नेताओं के बिगड़े बोल के लिए राजनीतिक दल ही जिम्मेदार

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सरकार को गिराने की कोशिशों से नाराज होकर कांग्रेस के बागियों को काले नाग और बिकाऊ करार दिया था और अपने चुनावी अभियान के दौरान भी बिकाऊ बनाम टिकाऊ के नारे का इस्तेमाल किया था।
देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता के लिए सीमा पार से मिलने वाली चुनौती का भारत ने न सिर्फ वर्तमान में बल्कि पूर्व में बखूबी जवाब दिया है। भारत बाहर से मिलने वाली हर चुनौती से निपटने में सक्षम है। ऑपरेशन सिंदूर से भारत ने यह दृढ़ता विश्व में साबित कर दी है। देश के सामने असली दिक्कत अंदरुनी है। अंदरुनी चुनौतियां से निपटना आसान नहीं हैं, वह भी यदि ऐसी हरकतें नेताओं और जनप्रतिनिधियों द्वारा की जाए। जिन पर हर सूरत में देश की आन-बान-शान को ऊंचा रखने की जिम्मेदारी हो, यदि वो ही निम्नस्तरीय कृत्य पर उतर आएं तो सवाल खड़े होना लाजिमी है। मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह ने भारत की जांबाज सेना की अफसर और जज्बे से देश की आईकोन बनी कर्नल सोफिया के बारे अनर्गल टिप्पणी करके कई सवालों को जन्म दिया है।
ऐसा नहीं है कि मंत्री विजय शाह ऐसा कृत्य करने वाले अकेले नेता हैं, जिनकी वजह से देश का नीचा देखना पड़ा है। ऐसा करने वाले नेता की लंबी फेहरिस्त है, जिनके बिगड़े बोल से देश और समाज का सौर्हाद्र प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर प्रभावित हुआ है। मध्यप्रदेश के इस मंत्री को बेशक सजा मिल जाए, इसके बाद भी बड़ा सवाल यही है कि आखिर वह कौनसी वजह है कि नेताओं की जुबान काबू में नहीं रहती। सवाल यह भी है कि वैमनस्य का जहर घोलने वाले ऐसे नेताओं के मामले में कानूनी कार्रवाई का इंतजार क्यों किया जाता है। राजनीतिक दल आगे बढ़ कर कार्रवाई की नजीर पेश क्यों नहीं करते। यदि राजनीतिक दलों ने नेताओं के लिए कोई लक्ष्मण रेखा खींची होती और उसका उल्लंघन करने पर कार्रवाई निर्धारित कर रखी होती तो ऐसी नौबत नहीं आती।
इसे भी पढ़ें: युद्ध काल में लक्ष्मणरेखा लांघता विपक्ष
दूसरे शब्दों में कहें तो राजनीतिक दलों की शह ही ऐसे नेताओं के बिगड़े बोलों के लिए जिम्मेदार है। इनकी अनदेखी करने से नेताओं में प्रलाप करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। विगत चुनावों में यदि नेताओं पर दलों ने लगाम कसी होती तो ऐसी पुनरावृत्ति नहीं होती। लोकसभा चुनाव 2024 में प्रचार के दौरान कई बार भाषायी मर्यादा टूटती दिख रही, किन्तु किसी भी पार्टी ने इस पर चिंता नहीं जताई और नेताओं को म्यान में रहने की हिदायतें नहीं दी। कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा की मथुरा से सांसद हेमा मालिनी के बारे में अमर्यादित टिप्पणी की थी, जिसके बाद चुनाव आयोग की तरफ से कार्रवाई भी की गयी, किन्तु कांग्रेस ने सुरजेवाला के खिलाफ महिलाओं की मर्यादा को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की। कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत के सोशल मीडिया अकाउंट से एक्ट्रेस कंगना रनौत को लेकर एक आपत्तिजनक पोस्ट शेयर की। इसके जवाब में कंगना ने कहा कि हर महिला गरिमा की हकदार है। हालांकि, विवाद बढऩे पर सुप्रिया श्रीनेत के अकाउंट से पोस्ट डिलीट कर दी। चुनाव आयोग की तरफ से उन्हें नोटिस दिया गया था। कंगना रनौत भी नाम लेकर निजी टिप्पणी करने में पीछे नहीं रहीं। कंगना ने राहुल गांधी और मंडी सीट से उनके प्रतिद्वंद्वी विक्रमादित्य सिंह को क्रमश: 'बड़ा पप्पू और 'छोटा पप्पू कहा। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान पूर्व प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके पिता मोतीलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी सहित गांधी-नेहरू परिवार को निशाना बनाया और कांग्रेस को 'एक बीमारी और अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गई दीमक करार दिया, जो उनके मुताबिक 2014 तक देश को खा रही थी। हिमाचल की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा ने रनौत को परी करार देते हुए कहा है कि लोग केवल उन्हें देखने आते हैं। प्रतिभा के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कि कंगना की मां आशा रनौत ने कहा था कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता ये हुस्न परी है, और ये क्या चीज है जैसी टिप्पणियां कर रही हैं और यह भूल गई हैं कि उनके घर में भी बेटियां हैं। उन्होंने कहा कि एक मां होने के नाते मुझे दुख होता है और मुझे लगता है कि ऐसी टिप्पणियों से अन्य मांएं भी दुखी हो रही हैं।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सरकार को गिराने की कोशिशों से नाराज होकर कांग्रेस के बागियों को काले नाग और बिकाऊ करार दिया था और अपने चुनावी अभियान के दौरान भी बिकाऊ बनाम टिकाऊ के नारे का इस्तेमाल किया था। बिहार भाजपा के प्रमुख सम्राट चौधरी के बयान पर काफी विवाद देखने को मिला था। सम्राट चौधरी ने कहा था कि टिकट बेचने में लालू यादव ने अपनी बेटी को भी नहीं छोड़ा। पहले अपनी बेटी की किडनी ली और उसके बाद लोकसभा चुनाव का टिकट दे दिया। सम्राट चौधरी ने कहा था कि आगामी चुनाव में मैदान में उतरने से पहले लालू ने अपनी बेटी की किडनी ले ली। राजद की तरफ से इसे लेकर जमकर आपत्ति जतायी गयी थी। गिरिराज सिंह के बयान पर भी विवाद हुआ था। केंद्रीय मंत्री सिंह ने कहा था कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा बुर्के की आड़ में मतदान को प्रभावित करने व रोकटोक पर विवाद करने की घटनाएं सामान्य हैं। चुनाव आयोग के निर्देशानुसार पोलिंग एजेंटों द्वारा आपत्ति करने पर उनकी पहचान सुनिश्चित करने से किसी की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होती है।
उनके इस बयान को लेकर भी हंगामा देखने को मिला था। सैम पित्रोदा अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे हैं। पित्रोदा ने रंगभेद को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि भारत में पूर्व के लोग चाइनीज और दक्षिण के लोग साउथ अफ्रीकन जैसे दिखते हैं। कांग्रेस ने पित्रोदा के इस बयान से किनारा कर लिया। सैम पित्रोदा के बयान को लेकर कांग्रेस ने कहा कि भारत की विविधता की ये परिभाषा मंजूर नहीं है। यह गलत है। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने इस मुद्दा बना लिया था। ये उदाहरण बताते हैं कि जहरीले बोलों पर नेताओं को कड़ा सबक मिला होता आज यह हालात पैदा नहीं होते कि कोई मंत्री जैसे संवैधानिक ओहदे पर बैठ कर सेना की जांबाज, देशभक्त और देश की महिलाओं के लिए अग्रणी महिला सैन्य अधिकारी के खिलाफ अमर्यादित बोल बोलने का साहस जुटा पाता। राजनीतिक दल ही सख्त कार्रवाई नहीं करके ऐसे नेताओं को हवा देते हैं। दलों ने गरिमा की यदि कोई सीमा-रेखा तय नहीं की तो आगे भी ऐसी बदजुबानी से देश और समाज शर्मसार होता रहेगा।
- योगेन्द्र योगी
अन्य न्यूज़