मुद्दों का सूखा, तभी तो सूखे पर हो रही राजनीति

हमारे राजनीतिक दलों के नेताओं के पास शायद मुद्दों का अभाव हो गया है इसलिए अब सूखे पर भी राजनीति शुरू हो गयी है। महाराष्ट्र के लातूर में विशेष ट्रेन द्वारा पांच लाख लीटर पानी पहुँचाए जाने को देखते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रस्ताव दिया है कि वह दो महीने तक रोजाना लातूर को दस लाख लीटर पानी भेजने के लिए तैयार हैं। इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पानी भिजवाने के लिए परिवहन व्यवस्था करवाने का आग्रह किया है। लेकिन यहाँ केजरीवाल यह भूल गये कि वह 1500 किलोमीटर दूर इलाके में पानी भेजने की बात तो कर रहे हैं लेकिन दिल्ली के कई कोने इस समय पानी की बाट जोह रहे हैं। राजधानी दिल्ली के हरियाणा सीमा से सटे कई इलाकों में सप्ताह में दो तीन दिन पानी आने की खबरें आ रही हैं। संगम विहार सहित बाहरी दिल्ली और पश्चिमी दिल्ली के कई इलाकों में लोग पानी की समस्या से परेशान हैं लेकिन मुख्यमंत्री को राजनीति सूझ रही है। वह भी जब जब दिल्ली के पास अपना पानी नहीं है और वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए हरियाणा पर निर्भर है।
शायद केजरीवाल हर मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की रणनीति पर ही आगे बढ़ते रहना चाहते हैं। शायद उनको पता हो कि दिल्ली से रोजाना 10 लाख लीटर पानी ले जाने के लिए कोई ट्रेन है ही नहीं। अभी लातूर में जो पानी आया है वह 350 किलोमीटर दूर पश्चिमी महाराष्ट्र के मिराज से आया है। दिल्ली से 1500 किलोमीटर दूर पानी भेजने की पहले तो व्यवस्था करना ही मुश्किल होगा और उसके बाद उस पर आने वाला खर्च भी मायने रखेगा। केजरीवाल जानते ही होंगे कि उनके ऐसे बयान दे देने से भी पानी भेजने की नौबत नहीं आएगी इसलिए उन्होंने बयान देकर मीडिया में एक बार फिर सुर्खियां तो हासिल कर ही लीं।
केंद्र सरकार का केजरीवाल के रुख पर कहना है कि इसके लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री को पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री से बात करनी चाहिए। भाजपा और कांग्रेस ने भी मुख्यमंत्री के इस प्रस्ताव को राजनीतिक कदम बताया है। बहरहाल, केजरीवाल और अन्य नेताओं को चाहिए कि वह सूखे पर राजनीति बंद करें। लातूर में पानी लेकर पहुँची ट्रेन पर प्रधानमंत्री को धन्यवाद के बैनर लगाना भी सही नहीं है। पानी पिलाने का श्रेय लेने से बचना चाहिए।
इस बीच, मौसम विभाग ने यह एक अच्छी खबर दी है कि इस बार देश में मानसून सामान्य से अच्छा रहेगा। देश के कई राज्यों में सूखे की स्थिति से ना सिर्फ वहाँ के लोग और सरकारें परेशान हैं बल्कि पानी पर पहरा, सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों द्वारा घास की रोटियां खाना, लोगों के पलायन आदि जैसी स्थिति से परेशानी और बढ़ने का खतरा लगातार बना हुआ था। महाराष्ट्र के लातूर में तो ट्रेन द्वारा पानी पहुँचाया जा रहा है। केंद्र सरकार ने सूखा प्रभावित राज्यों में पानी पहुँचाने के लिए बड़ी राशि का ऐलान किया है लेकिन सभी जानते हैं कि असल में कितनी मदद जरूरतमंदों तक पहुँच पाती है।
बुंदेलखंड, विदर्भ, मराठवाड़ा, तेलंगाना के कई इलाके भीषण सूखे की चपेट में हैं और यह सिलसिला दशकों से जारी है, सरकार के स्तर पर योजनाएं बनती हैं और पैकेज भी जारी होते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या समितियां बनाने और योजनाओं से जुड़ी कागजी कार्यवाही कभी हालात बदल पाएगी? बुंदेलखंड में जलस्रोत सूख चुके हैं। भूमिगत जलस्तर तेजी से घटा है। सूखे से पीड़ित लोगों का लगातार पलायन जारी है। गांव के गांव खाली हो गए हैं। अवैध खनन माफियाओं ने बुंदेलखंड की जमीन को खोखला कर दिया है। एक के बाद एक समितियां बनाकर बुंदेलखंड को बचाने की कार्यवाही की जा रही है लेकिन क्या कभी समितियां हालात बदल पाई हैं?
राज्यों में सूखे की समस्या को लेकर नीति आयोग ने विभिन्न मंत्रालयों के साथ बैठक की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बुंदेलखंड, विदर्भ और मराठवाड़ा में सूखे की स्थिति की उच्च स्तरीय समीक्षा करने के निर्देश के मद्देनजर कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री कार्यालय में समीक्षा बैठक आयोजित की गई जिसमें उत्तर प्रदेश के वास्ते राष्ट्रीय आपदा राहत निधि के अंतर्गत सूखा राहत के लिए 1304 करोड़ रुपए की राशि को मंजूरी प्रदान की गई। बुंदलेखंड में 1987 के बाद यह 19वां सूखा है। यहां पिछले छह साल में 3,223 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। महाराष्ट्र में 2004 से 2013 के बीच के 10 साल में 36,848 किसानों ने आत्महत्या की। इस साल भी विदर्भ और मराठवाड़ा में मौत का यह तांडव जारी है। ऐसे ही कुछ हालात उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित देश के कम से कम दस राज्यों हैं। प्रकृति प्रदत्त चुनौतियों के आगे सरकारें बेबस नजर आ रही हैं।
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