मछुआरों, महिलाओं और स्थानीय संस्कृति का सहारा

Narendra Modi
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तमिलनाडु में मौजूदा सत्ताधारी डीएमके का मोर्चा बढ़त की उम्मीदे पाले हुए है तो बीजेपी इस बार बड़ी सेंध लगाने का दावा कर रही है। बीजेपी के दावे की वजह है, प्रधानमंत्री की सभाओं में उमड़ती रही भीड़। जिसे बढ़ाने में अमित शाह अपनी ओर से जोर देते रहे।

अपने दम पर बहुमत के साथ लगातार दो बार से केंद्रीय सत्ता को संभाल रही भारतीय जनता पार्टी के लिए तमिलनाडु और केरल अब तक प्रश्न प्रदेश रहे हैं। इस लिस्ट में 25 सीटों वाले आंध्र प्रदेश को भी शामिल किया जा सकता है। ‘अबकी बार चार सौ पार’ के नारे में दक्षिण का अभेद्य बना किला फतह करने की कोशिश भी शामिल है। पार्टी को पता है कि जब तक वह अभेद्य समझे जाने वाले दक्षिण के दुर्ग में जोरदार सेंध नहीं लगाएगी, उसका यह नारा जमीनी हकीकत के नजदीक नहीं पहुंच पाएगा। यही वजह है कि पार्टी का शिखर नेतृत्व लगातार तमिलनाडु पर अपना ध्यान फोकस किए हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की दक्षिण भारत की लगातार जारी चुनावी और सामान्य यात्राएं इन्हीं कोशिशों का उदाहरण है। तमिलनाडु में चुनाव बीत चुके हैं। राज्य के चुनाव नतीजों को लेकर अटकलबाजी और दावे-प्रतिदावों का दौर जारी है। 

तमिलनाडु में मौजूदा सत्ताधारी डीएमके का मोर्चा बढ़त की उम्मीदे पाले हुए है तो बीजेपी इस बार बड़ी सेंध लगाने का दावा कर रही है। बीजेपी के दावे की वजह है, प्रधानमंत्री की सभाओं में उमड़ती रही भीड़। जिसे बढ़ाने में अमित शाह अपनी ओर से जोर देते रहे। लोकसभा सीटों के लिहाज से दक्षिण भारत के सबसे बड़े राज्य तमिलनाडु में 2019 के आम चुनावों में भी अमित शाह ने पूरा जोर लगाया था। फिर भी पार्टी को 2014 के साढ़े पांच प्रतिशत के मुकाबले महज 3.6 फीसद वोट से ही संतोष करना पड़ा था। राज्य में इस बार चुनाव हो चुका है। जिस तरह मोदी और शाह की जोड़ी ने इस बार राज्य में जोर लगाया, इसकी वजह से इस बार पार्टी की उम्मीदें बढ़ी हुई हैं। इसकी वजह है पार्टी की अरसा पहले से जारी तैयारी और तमिलनाडु में तेज-तर्रार और युवा अन्नामलाई के हाथ में पार्टी की कमान। अन्ना मलाई की सभाओं में उमड़ती रही भीड़ पार्टी की उम्मीदों को परवान चढ़ाने में मददगार बनती रही। अन्ना मलाई ने सात महीने तक ‘एन मन, एन मक्कल’ नाम से राज्यव्यापी यात्रा की, जिसमें खूब भीड़ जुटी। इस यात्रा की बीजेपी हलके में महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका समापन खुद प्रधानमंत्री मोदी ने किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अन्ना मलाई का नाम अपनी सभाओं में खूब लेते हैं। अन्ना मलाई को उस कोयंबटूर सीट से मैदान में उतारा गया है, जिस पर 1998 और 1999 में पार्टी का कब्जा रहा। उस वक्त इस सीट की नुमाइंदगी करने वाले सीपी राधाकृष्णन इन दिनों झारखंड के राज्यपाल हैं। उनके जिम्मे तेलंगाना के राज्यपाल और पुदुचेरी के उपराज्यपाल का चार्ज भी है। जब सीपी राधाकृष्णन कोयंबटूर से सांसद चुने गए थे, तब वे 41 साल के युवा थे। यह संयोग है कि कुछ और कि अन्ना मलाई इन दिनों चालीस की उम्र पूरी करने वाले हैं। यानी अगर कोयंबटूर से वे जीतते हैं तो वे भी सीपी राधाकृष्णन की तरह युवा ही होंगे। 

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भारतीय जनता पार्टी की शिखर यात्रा की ओर जब हम देखते हैं तो पता चलता है कि उसने जिस राज्य में भी पैर जमाया, वहां वह पहले छोटे भाई की भूमिका में रही। बाद में वह अपना प्रभाव बढ़ाते हुए बड़े भाई की भूमिका में आ जाती है और मौका मिलते ही शिखर पर पहुंच जाती है। दो चुनाव पहले तक बीजेपी हरियाणा और पश्चिम बंगाल में इंडियन नेशनल लोकदल और तृणमूल कांग्रेस के छोटे भाई की भूमिका में रही। बाद में उसने प्रभाव बढ़ाया। अब हालत यह है कि हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है तो तृणमूल कांग्रेस उसकी चुनौती से पार पाने का उपाय खोज रही है। कुछ ऐसी ही स्थिति महाराष्ट्र में रही। पहले वह शिवसेना की बी टीम की तरह काम करती रही और पिछले कुछ चुनावों से वह पहले नंबर पर आ गई है। पंजाब में इसी तरह वह 1997 से लगातार शिरोमणि अकाली दल की बी टीम रही और इस बार उसने खुद को अकेले मैदार में उतार दिया है। कुछ इसी अंदाज में पार्टी तमिलनाडु में भी 1998 में डीएमके के साथ रही तो 1999 में एडीआईएमके की जूनियर पार्टनर बनी। 2014 तक वह अन्ना द्रमुक के साथ रही, लेकिन अब वह तकरीबन अकेले दम पर आगे आ रही है। 

हाल के दिनों में पार्टी तार्किक रणनीति के साथ मैदान में उतरती रही है। उसके वायदों और शासन के तरीके पर सवाल जरूर उठ सकते हैं, लेकिन रणनीतिक कदम के लिए उसकी प्रशंसा करनी होगी। प्रश्न प्रदेश बने तमिलनाडु को हल करने के लिए पार्टी ने अरसा पहले काम शुरू कर दिया था। केंद्रीय सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने एक कार्यक्रम शुरू कराया, एक भारत, श्रेष्ठ भारत। इसके जरिए राज्यों को उनके पारंपरिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्तों के साथ जोड़ना शुरू किया। इसके तहत तमिलनाडु का काशी से संगम शुरू हुआ। काशी भगवान भोलेनाथ की नगरी है और तमिलनाडु में शैव परंपरा को मानने वालों की अच्छी-खासी संख्या है। महाशिवरात्रि के वक्त काशी में तमिलनाडु, आंध्र और कर्नाटक के यात्रियों की बाढ़ रहती है। काशी और तमिलनाडु के करीबी रिश्तों के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने तमिल दिलों में उतरने की कोशिश साल 2022 में तेज की। काशी-तमिल संगमन इसकी अगली कड़ी के रूप में सामने आया। इसके बाद प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु में विकास योजनाओं की तेजी लाने की कोशिश की। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू की गई स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना को पूरा करने का आश्वासन के साथ ही मछुआरों के कल्याण पर काम तेज हुए। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु में रोड शो किए। 

तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जहां की 87 फीसद आबादी हिंदू है। इसके बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि मारन ने सनातन धर्म पर हमला बोला। भारतीय जनता पार्टी को इस बयान ने मौका दे दिया। जिसके खिलाफ ना सिर्फ प्रधानमंत्री मुखर हुए, बल्कि अमित शाह ने भी हमला बोला। तमिलनाडु के लोग एक बात पर खूब जोर देते हैं कि उनके यहां धार्मिक कार्ड नहीं चलता। इसीलिए बीजेपी का हिंदुत्व का मुद्दा भी नहीं चलेगा। लेकिन प्रधानमंत्री के रोड शो में उमड़ी भीड़ हो या अमित शाह के कार्यक्रमों में जुटती भीड़, इस धारणा को कमजोर कर रही है। भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा हिंदुत्ववादी राजनीति को दो दशक पहले तक उत्तर भारत में इतना तवज्जो नहीं मिलता था कि वह केंद्रीय सत्ता की अपने दम पर दावेदारी कर सके। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। कुछ इसी अंदाज में पार्टी तमिलनाडु में भी जोर लगाती रही । पार्टी तमिल सांस्कृतिक परंपराओं मसलन जलीकट्टू की बहाली का जहां समर्थन कर रही है, वहीं वह तमिल मार्का सनातन की प्रतिष्ठा पर भी जोर दे रही है। पार्टी ने पीएमके और टीएमसी(एस) जैसी कुछ छोटी पार्टियों के साथ जातीय गणित भी साधने की कोशिश की है। इन कोशिशों से उपजी आस ही है कि पार्टी इस बार राज्य की 23 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि बाकी 16 सीटें अपने सहयोगियों के लिए छोड़ दी है।

बीजेपी की कोशिशों के बावजूद हाल ही में आई एक सर्वे रिपोर्ट ने पार्टी को एक भी सीट नहीं दिया। हालांकि सर्वे करने वाली एजेंसी भी मान रही है कि राज्य में बीजेपी का वोट बैंक बढ़ने जा रहा है। वैसे याद किया जाना चाहिए कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सर्वे एजेंसियों ने बीजेपी की जीत की उम्मीद नहीं के बराबर जताई थी। लेकिन जब नतीजे आए तो सर्वे एजेंसियों के नतीजों के उलट थे। भारतीय जनता पार्टी ठीक उसी अंदाज में तमिलनाडु से भी उम्मीद लगाए हुए है। 

दक्षिण भारत में लोकसभा की 132 सीटें हैं, जिनमें सिर्फ 29 सीटें ही बीजेपी के पास हैं। उनमें से सबसे ज्यादा 25 सीटें कर्नाटक की हैं, जबकि चार तेलंगाना की। पार्टी इस बार भी कर्नाटक में बेहतर करते नजर आ रही है। तेलंगाना में भी वह मुकाबले में है। इसके बाद उसका सारा ध्यान तमिलनाडु पर ही है। इसलिए वह मछुआरों, महिलाओं और युवाओं पर जहां उम्मीद लगाए बैठी है, वहीं पार्टी को एआईडीएमके की कमजोरी से विपक्षी खेमे में उपजे शून्य को भरने की भी आस है। पार्टी को कितनी सफलता मिलती है, यह तो चार जून को पता चलेगा। लेकिन इतना तय है कि तमिलनाडु की राजनीति में बड़े भाई की भूमिका की ओर भारतीय जनता पार्टी ने कदम बढ़ा दिया है। 

- उमेश चतुर्वेदी

(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार हैं)

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