अटलजी की विरासत को और सँवार कर आगे बढ़ा रहे हैं नरेंद्र मोदी

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तरुण विजय । Aug 18 2018 5:57PM

अटल जी पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक थे, मुझे पाञ्चजन्य संपादक के रूप में बीस वर्ष काम करने का अवसर मिला। पाञ्चजन्य स्वर्ण जयंती के समय अटल जी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने हमारी स्वर्ण जयंती समिति का अध्यक्ष पद भी स्वीकार किया।

ज्यों उठे सिंधु में ज्वार, ज्यों रोये आकाश, कुछ इस तरह एक कवि हृदय भारत नायक अटल बिहारी वाजपेयी विदा हुए।

अटल जी यदि अटल जी थे तो नरेंद्र भाई मोदी जी भी बस नरेंद्र भाई हैं- अद्भुत असाधारण अभूतपूर्व समर्पण, श्रद्धा, विश्वास,... अटल जी को विश्व में विरला अंतिम प्रणाम दिया- दीनदयाल उपाध्ययाय के दोनों अनुगामी, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग से गुजरते हुए राष्ट्रीय स्मृति तक पहुंचे।..... हर कदम भारी हर कदम श्रद्धा का। नरेंद्र भाई सवा अरब लोगों के नयनों से बहे आंसुओं से अपने आंसू मिला गए- वे दुःख और शोक के क्षणों से एकरूप हो गए।  

अटल जी का कवि रूप उनके राजनेता रूप से कितना बड़ा था यह हर व्हाट्स एप्प, ट्वीट, फेसबुक पर लाखों साधारण और बहुधा ऐसे जिन्होंने शायद जीवन में कभी कोई कविता भी न पढ़ी हो, उनके द्वारा अटल जी की कविताओं के उल्लेख, उनमें से सही सन्दर्भ वाली पंक्तियों के प्रसारण से पता चलता है।

अटल जी। जाने के बाद अधिक विराट और स्नेहिल रूप में हम सबके मानस परछा गए हैं। अमर अटल, साक्षात् अटल से कहीं बड़े हो गए!!

अटल जी पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक थे, मुझे पाञ्चजन्य संपादक के रूप में बीस वर्ष काम करने का अवसर मिला। पाञ्चजन्य स्वर्ण जयंती के समय अटल जी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने हमारी स्वर्ण जयंती समिति का अध्यक्ष पद भी स्वीकार किया। समिति मैं श्री नरेंद्र कोहली, सत्यनारायण बंसल, श्री देवेंद्र स्वरुप, श्री केआर मलकानी जी भी थे। हमारी प्रधानमंत्री निवास में ही बैठकें होती थीं। सभी कार्यक्रम भी वहीँ पंचवटी में हुए। उनके साथ बिताये क्षण अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं के साक्षी भी बने। जैसे पोकरण के बाद, आगरा में परवेज मुशर्रफ के लिए मन बनाने के दिन, हिन्दू प्रखरता और राम मंदिर आंदोलन, और सदन में एक मत के विश्वासघात से सरकार का गिरना। इन क्षणों में क्या वे सोचते थे? बहुत कुछ इन छोटे छोटे प्रश्नों के उत्तर में पता चलता है।

पाञ्चजन्य से अटल जी का प्रारम्भ से ही एक अटूट स्नेह सम्बन्ध रहा जिसे उन्होंने सदा निभाया। उनके विभिन्न कार्यकालों में, प्रधानमंत्री बनने के तीनों प्रसंगों के समय उन्होंने प्रथम वार्ताएं पाञ्चजन्य से कीं और देश, समाज, धर्म, हिन्दू जागरण, राजनीतिक विश्वासघात, अपने समान धर्मा कहे जाने वाले राजनीतिक दलों के प्रहार आदि पर अपने स्पष्ट, बेलाग मत जाहिर किये।  

वे आस्थावान हिन्दू थे, प्रखर, प्रगल्भ हिन्दू। उन्होंने रग रग हिन्दू मेरा परिचय और गगन में लहरता है भगवा हमारा जैसे गीत पाञ्चजन्य में ही लिखे थे। लेकिन वे अतीतजीवी, रूढ़ीवादी नहीं थे। उनका एक साक्षात्कार जिसमें उन्होंने 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैं का समर्थन करने के स्थान पर कहा- 'गर्व से कहो हम भारतीय क्यों नहीं? उस पर काफी तूफ़ान उठा था। उन्होंने प्रतिपक्षी नेताओं पर व्यक्तिगत प्रहार से सबको मना किया' 'कार्यक्रमों, नीतियों का विरोध करो, व्यक्तिगत आक्षेप राजनीति में मान्य नहीं हो सकते'।

एक बार जब पाञ्चजन्य में श्रीमती सोनिया गाँधी पर तीव्र प्रहार हुए तो उन्होंने तुरंत फ़ोन करके मुझे कहा- यह ठीक नहीं- कांग्रेस पर प्रहार करो-व्यक्ति पर नहीं। स्वदेशी आंदोलन के चरम पर हमने आवरण कथा छापी थी जिसमें भारत माता का विदेश कंपनियों द्वारा चीरहरण दिखाया था- अंक निकलते ही जब अटलजी ने देखा- वे प्रायः हमारे प्रथम पाठक हुआ करते थे 'तो पीएमओ से फ़ोन आया' सर पीएम साहेब बात करेंगे 'अगले क्षण अटल जी लाइन पर थे' पहला ही वाकया बिजली जैसा लगा 'वे बोले-विजय जी' ''यह क्या छाप दिया? हम मर गए हैं क्या? किसी की हिम्मत है हमारे होते भारत माता का चीर हरण करे? यह ठीक नहीं" और फ़ोन रख दिया। हम समझ गए और दुबारा ऐसा चरम स्पर्श नहीं किया।

पर वे कभी भी, किसी की आलोचना से दुखी होकर भी नाराज नहीं होते थे। हम पाञ्चजन्य में सरकार की आलोचना करते, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, मुस्लिम संगठनों के विचार छापते, कश्मीर की उनकी नीति की कठोर आलोचना करते, पर उन्होंने इस पर कभी अपने दरवाजे हमारे लिए बंद नहीं किये। नाराजगी बता देते थे 'चेहरा नाराजगी का बनाते' बस फिर कुछ दिन बाद भूल जाते। उनके साथ प्रायः सभी विदेश यात्राओं में मुझे जाने का अवसर मिला। विमान में भी अपने कक्ष में बुलाकर हलकी फुल्की चर्चा करते, विदेश प्रवास के उद्देश्य की 'लाइन' बताते, बस इतना ही हमारे लिए बहुत होता।  

पोकरण और कारगिल विजय उनके जीवन के शौर्य और पराक्रम के स्वर हैं, 'हार नहीं मानूंगा' न वे कभी हारे न देश को हारने दिया- तो शांति और सद्भाव को एक नहीं अनेक मौके देने के लिए उन्होंने सीमायें भी लांघी। जहाँ युद्ध हो सकते थे वहां उन्होंने बुद्ध का आह्वान किया। 'पोकरण भी शांति के लिए था' इसीलिए पोकरण विस्फोट की सफलता पर 'बुद्ध मुस्कुराये थे'। यही थी संकेत भाषा में सफलता की घोषणा।  उन्होंने विश्व को बताया कि राष्ट्रीयता और भारत भक्ति का सच्चा अर्थ क्या होता है। यह अर्थ गोली नहीं गरीबी उन्मूलन में मिलता है, यह अर्थ गांव के विकास में मिलता है, यह अर्थ युवाओं के लिए टेक्नोलोजी  और उच्च शिक्षा के नए सोपान बनाने में मिलता है। आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है उसकी आधारशिला अटल जी ने ही रखी थी। वे अपने समय से बहुत दूर तक देख सकते थे, स्वप्न दृष्टा थे लेकिन कर्म वीर भी थे, कवि हृदय भावुक मन के थे तो पराक्रमी सैनिक मन वाले भी थे। उन्होंने विदेश की यात्रायें कीं 'जहाँ जहाँ भी गए स्थाई मित्र बनाये' और भारत के हितों की स्थाई आधारशिला रखते गए।    वे भारत की विजय और विकास के स्वर थे, यदि बताना हो कि उदार हृदय नेतृत्व की परिभाषा क्या है तो केवल अटल जी का नाम ही पर्याप्त है- परिभाषा मिल जाएगी।

वे पीड़ा सहते थे, वेदना को चुपचाप अपने भीतर समाये रहते थे, पर सबको अमृत देते रहे- जीवन भर। जब उन्हें कष्ट हुआ तो कहने लगे- देह धरण को दंड है, सब काहू को होये, ज्ञानी भुगते ज्ञान से मूरख भुगते रोये। उन्होंने ज्ञान मार्ग से अत्यंत गहरी वेदनायें भी सहन कीं और वीतरागी भाव से विदा ले गए।

मतभेद को मनभेद में मत बदलो- कहने वाले अटल जी के साथ सहस्त्रों यादें। सार्वजनिक जीवन में आत्मीयता का छंद अटल जी। कार्यकर्ताओं के लिए मित्रता का गीत अटल जी। गलती पर डांटने, अच्छाई पर शाबाशी देने वाले अटल जी, अपने हाथों से हज़ारों को पत्र का जवाब लिखने वाले अटल जी। कभी नाराज न होने वाले अटल जी। 

ऐसे अटल जी की विरासत कौन संभालेगा? 

मुझे स्पष्ट आभास है कि नरेंद्र भाई मोदी ने अटल जी की विरासत को संभाला ही नहीं है बल्कि उसे और संवार कर आगे बढ़ाया है। चाहे विदेश नीति में अभूतपूर्व साफलता हो, या राजमार्गों, डिजिटल इंडिया, महिला सशक्तिकरण, राष्ट्रीय आत्मविश्वास में जबरदस्त वृद्धि, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग, युवा कौशल विकास, जन धन और सैन्य शक्ति में वृद्धि, उनके हर कदम में अटल छाप दिखती है।

-तरुण विजय

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