगी? IAS और IPS अधिकारी आपस में ही भिड़ रहे

ips and ias officers clast in uttar pradesh
अजय कुमार । May 14 2018 4:33PM

उत्तर प्रदेश में आईएएस−आईपीएस के बीच वर्चस्व की लड़ाई एक बार फिर सुर्खियां बटोर रही है। आईएएस बिरादरी आईपीएस संवर्ग के अधिकारियों को अपने समकक्ष नहीं समझते हैं तो आईपीएस लॉबी को लगता है कि उसे बेवजह आईएएस लॉबी द्वारा मोहरा बनाया जाता है।

उत्तर प्रदेश में आईएएस−आईपीएस के बीच वर्चस्व की लड़ाई एक बार फिर सुर्खियां बटोर रही है। आईएएस बिरादरी आईपीएस संवर्ग के अधिकारियों को अपने समकक्ष नहीं समझते हैं तो आईपीएस लॉबी को लगता है कि उसे बेवजह आईएएस लॉबी द्वारा मोहरा बनाया जाता है। कानून व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी आईपीएस अधिकारियों पर रहती है, लेकिन छोटे से छोटे आदेश के लिये एसएसपी स्तर तक के अधिकारी को जिलाधिकारी से लेकर शासन तक की सहमति लेनी पड़ती है। ऊपरी तौर पर भले ही दोनों लॉबियों के बीच टकराव कभी कम−ज्यादा हो जाता हो, लेकिन इसकी चिंगारी कभी ठंडी पड़ती नहीं दिखी। हालिया विवाद 7 सितंबर 2017 को कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग के उस शासनादेश के बाद पनपा जिसमें निर्देश दिया गया था कि प्रत्येक माह की 7 तारीख को जिलाधिकारी की अध्यक्षता में क्राइम मीटिंग होगी। यह आदेश जारी होते ही आईपीएस असोसिएशन ने इसका विरोध शुरू कर दिया।

यह मामला ठंडा भी नहीं हो पाया था कि चंद महीनों बाद ही एक नया आदेश सामने आ गया। 09 मई 2018 को प्रमुख सचिव राजीव कुमार ने एक और फरमान सुना दिया कि जिलों में थानेदार और इंस्पेक्टर की नियुक्ति बिना जिलाधिकारी के लिखित अनुमोदन के नहीं की जा सकेगी। इस संदर्भ में 2001 व 2009 के शासनादेश का हवाला दिया गया था। 9 अगस्त 2001 को प्रदेश में राजनाथ सिंह की सरकार ने इस आदेश को पहली बार जारी किया था। इसके सात साल बाद 9 फरवरी 2009 को मायावती ने सत्ता में रहते हुए इस आदेश को दोबारा से जारी किया था। डीएम की बिना इजाजत के थानेदार और कोतवाल की पोस्टिंग करना आईएएस लॉबी जहां अपने अधिकारों का हनन मानती है, वहीं दूसरी तरफ जिले के आईपीएस कप्तान इस आदेश को बिना वजह पुलिसिंग में अड़ंगा मानते हैं।

उक्त दो आदेशों से आईएएस−आईपीएस लॉबी के बीच संदेह का धुंआ उठने लगा था, इसी बीच इस मामले ने उस समय 'चिंगारी से शोला' का रूप ले लिया जब गौतमबुद्धनगर (नोयडा) के एसएसपी डॉ. अजय पाल ने डीएम के बिना अनुमोदन के सात कोतवाली प्रभारियों के तबादले कर दिये। इन अधिकारियों ने अपना कार्यभार भी ग्रहण कर लिया था, लेकिन जिलाधिकारी बीएन सिंह इस बात पर भड़क गये। उन्होंने तुरंत ही एसएसपी के आदेश पर रोक लगा दी। प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर सख्त दिख रहे योगी राज का यह पहला वाकया था जब किसी जिलाधिकारी द्वारा एसएसपी के आदेश पर रोक लगाई गई थी। यह सब तब हुआ था जबकि कुछ माह पूर्व लखनऊ में बैठक के दौरान आईपीएस अफसरों ने सात सितंबर 2017 के कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग के शासनादेश पर भी आपत्ति जताते हुए कहा था कि जब क्राइम मीटिंग से लेकर थानेदारों की तैनाती डीएम करेंगे तो कानून−व्यवस्था और बड़े अपराधों के मामले में सिर्फ एसपी पर ही कार्रवाई क्यों की जाती है। बानगी के तौर पर इलाहाबाद में वकील की हत्या व कानून−व्यवस्था बिगड़ने के मसले पर सिर्फ एसएसपी को हटाए जाने का मुद्दा भी उठाया गया था। आईपीएस लॉबी का कहना था कि इलाहाबाद में डीएम पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई। इसी बैठक में यह मांग भी उठी कि बड़े शहरों में कमिश्नर सिस्टम लागू किया जाये। इस पर डीजीपी ओपी सिंह ने अफसरों को आश्वस्त किया है कि वह जल्द ही इस संबंध में सीएम योगी से मुलाकात करेंगे।

गौरतलब है कि वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर ने थानेदार की पोस्टिंग के लिए डीएम की लिखित अनुमति अनिवार्य होने का आदेश जारी किया था। पुलिस अधिकारियों की बैठक में डीएम के लिखित अनुमोदन को लेकर व्यवहारिक दिक्कतों को भी उठाया गया। कई बार एक सप्ताह तक भी डीएम का अनुमोदन न मिल पाने की वजह से ट्रांसफर लिस्ट जारी नहीं हो पाती। ऐसे में किसी थानेदार द्वारा घोर लापरवाही किए जाने के मामले में तत्काल पद से हटाने को लेकर जिले के पुलिस मुखिया की स्थिति असमंजस से भरी होती है।

योगी सरकार द्वारा जारी शासनादेश के बाद कई पूर्व आईपीएस अफसरों ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है। पूर्व डीजीपी एमसी द्विवेदी ने कहा कि सरकारों को यह पता ही नहीं होता कि अच्छा प्रशासन कैसे लाना है? उनका कहना था कि ये सरकार द्वारा पुलिसिंग पर अंकुश लगाना है। कुछ अन्य पूर्व आईपीएस अधिकारियों का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नेशनल पुलिस कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की बात लगातार उठती रही है, लेकिन सरकारें इस पर ध्यान नहीं देतीं। जिसकी वजह से आईएएस अफसरों के हौसले और बुलंद हो जाते हैं।

बहरहाल, ऐसा लगता है कि अब यह मामला सीएम योगी आदित्यनाथ की चौखट पर ही सुलझेगा। आईएएस लॉबी की मनमानी से चिढ़ी आईपीएस लॉबी ने मन बना लिया है कि अब तो सीएम के सामने ही 'दूध का दूध, पानी का पानी' किया जायेगा। लेकिन अतीत यही बताता है कि तमाम सरकारों का झुकाव आईएएस बिरादरी के पक्ष में ही रहता है।

फैसले पर सियासत 

योगी सरकार के इस फरमान के बाद अब सियासत भी शुरू हो गई है। सपा नेता शिवपाल यादव ने योगी सरकार पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया है कि सरकार कानून व्यवस्था संभाल नहीं पा रही है। अधिकारी अपना वर्चस्व कायम करने के लिए पुरानी व्यवस्था को खराब कर रहे हैं और सरकार का उन पर कोई नियंत्रण नहीं है। सरकार ऐसे आदेश देकर सिर्फ विवाद पैदा कर रही है। इस आदेश के बाद अब जिलों से लेकर शासन तक आईएएस और आईपीएस लॉबी के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो रही है।

-अजय कुमार

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