ममता सरकार संवैधानिक व्यवस्था से ऊपर नहीं

Mamata Banerjee
ANI

भ्रष्टाचार से लेकर मनमर्जी का शासन चलाना मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का शगल बन गया है। ममता को सिर्फ वोट बैंक की राजनीति नजर आती है, इसके लिए बेशक कानून की कितनी ही धज्जियां क्यों न उड़ानी पड़ी। ममता बनर्जी का एकमात्र लक्ष्य मुसलमानों के वोट बैंक को बरकरार रखना रह गया है।

पश्चिमी बंगाल की ममता सरकार देश में एकमात्र ऐसी सत्तारुढ़ पार्टी बन गई है जिसका देश के संविधान और न्यायपालिका में भरोसा नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार से लेकर मनमर्जी का शासन चलाना मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का शगल बन गया है। ममता को सिर्फ वोट बैंक की राजनीति नजर आती है, इसके लिए बेशक कानून की कितनी ही धज्जियां क्यों न उड़ानी पड़ी। ममता बनर्जी का एकमात्र लक्ष्य मुसलमानों के वोट बैंक को बरकरार रखना रह गया है। मुद्दा चाहे रोहिंग्या मुसलामानों के अवैध प्रवेश का हो या फिर बांग्लादेशियों का। इसके लिए ममता ने देश की एकता-अखंडता और सुरक्षा से जुड़े इन मुद्दों पर भी केंद्र की भाजपा सरकार की खिलाफत की है। कानून से खिलवाड़ जितना पश्चिमी बंगाल में हुआ है उतना शायद ही देश के किसी दूसरे राज्यों में हुआ हो। कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के हाइकमान ने भी कभी ऐसे आरोप केंद्र की भाजपा सरकार पर नहीं लगाए, जैसे कि ममता बनर्जी लगाती रही हैं। ममता ने भ्रष्टाचार, सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग, राजनीतिक आधार पर बंदरबाट जैसे मुद्दों पर अदालतों से जितनी फटकार खाई है, उतनी देश के किसी राजनीतिक दल की सरकार ने नहीं खाई। इतना सब कुछ होने के बावजूद ममता बनर्जी अपनी आदतों से बाज नहीं आई हैं। नया मामला पश्चिमी बंगाल में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को अदालत द्वारा रद्द करने का है। इस आदेश को सदाशयता से मान कर अपील करने की दलील देने के बजाए मुख्यमंत्री ममता ने ही फैसला देने वाले हाईकोर्ट के न्यायाधीश पर भाजपा समर्थक होने का आरोप लगा दिया। ऐसा करके ममता ने बगैर किसी भय के सरेआम अदालत की अवमानना कर दी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह इस आदेश को स्वीकार नहीं करेंगी, जो तपशिली समुदाय को दिए गए अधिकार छीन लेगा। 

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने तृणमूल कांग्रेस प्रशासन के तहत 2011 से बंगाल में जारी अन्य पिछड़ा वर्ग के सभी प्रमाणपत्रों को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने कहा, हालांकि, इससे वर्तमान में शैक्षणिक संस्थानों में नौकरी या सीटें रखने वाले या जाति प्रमाण पत्र के साथ आवेदन दाखिल करने वाले लोगों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण की पूरी कहानी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में गठित सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित है। उस रिपोर्ट में देश में मुस्लिम समुदाय की स्थिति के बारे में विस्तृत बातें की गई थीं। रिपोर्ट में कहा गया था कि पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारियों में केवल 3.5 फीसदी ही मुस्लिम थे। इसी को आधार बनाकर 2010 में पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार ने 53 जातियों को ओबीसी की श्रेणी में डाल दिया और ओबीसी आरक्षण सात फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया। इस तरह उस वक्त करीब 87.1 फीसदी मुस्लिम आबादी आरक्षण के दायरे में आ गई। लेकिन, 2011 में वाम मोर्चा की सरकार सत्ता से बाहर हो गई और उसका यह फैसला कानून नहीं बन सका। फिर राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार आई और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनीं। ममता की सरकार ने इस सूची को बढ़ाकर 77 कर दिया। 35 नई जातियों को इस सूची में जोड़ा गया, जिसमें से 33 मुस्लिम समुदाय की जातियां थीं। साथ ही तृणमूल सरकार ने भी राज्य में ओबीसी आरक्षण सात फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया। ममता सरकार के इस कानून की वजह से राज्य की 92 फीसदी मुस्लिम आबादी को आरक्षण का लाभ मिलने लगा।

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हाईकोर्ट ने ओबीसी के मामले में सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया। इसके बाद तो मानो ममता का पारा उछल गया। ममता ने अदालत पर मनमाने आरोप लगा दिए। उच्च न्यायालय के विशिष्ट न्यायाधीशों पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि एक न्यायाधीश कह रहा है कि मैं आरएसएस का आदमी हूं, दूसरा भाजपा में शामिल हो जाता है... आप इस तरह से न्यायाधीश कैसे बन सकते हैं और अदालतों की अध्यक्षता कैसे कर सकते हैं? पार्टी के वरिष्ठ नेता और सुश्री बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने भी आरोप लगाया कि अदालत का फैसला तपशिली समुदाय के लिए आरक्षण रद्द करने के भाजपा के प्रयासों का हिस्सा है। ममता के आरोपों के जवाब में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने सुश्री बनर्जी की टिप्पणियों को खारिज कर दिया। शाह ने कहा कि ममता जी ने कहा कि हम उच्च न्यायालय के फैसले को स्वीकार नहीं करते हैं। शाह ने कहा कि बंगाल के लोगों से पूछना चाहता हूं - क्या ऐसा कोई मुख्यमंत्री हो सकता है जो अदालत के आदेश को मानने से इनकार कर दे? उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी ने बिना किसी सर्वेक्षण के 118 मुस्लिम जातियों को ओबीसी आरक्षण दे दिया। कोई अदालत में चला गया। ममता बनर्जी अपने वोट बैंक के लिए पिछड़े वर्गों के आरक्षण को लूटना चाहती हैं और मुस्लिम जातियों को आरक्षण देना चाहती हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी एक बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि ये दोनों ही जो फैसले हैं, वो बताते हैं कि ममता बनर्जी की सरकार गैर-संवैधानिक तरीके से तुष्टीकरण की नीति को आगे बढ़ा रही थी। 

ममता बनर्जी ने वोटों के धुवीकरण की राजनीति करने में कसर बाकी नहीं रखी। मुद्दा चाहे रामनवमी पर हिंसा का हो या संदेशखाली में हिन्दू महिलाओं के साथ अत्याचारों का। राज्य में शीर्ष संवैधानिक पद पर रहते हुए भी ममता बनर्जी ने मुसलमानों के वोट बैंक को रिझाने के लिए उल्टे भाजपा और दूसरे विपक्षी दलों पर ही निशाने साधे हैं। इसके अलावा ममता बनर्जी के मौजूदा और पूर्व कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार का ताडंव जम कर हुआ। शारदा घोटाला और नारद स्टिंग खुलासे, कोयला और मवेशी तस्करी, राशन घोटाले और सरकारी परियोजनाओं के लिए फंड से लिए गए कट मनी के आरोपों के बावजूद ममता सरकार में कोई सुधार नहीं दिखा। इससे जाहिर है कि ममता बनर्जी मनमानी करने पर आमदा हैं।   

बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला, कोयला तस्करी मामला, नगर पालिका नियुक्ति घोटाला व राशन वितरण घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के एक दर्जन से अधिक नेता मंत्री सलाखों के पीछे हैं। इनमें पूर्व मंत्री व विधायक पार्थ चटर्जी, विधायक अनुब्रत मंडल, विधायक मानिक भट्टाचार्य, विधायक जिबनकृष्ण साहा प्रमुख हैं। इस कड़ी में वन मंत्री व पूर्व खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक का नाम जुड़ गया है। करोड़ों रुपये के शारदा चिटफंड घोटाले में तृणमूल के तत्कालीन राज्यसभा सदस्य सृंजय बोस और तृणमूल के विधायक और तत्कालीन परिवहन मंत्री मदन मित्रा को गिरफ्तार किया गया था। मित्रा और बोस दोनों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। बंगाल पुलिस ने शारदा चिटफंड घोटाले में टीएमसी के प्रवक्ता और पार्टी के पूर्व राज्यसभा सदस्य कुणाल घोष को गिरफ्तार किया था। ममता सरकार की सर्वाधिक किरकिरी संदेशखाली की शर्मनाक वारदात में हुई। सुप्रीम कोर्ट ने संदेशखाली मामले की सीबीआई जांच का विरोध करने पर पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने सवाल किया कि कोई राज्य सरकार किसी व्यक्ति के हितों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट कैसे आ सकती है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सीबीआई जांच का निर्देश देने वाले हाई कोर्ट के आदेश पर कोई रोक लगाने से इनकार कर दिया और पूछा था कि राज्य सरकार किसी व्यक्ति के हितों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय से कैसे संपर्क कर सकती है? जहां तक वोटों की राजनीति और बहुमत पाने से काले कारनामों के धुल जाने का सवाल है तो लालू यादव बहुमत के बावजूद जेल गए थे। लोकतंत्र में कानून से खिलवाड़ करने के लिए बहुमत को आधार नहीं माना जा सकता। ममता बनर्जी को इससे सबक लेना चाहिए।

- योगेन्द्र योगी

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