जनता ने चुन लिये नये जननायक, महाराष्ट्र-हरियाणा में गलती आखिर कहाँ हुई ?
चुनाव परिणाम यह भी दर्शाते हैं कि यदि इन दोनों विधानसभा चुनावों को कांग्रेस ने समय पर गंभीरता से ले लिया होता तो आज परिणाम पूरी तरह उसके पक्ष में भी हो सकते थे। इन दोनों चुनावों ने देश को आदित्य ठाकरे और दुष्यंत चौटाला जैसे दो नये युवा नेता भी उभार कर दिये।
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजे दर्शाते हैं कि भले चुनावी मुद्दे राष्ट्रीय रहे हों लेकिन जनता ने राज्य सरकारों के कामकाज को देखते हुए अपना मत दिया है। महाराष्ट्र में भाजपा ने 'अबकी बार 250 पार' और हरियाणा में 'अबकी बार 75 पार' का नारा दिया था लेकिन यह लक्ष्य हासिल करने में पार्टी सफल नहीं हो पायी। महाराष्ट्र में एनडीए सरकार की वापसी भाजपा के लिए राहत भरी बात हो सकती है लेकिन हरियाणा में पूर्ण बहुमत की सरकार हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए बड़ा झटका है क्योंकि इस राज्य में भाजपा नेतृत्व ने राजनीतिक और जातिगत समीकरण बैठाने के लिए तमाम नये प्रयोग किये थे। यह चुनाव परिणाम यह भी दर्शाते हैं कि यदि इन दोनों विधानसभा चुनावों को कांग्रेस ने समय पर गंभीरता से ले लिया होता तो आज परिणाम पूरी तरह उसके पक्ष में भी हो सकते थे। इन दोनों चुनावों ने देश को आदित्य ठाकरे और दुष्यंत चौटाला जैसे दो नये युवा नेता भी उभार कर दिये।
सबने देखा कि चुनाव भले विधानसभा के हो रहे थे लेकिन इनमें राष्ट्रवाद ही एक बार फिर सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ था। राष्ट्रीय सुरक्षा, राफेल विमान की शस्त्र पूजा, सर्जिकल स्ट्राइक, अनुच्छेद 370 को हटाने जैसे मुद्दे इन चुनावों में ऊपरी तौर पर भले देखने को मिले लेकिन परिणाम दर्शाते हैं कि अंदरूनी स्तर पर जनता में नाराजगी भी थी। विपक्ष की ओर से देश में आर्थिक मंदी होने, बेरोजगारी बढ़ने, किसानों की स्थिति बिगड़ने जैसे मुद्दे प्रखरता के साथ उठाये गये थे जिनका असर साफ नजर आ रहा है।
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महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणामों से कुछ चीजें साफ तौर पर उभर कर आई हैं जिनमें अगर महाराष्ट्र की बात करें तो
-भाजपा और शिवसेना साथ आकर दोबारा सरकार बना पाने में तो सफल हुए लेकिन इसका सर्वाधिक नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा क्योंकि उसकी सीटें काफी घट गयीं। शिवसेना भी अपनी सीटों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं कर पायी जबकि उसने अपने युवा नेता आदित्य ठाकरे को भी चुनाव मैदान में उतार कर बड़ा कार्ड चला था।
-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अपना नेतृत्व साबित करने में सफल रहे। भाजपा आलाकमान ने उन पर जो विश्वास जताया था उस पर वह भले पूरे तौर पर नहीं लेकिन सफल रहे। निवर्तमान सरकार के दौरान मराठा आरक्षण आंदोलन, किसानों के आंदोलन समेत अनेक ऐसे ज्वलंत मुद्दे आये जोकि राज्य सरकार के लिए मुश्किलों का सबब बने इसके साथ ही शिवसेना की ओर से तमाम तरह के राजनीतिक दबाव बनाये गये लेकिन उसके बावजूद फडणवीस यदि दोबारा एनडीए सरकार को सत्ता में लौटा लाये हैं तो महाराष्ट्र की राजनीति में उनका कद बढ़ गया है। लेकिन अब देखना होगा कि क्या वह अपनी आधी कुर्सी यानि उपमुख्यमंत्री पद शिवसेना को देते हैं और यदि शिवसेना का उपमुख्यमंत्री बनता है तो जाहिर-सी बात है कि वह आदित्य ठाकरे ही होंगे। शिवसेना और आदित्य ठाकरे की महत्वाकांक्षा से निबटना अगले कार्यकाल में फडणवीस की बड़ी मुश्किल होने वाली है।
-कांग्रेस की बात करें तो पार्टी ने यहां संगठन को दुरुस्त करने में ज्यादा समय ले लिया और पार्टी अंत समय तक अंतर्विरोधों से जूझती रही। नाराज नेताओं को नहीं मना पाना कांग्रेस को भारी पड़ गया। इसके अलावा नामांकन की अंतिम तिथि तक जिस तरह कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में जाते रहे उसको कांग्रेस नहीं रोक पायी। कांग्रेस ने चुनावों के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और मल्लिकार्जुन खड्गे को प्रभारी बनाया था लेकिन सिंधिया ने महाराष्ट्र पर ध्यान ही नहीं दिया और खड्गे से महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं की बनी ही नहीं।
-महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में असल विजेता राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार साबित हुए। उन्होंने अपनी पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की और पश्चिम महाराष्ट्र में एनसीपी का जो प्रदर्शन रहा है वह सीधा पवार मैजिक कहा जा सकता है। कांग्रेस ने पिछली बार की गलती ना दोहराते हुए इस बार एनसीपी के साथ गठबंधन किया और फायदे में रही। देखा जाये तो महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के स्टार प्रचारक पवार ही थे और इस गठबंधन को जो सीटें मिली हैं उसमें पवार का योगदान ज्यादा है। कांग्रेस ने तो राहुल गांधी को अंत समय में प्रचार पर उतारा था जबकि शरद पवार पीएमसी बैंक घोटाला मामले के उछलने और प्रवर्तन निदेशालय का नोटिस मिलने के बावजूद मैदान में डटे रहे, बारिश होती रही मगर भाषण देते रहे। चुनाव प्रचार के पहले दिन से लेकर अंत समय तक अपनी उम्र की परवाह नहीं करते हुए पवार ने दिखा दिया कि वह कितने बड़े मराठा योद्धा हैं।
-महाराष्ट्र में एक समय शिवसेना-भाजपा गठबंधन में शिवसेना बड़ा भाई और भाजपा छोटा भाई हुआ करती थी लेकिन अब परिस्थितियां बदल गयी हैं। इसी तरह कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में कांग्रेस बड़ा भाई और एनसीपी छोटा भाई थी लेकिन अब परिस्थिति इसके उलट है।
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हरियाणा के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो कुछ चीजें स्पष्ट तौर पर उभर कर आती हैं-
-भाजपा की सेलेब्रिटी राजनीति कमाल नहीं दिखा पायी। पार्टी ने एक से बढ़कर एक खिलाड़ी उतारे, टिकटॉक स्टार को भी टिकट दिया लेकिन कुछ काम नहीं आया। साथ ही चुनावों से ठीक पहले जिस तरह दूसरे दलों के विधायकों को भाजपा में शामिल कराया गया वह भी काम नहीं आया। उलटा उन विधायकों के भाजपा में आने से पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच जो नाराजगी पनपी उसे भाजपा अंत समय तक संभाल नहीं पायी।
-भाजपा ने हरियाणा में गैर जाट को मुख्यमंत्री बना कर जो नये राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बनाये थे वह काम नहीं आया। खट्टर मुख्यमंत्री के रूप में भले भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने में सफल रहे हों लेकिन पूरे कार्यकाल में तमाम विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी प्रशासनिक क्षमता पर भी सवाल उठते रहे। लेकिन भाजपा आलाकमान का पूरा समर्थन उन्हें प्राप्त होने के कारण वह पूरे कार्यकाल तक पद पर बने रहे। इन विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने उन पर कुछ ज्यादा ही भरोसा कर दोबारा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया और जिस तरह के नतीजे सामने आये हैं उससे साफ हो गया है कि पार्टी ने एक बड़ी गलती की।
-कांग्रेस ने ऐन चुनावों से पहले पार्टी की कमान अशोक तँवर के हाथों से लेकर जिस तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के हाथों में सौंपी उसने अपना असर तो दिखाया लेकिन अब कांग्रेस को अहसास हो रहा होगा कि यही काम उसने ठीक लोकसभा चुनावों के बाद कर दिया होता तो परिणाम आज और ज्यादा अच्छे हो सकते थे। दरअसल हुड्डा को राहुल गांधी पसंद नहीं करते और यही कारण रहा कि इस बार के चुनावों में उन्होंने एक भी रैली हुड्डा के साथ नहीं की थी। हुड्डा ने कांग्रेस आलाकमान को दर्शा दिया है कि प्रदेश के जाट अभी भी उनके साथ हैं और हरियाणा की राजनीति में उनको खारिज नहीं माना जाना चाहिए। कांग्रेस की जितनी भी सीटें आयी हैं उनमें हुड्डा का ही योगदान ज्यादा रहा।
-इस चुनावों में ना तो भाजपा जीती ना ही कांग्रेस, असल जीत तो हुई है जननायक जनता पार्टी की। जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला इस चुनाव में नये नायक बन कर उभरे हैं। हाल ही में लोकसभा चुनावों में मिली हार से निराश ना होते हुए उन्होंने जिस तरह से पूरे हरियाणा में अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारे और पहले ही विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया वह दर्शाता है कि हरियाणा में सिर्फ भाजपा और कांग्रेस नहीं क्षेत्रीय दलों का दबदबा अब भी कायम है। साथ ही देवी लाल की राजनीतिक विरासत को लेकर चौटाला परिवार में जो अंतर्कलह मचा हुआ था इस चुनाव परिणाम के बाद वह भी साफ हो गया है कि देवी लाल की राजनीतिक विरासत के वर्तमान में उत्तराधिकारी दुष्यंत चौटाला ही हैं।
बहरहाल, पूरे चुनाव परिणाम पर शुरुआती टिप्पणी में यही कहा जा सकता है कि संसद के शीतकालीन सत्र से पहले विपक्ष को कुछ संबल मिला है और इसका असर जल्द ही होने वाले झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिल सकता है। कांग्रेस मुक्त भारत का सपना भाजपा के लिए फिलहाल दूर की कौड़ी नजर आ रहा है क्योंकि चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस अभी जिंदा है।
-नीरज कुमार दुबे
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